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संपादकीय : बीएलओ पर काम का बोझ कम करना जरूरी

मतदाता सूचियों को त्रुटिरहित बनाने के मकसद से शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के दौरान बूथ लेेवल ऑफिसर (बीएलओ) की मौतों और उनकी समस्याओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पेश कर बताया गया था कि काम के अत्यधिक दबाव के कारण अलग-अलग राज्यों में बीएलओ की […]

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जयपुर

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arun Kumar

Dec 04, 2025

मतदाता सूचियों को त्रुटिरहित बनाने के मकसद से शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के दौरान बूथ लेेवल ऑफिसर (बीएलओ) की मौतों और उनकी समस्याओं पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पेश कर बताया गया था कि काम के अत्यधिक दबाव के कारण अलग-अलग राज्यों में बीएलओ की मौतें हुई हैं। नौ राज्यों व तीन केंद्र शासित प्रदेशों में एसआइआर कार्यक्रम चलाया जा रहा है। शीर्ष अदालत ने काम का बोझ होने पर राज्य सरकारों को अतिरिक्त कार्मिक उपलब्ध कराने की बात कहते हुए यह भी कहा है कि सरकारी कर्मचारी एसआइआर समेत दूसरे वैधानिक कार्य करने के लिए बाध्य हैं। हालांकि कोर्ट ने ड्यूटी से छूट मांगने का उचित कारण बताने वाले कार्मिक के प्रार्थना पत्रों पर सरकारों को विचार करने के लिए भी कहा है।
आरोप यह भी है कि कार्रवाई का डर दिखाकर कार्मिकों पर भारी दबाव बनाया जा रहा है। इन तमाम परेशानियों के बावजूद इस प्रक्रिया में लगे ऐसे कार्मिकों के उदाहरण भी सामने आए हैं जिन्होंने निर्धारित समयावधि से पहले ही मतदाता सूचियों के गहन पुनरीक्षण का काम पूरा कर लिया। यह मानव स्वभाव ही है कि काम का दबाव और अनुशासनात्मक कार्रवाई का डर किसी को भी विचलित कर सकता है। जब कोई काम युद्धस्तर पर तय समयावधि में करना हो तो चुनौती और बढ़ जाती है। अब जब सुप्रीम कोर्ट में मामला चला गया है तो इसके सभी पहलुओं पर बात होगी। अभी कोर्ट ने एसआइआर प्रक्रिया में अतिरिक्त स्टाफ लगाने के लिए सरकारों को कहा है ताकि काम का बोझ कम हो सके। ऐसे में अब गेंद राज्यों के पाले में हैं। उनके पास दोहरी जिम्मेदारी है। पुनरीक्षण कार्य में लगे लोगों के जीवन व सेहत की सुरक्षा भी करनी है और लोकतंत्र की मजबूती से जुड़ी इस अहम प्रक्रिया को भी पूरी करना है। एसआइआर की डेडलाइन नजदीक है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुरूप एसआइआर प्रक्रिया में बीएलओ व दूसरे कार्मिकों को भरे हुए फार्मों को अपलोड करने के लिए पर्याप्त श्रमशक्ति के साथ समय देने की जरूरत भी है।
यह भी याद रखा जाना चाहिए कि बीएलओ सिर्फ चुनावी मशीनरी का एक हिस्सा नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी को सुचारू रखने वाली महत्वपूर्ण कड़ी है। यदि यही कर्मचारी असुरक्षा, तनाव और अत्यधिक दबाव में काम करेंगे, तो पूरी प्रक्रिया की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा। मतदाता सूची की पारदर्शिता और शुद्धता तभी सुनिश्चित हो सकती है, जब इसे तैयार करने वालों को पर्याप्त प्रशिक्षण, सम्मान, तकनीकी सहयोग तथा कार्य संतुष्टि मिले। इसलिए राज्यों के लिए यह अवसर है कि वे बीएलओ तंत्र की कमियों को दूर करते हुए बेहतर प्रशासनिक मॉडल विकसित करें, ताकि भविष्य में ऐसे विवाद न उठें तथा यह प्रक्रिया अधिक मानवीय व प्रभावी बन सके।