
Kinnar Mahasammelan in Nagaur : बच्चा जन्म लेता है, तो उसका पहला रिश्ता मां-बाप से होता है, लेकिन किन्नर समुदाय में यह रिश्ता बहुत जल्दी टूट जाता है। समाज की संकीर्ण सोच, परिवार की झिझक और अस्वीकार्यता उन्हें घर से बेघर कर देती है। जब समाज ठुकराता है, तो किन्नर समाज उन्हें गले लगा लेता है। यह समाज उन्हें पहचान ही नहीं रिश्तों का वह स्नेह भी देता है, जो खून से नहीं, अपनेपन से जुड़ा होता है। यह रिश्ता बिना स्वार्थ अंतिम सांस तक रहता है। नागौर में सोमवार से शुरू हुए अखिल भारतीय किन्नर महासम्मेलन में पहुंचे कई किन्नरों को यहां अपनापन लिए नए रिश्ते मिलेंगे। यहां रिश्तों का ‘पुनर्जन्म’ होता है।
फरीदाबाद की गद्दी नसीन राखी बताती हैं कि ‘हमारे समाज में गुरु-चेला का रिश्ता परंपरा नहीं, सहारा है। जो अपने मां-बाप को खो देता है, वह यहां आकर फिर किसी का बच्चा बन जाता है। सम्मेलन वही जगह है, जहां हम एक-दूसरे को पहचानते हैं, अपनाते हैं और जीने की हिम्मत देते हैं।’
मध्यप्रदेश से आई किन्नर ने बताया कि घरवालों ने निकाल दिया। कई दिन सड़क पर रही, फिर एक सम्मेलन में किसी ने मुझे अपने साथ रखा। आज मेरी गुरु मां है, उनके आशीर्वाद से मैं अपनी पहचान के साथ जी रही हूं। देश में जहां भी ये सम्मेलन होते हैं, वहां सिर्फ संस्कृति और नृत्य का प्रदर्शन नहीं होता है। यहां कोई गुरु किसी नए चेले को अपना लेता है, कोई बहन किसी बेघर किन्नर को अपने साथ रहने का ठिकाना दे देती है।

महासम्मेलन में शिरकत करने आई अजमेर की गादीपति सलोनी बाई बताती है ‘हमारे लिए खून से ज्यादा दिल के रिश्ते महत्वपूर्ण हैं, जो सम्मेलनों में बनते हैं। यहां जब किसी किन्नर को बहन बनाते हैं तो पंचों की मौजूदगी में एक गिलास से एक-दूसरे का जूठा दूध पीते हैं। इसके बाद बहन मिलती है, फिर मां, मौसी, बुआ के रिश्ते बनते हैं।
Published on:
28 Oct 2025 10:07 am

