
डॉ. सुरेंद्र सिंह शेखावत, चिंतक एवं स्वतंत्र लेखक
क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स (सीसीपीआइ) की ताजा रिपोर्ट ने भारत के लिए एक झकझोरने वाला संदेश दिया है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में पर्यावरण संगठन जर्मनवॉच, न्यूक्लाइमेट इंस्टीट्यूट और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल द्वारा जारी इस वार्षिक मूल्यांकन में भारत 10वें स्थान से लुढ़ककर 23वें स्थान पर पहुंच गया है। यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि नवीकरणीय ऊर्जा में भारत वैश्विक औसत से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। हमने 2030 के अपने लक्ष्य से पांच साल पहले ही बिजली उत्पादन क्षमता का 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म स्रोतों से हासिल कर लिया है, सौर रूफटॉप क्षमता 20.8 गीगावाट पर पहुंच गई है। फिर भी रैंकिंग में भारी गिरावट दर्ज की गई है, इसका सीधा जवाब है-कोयले की जकडऩ व उससे जुड़ी राजनीति। सीसीपीआइ चार मापदंडों पर 63 देशों और यूरोपीय संघ का मूल्यांकन करता है, जिसका आधार ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (40 फीसदी), नवीकरणीय ऊर्जा (20 फीसदी), ऊर्जा उपयोग (20 फीसदी) और जलवायु नीति (20 फीसदी) रहता है।
शीर्ष तीन स्थान इसलिए खाली हैं क्योंकि कोई भी देश 'बहुत उच्च' श्रेणी में नहीं पहुंच सका। डेनमार्क चौथे स्थान पर है। भारत ग्रीनहाउस उत्सर्जन, ऊर्जा उपयोग और जलवायु नीति में 'मध्यम' श्रेणी में है, लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा में 'निम्न' रेटिंग मिली है, यह पिछले साल की तुलना में काफी नीचे है। गिरावट का सबसे बड़ा कारण है कोयले पर निर्भरता और कोल फेज-आउट की कोई राष्ट्रीय समयबद्ध योजना का अभाव। देश में ऊर्जा खपत तेजी से बढ़ रही है क्योंकि अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। 1.5 डिग्री से कम तापमान वृद्धि के लिए जरूरी है कि उत्सर्जन शिखर पर पहुंच जाए, लेकिन भारत में यह अब तक नहीं हुआ है। रिपोर्ट में सबसे तीखी आलोचना जलवायु नीति पर है।
2070 का नेट-जीरो लक्ष्य 1.5 डिग्री पाथवे से मेल नहीं खाता। 2035 और 2040 के लिए कोई बाध्यकारी अंतरिम लक्ष्य निर्धारित नहीं हैं। कोई पीक कोल ईयर या फेज-आउट डेट नहीं है।
जी-20 में भारत उन कुछ देशों में है जहां फॉसिल सब्सिडी अब भी भारी भरकम है। ये आंकड़े चौंकाते हैं क्योंकि भारत ने सौर गठबंधन की अगुवाई की है, 500 गीगावाट नवीकरणीय क्षमता का लक्ष्य रखा है। लेकिन यह प्रगति बिजली क्षेत्र तक सीमित है। भारत अब भी अमरीका, रूस या सऊदी अरब से काफी बेहतर स्थिति में है। लेकिन हम 23वें पर आ गए हैं। यह गिरावट सिर्फ आंकड़ों की नहीं, नीतिगत अवसर की है। इसके निवारण क्या है? सबसे जरूरी है कोयला फेज-डाउन की स्पष्ट समयरेखा घोषित करना। 2030 तक कोयला उत्पादन चरम पर लाना और 2040 तक शून्य कोयला बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखना होगा। फॉसिल सब्सिडी को समाप्त कर उस धन को विकेंद्रीकृत सामुदायिक सौर और लघु पवन पर खर्च करना होगा। भारत की अर्थव्यवस्था अब इतनी बड़ी हो चुकी है कि कोयला उत्पादन बढ़ाने से बचत कम है, जबकि नवीकरणीय क्षेत्र रोजगार 10 गुना तेज पैदा कर रहा है।
दूसरा, उत्सर्जन तीव्र कटौती के लिए ऊर्जा दक्षता को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। भवनों में एलईडी, सुपर-एफिशिएंट उपकरण और बेहतर सार्वजनिक परिवहन जरूरी है। उद्योग क्षेत्र में पीएटी योजना को और सख्त करना होगा। तीसरा, नीति को 1.5 डिग्री पाथवे से संरेखित करना होगा। 2050 से पहले नेट-जीरो लक्ष्य और 2035 लक्ष्य रखना होगा। सेक्टर वार बाध्यकारी लक्ष्य बनाने होंगे। कार्बन मूल्य को मजबूत करना होगा। चौथा, हरित संक्रमण को न्यायोचित बनाना होगा। कोयला क्षेत्र में 40 लाख लोग जुड़े हैं। उनके लिए कौशल प्रशिक्षण व वैकल्पिक रोजगार, सामुदायिक सौर परियोजना, कोयला क्षेत्र में काम नेट-जीरो लक्ष्य के लिए जरूरी 2030 तक कोयला उत्पादन शिखर पर लाना होगा।अंत में यह गिरावट एक झटका है, लेकिन जागृत व तेज बदलाव और बेहतर भविष्य का अवसर भी। भारत के पास संसाधन और क्षमता है। हमने सौर क्रांति पर ऐतिहासिक प्रगति दिखाई है। इसी तरह अब कोयला निर्भरता से मुक्ति की क्रांति
दिखानी होगी।
Published on:
28 Nov 2025 02:37 pm
बड़ी खबरें
View Allओपिनियन
ट्रेंडिंग
