
के.एस. तोमर, वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार
जब अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कुछ महीने पहले भारत को 'डेड इकोनॉमी' कहकर उपहास उड़ाया और उसके तुरंत बाद भारतीय वस्तुओं पर अभूतपूर्व 50त्न शुल्क बाधा लगाई, तब वैश्विक वित्तीय संस्थानों, क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और बाजार विश्लेषकों में मानो यही सर्वसम्मति बन गई थी कि भारत आर्थिक रूप से डगमगा जाएगा। वाशिंगटन को तो लग रहा था कि निर्यात में बड़ी गिरावट आएगी, उपभोग की गति टूट जाएगी व निजी निवेश असहज माहौल में सिकुड़ जाएगा। लेकिन जिन परिस्थितियों में गिरावट की भविष्यवाणी थी, वहीं से भारत ने आर्थिक वापसी का सबसे दमदार प्रदर्शन दिया। वित्त वर्ष 2025-26 की जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत ने 8.2त्न जीडीपी वृद्धि दर्ज की- यह पिछले छह तिमाहियों में सर्वाधिक और समान अवधि में विश्व की किसी भी प्रमुख अर्थव्यवस्था से बेहतर रही। यह उपलब्धि उस मिथक को निर्णायक रूप से तोड़ती है कि आर्थिक दबाव डालकर उभरती शक्तियों को समझौतों के लिए झुकाया जा सकता है और यह स्पष्ट संदेश देती है कि भारत अब वैश्विक व्यवस्था में एक आत्मनिर्भर रणनीतिक अर्थव्यवस्था के रूप में खड़ा है।सुधार, उपभोग और विनिर्माण-वह इंजन जिसने टैरिफ के आघात को चुनौती दी: इस वृद्धि की जड़ें बाहरी मांग के बजाय घरेलू संरचना में हैं। पहली बार भारत का विकास इंजन आंतरिक उपभोग, सुधारों और उत्पादन क्षमता पर निर्भर दिखाई दिया। निजी उपभोग में 7.9त्न की वृद्धि दर्ज की गई, जिसे जीएसटी सरलीकरण, उपभोक्ता वस्तुओं पर कर राहत, डिजिटल अर्थव्यवस्था के विस्तार, श्रम सुधारों और रोजगार अवसरों में सुधार से गति मिली। मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति बढऩे से ऑटोमोबाइल, घरेलू उपकरण, रियल एस्टेट और यात्रा-संबंधित सेवाओं में मांग तेज हुई।
भविष्य की चुनौतियां- राजकोषीय अतिरेक से बचते हुए रफ्तार बनाए रखना: आने वाले महीनों में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि उपभोग आधारित वृद्धि को बनाए रखते हुए राजकोषीय संतुलन को कैसे सुरक्षित रखा जाए। अत्यधिक प्रोत्साहन नीति अल्पकालिक उत्साह तो दे सकती है, लेकिन राजकोषीय अनुशासन को कमजोर कर सकती है। दूसरा जोखिम निवेश असमानता है- यदि पूंजी निवेश तेजी से बढ़ता है पर यह कॉर्पोरेट दिग्गजों तक सीमित रहता है और एमएसएमई तथा सनराइज- उद्योगों तक नहीं पहुंचता तो वृद्धि टिकाऊ नहीं होगी। तीसरा बाहरी जोखिम ऊर्जा बाजारों की अस्थिरता, पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में वित्तीय सख्ती और मध्य-पूर्व तनाव से जुड़ा है- ऊर्जा सुरक्षा और निर्यात विविधीकरण को तेजी से मजबूत करना होगा।
उपभोक्ता और मध्य वर्ग- राहत भी, सीमाएं भी: मध्य वर्ग इस तिमाही में सबसे बड़ा लाभार्थी उभरकर सामने आया है। कर राहत और मुद्रास्फीति का अक्टूबर में 0.25% के ऐतिहासिक निम्न स्तर पर आना क्रय शक्ति को मजबूती देता है। इसके सीधे संकेत ऑटोमोबाइल व हाउसिंग में रिकॉर्ड मांग, घरेलू उपकरणों की बिक्री, हॉस्पिटैलिटी तथा ट्रेवल सेक्टर में तेजी के रूप में दिखे। रोजगार सृजन में सुधार ने टियर-2 और टियर-3 शहरों को भी सक्रिय भागीदार बनाया। इसकी सीमाएं स्पष्ट हैं। नाममात्र जीडीपी (8.7%) का वास्तविक जीडीपी (8.2%) के बहुत करीब रहना इंगित करता है कि उद्योगों के लाभ-मार्जिन बहुत व्यापक नहीं हैं, यानी विकास मजबूत जरूर है लेकिन बिना दबाव के नहीं।
भारत की वैश्विक छवि- आर्थिक संप्रभुता और वार्ता शक्ति का उदय: इस तिमाही का प्रभाव केवल जीडीपी वृद्धि तक सीमित नहीं है। विश्व अर्थव्यवस्था में इससे भारत की रणनीतिक प्रतिष्ठा व बातचीत की क्षमता में निर्णायक वृद्धि हुई है। दशकों तक यह धारणा कायम रही कि पश्चिमी संरक्षणवादी नीतियों के बीच उभरती अर्थव्यवस्थाएं कमजोर पड़ जाती हैं, पर 50% अमरीकी शुल्क दीवार के बीच भी भारत का वैश्विक सर्वोच्च तिमाही विकास हासिल करना इस धारणा के विरुद्ध ठोस प्रमाण है। इसके प्रभाव निवेशकों, बहुपक्षीय संस्थानों व रणनीतिक समुदाय के बीच स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि भारत अब न तो भू-राजनीतिक दबाव में नीति परिवर्तन करेगा और न आर्थिक प्रलोभनों के बदले रणनीतिक समझौते।
विपक्ष का डेटा अंतराल पर प्रश्न- सांख्यिकीय विश्वसनीयता की बहस: विपक्षी दलों और सरकार के आलोचकों ने आइएमएफ की रेटिंग को अपनी लंबे समय से उठाई जा रही आपत्तियों की पुष्टि के रूप में पेश किया है। आलोचकों के अनुसार बेस-इफेक्ट का प्रभाव, जीडीपी और जीवीए के बीच अंतर, कॉरपोरेट टैक्स संग्रहण में सुस्त वृद्धि और सरकारी व्यय में कमी इस शंका को जन्म देते हैं कि 8.2% की वृद्धि दर व्यापक आर्थिक विस्तार का संकेत है या फिर कुछ चुनिंदा क्षेत्रों तक सीमित उछाल भर है। उनका तर्क है कि जीडीपी की वृद्धि दर का उत्सव मनाया जाता है, पर आम नागरिक महंगाई, बेरोजगारी और स्थिर वेतन जैसी चुनौतियों से जूझते रहते हैं- तब सांख्यिकीय विश्वसनीयता लोकतांत्रिक चिंता का विषय बन जाती है।आलोचनाओं के कुछ पहलुओं में राजनीतिक उद्देश्य भी हो सकते हैं, पर वे एक महत्वपूर्ण बिंदु की ओर ध्यान दिलाते हैं: वैश्विक नेतृत्व की आकांक्षा रखने वाले देश के लिए सांख्यिकीय ईमानदारी किसी दलगत बहस की विलासिता नहीं, बल्कि रणनीतिक अनिवार्यता है।
Published on:
02 Dec 2025 12:35 pm
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