नागौर. श्री जयमल जैन पौषधशाला में चल रहे प्रवचन में जैन समणी सुयशनिधि ने कहा कि दान केवल वस्तु देने का नाम नहीं, यह आत्मा की निर्मलता और करुणा की साधना है। उन्होंने जैन धर्म ने दान को चरित्र का आभूषण बताते हुए कहा कि आहार दान, औषध दान, ज्ञान दान और अभय दान की अपनी अलग विशेषताएं होती हैं। यह चार स्वरूप व्यक्ति को लोभ, अहंकार और संग्रह से मुक्त के साथ जीवन में पुण्य और संतोष का संचार करते हैं। भगवान महावीर स्वामी ने त्याग और करुणा से यही सिखाया कि देने से आत्मा हल्की होती है, और संसार में शांति फैलती है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में गिफ़्ट थेरेपी एक नई अवधारणा के रूप में सामने आई है। यह केवल भौतिक उपहार नहीं, बल्कि प्रेम, समय, सहानुभूति और प्रोत्साहन के भावनात्मक उपहारों का आदान-प्रदान है। मनोवैज्ञानिक शोध भी बताते हैं कि नि:स्वार्थ भाव से कुछ देने पर मन में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। इससे तनाव घटता है, और रिश्ते मधुर होते हैं। उन्होंने कहा कि जैन दर्शन का दान और आधुनिक गिफ़्ट थेरेपी, दोनों ही जीवन को करुणा, संतुलन और आत्मिक शांति की ओर ले जाते हैं। यदि हर व्यक्ति प्रतिदिन एक दान या एक सकारात्मक उपहार देने का संकल्प ले, तो समाज में प्रेम और सहयोग स्वत: बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि दान केवल आर्थिक समर्थ लोगों तक सीमित नहीं, बल्कि हर कोई मुस्कान, समय, ज्ञान, सेवा या प्रोत्साहन का उपहार देकर भी संसार को सुंदर बना सकता है।
इनको मिला सम्मान
संघ मंत्री हरकचंद ललवाणी ने बताया कि प्रवचन प्रश्नों के सही उत्तर देने पर दीक्षा चौरडिय़ा और सपना ललवाणी को रजत मेडल से सम्मानित किया। अतिथि सत्कार का लाभ महावीर चंद भूरट परिवार ने लिया। इस दौरान प्रकाश चंदबोहरा, ज्ञानचंद माली, नरपतचंद ललवाणी, मूलचंद ललवाणी, सुरेश जैन, किशोर चंद ललवाणी आदि मौजूद थे।