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सामूहिक विवाह: अब बदली सोच, बने समाज के गौरव

सामूहिक विवाह की उपयोगिता और आवश्यकता साल दर साल बढ़ती जा रही है। कभी गरीब परिवारों की मजबूरी समझे जाने वाले सामूहिक विवाह अब समाज और जातियों के लिए प्रतिष्ठा और सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में देखे जाने लगे है।लोगों की सोच बदल रही है। शिक्षित और सम्पन्न परिवार के युगल भी अब सामूहिक विवाह के दौरान विवाह के बंधन में बंध रहे है।

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बीकानेर. मितव्ययिता और सामाजिक एकता के प्रतीक है सामूहिक विवाह। सामूहिक विवाह की उपयोगिता और आवश्यकता साल दर साल बढ़ती जा रही है। कभी गरीब परिवारों की मजबूरी समझे जाने वाले सामूहिक विवाह अब समाज और जातियों के लिए प्रतिष्ठा और सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में देखे जाने लगे है।लोगों की सोच बदल रही है। शिक्षित और सम्पन्न परिवार के युगल भी अब सामूहिक विवाह के दौरान विवाह के बंधन में बंध रहे है। हिन्दू समाज ही नहीं मुस्लिम सहित अन्य समाजों में भी सामूहिक विवाह व निकाह के आयोजनों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। कुछ सामाजिक संगठन सर्व समाज के लिए सामूहिक विवाह आयोजित करने लगे है। ऐसे आयोजनों का सबसे बड़ा फायदा विवाह समारोह में होने वाली फिजुलखर्ची का चलन कम होने लगा है। राज्य सरकार भी सामूहिक विवाह को प्रोत्साहित कर रही है। सरकार इसके लिए अनुदान प्रदान करती है।

कम खर्च, अधिक शादियां: माली-सैनी समाज के कन्हैयालाल भाटी बताते है कि मितव्ययिता सामूहिक विवाह के उद्देश्यों की पूर्ति करता है। एक स्थान पर कई शादियों की व्यवस्था से वर-वधू दोनों पक्षों का खर्च बचता है। समाज की परंपराओं, रीति-रिवाज की भी पालन होती है। कम खर्च और समाज के प्रतिष्ठित लोगों की मौजूदगी होने से ऐसी शादियां के ज्यादा टिकाऊ साबित होने की संभावना भी रहती है।

साल दर साल बढ़े सामूहिक विवाह

बीकानेर में कई समाज और जातियों के सामूहिक विवाह समारोह होते है। साल दर साल इनमें वृद्धि हो रही है। पुष्करणा ब्राह्मण समाज का सामूहिक विवाह हर दो साल के बाद होता है। विश्वकर्मा सुथार समाज, माली सैनी समाज, गुर्जर गौड ब्राह्मण समाज, मेघवाल समाज, पीपा क्षत्रिय समाज, नायक समाज, वाल्मिकी समाज, कुम्हार समाज के सामूहिक विवाह आयोजन लम्बे समय से हो रहे है। हर साल इनमें जोड़ों की संख्या बढ़ रही है। वहीं नागौरी तेलियान समाज, रंगरेजान समाज, छींपा समाज, लोहारान समाज, डारान समाज, दमामियान समाज के भी सामूहिक विवाह आयोजन होने लगे है।

प्रति जोड़ा 25 हजारका अनुदान

राज्य सरकार सामूहिक विवाह के आयोजनों को बढ़ावा दे रही है। महिला अधिकारिता विभाग की उपनिदेशक डॉ.अनुराधा सक्सेना के अनुसार प्रति जोड़ा 25 हजार रुपए का अनुदान दिया जाता है। इसमें 21 हजार रुपए वर-वधू के लिए और प्रति जोड़ा 4 हजार रुपए आयोजक संस्था को देते है। एक स्थान, एक समय पर कम से कम दस जोड़ों का विवाह होना अनिवार्य है। सर्व समाज सामूहिक विवाह में न्यूनतम 5 समाज, जाति, धर्म के 5-5 जोड़े (25 जोड़े) होने पर संस्था को अतिरिक्त सहायता राशि 10 हजार रुपए देय है।

मितव्ययिता व सामाजिक एकता

शादी-विवाह में लगातार बढ़ रहे खर्च से अब लोगों का झुकाव सामूहिक विवाह की ओर हो रहा है। कम खर्च के साथ सामूहिक विवाह में जनप्रतिनिधियों व प्रतिष्ठित लोगों के आशीर्वाद देने पहुंचने से इसकी गरिमा बढ़ी है। यह समाज या जाति की एकता के प्रतीक और सामाजिक जिम्मेदारी निभाने के रूप में देखे जाते है।

... अब मजबूरी वाली फीलिंग नहीं : वरिष्ठजन ईश्वर महाराज ने बताया कि कई साल पहले तक सामूहिक विवाह को गरीब व जरूरतमंद परिवार की कन्याओं के सामूहिक विवाह आयोजन के रूप में देखा जाता था। सम्पन्न परिवार इसे गरीब कन्याओं के परिवार की मदद के रूप में करते थे। समय के साथ सोच बदल गई है। अब जरूरतमंद या गरीब कन्याओं जैसी बात नहीं बोली जाती। आधुनिक सोच के युवक-युवतियां भी यहां आना पसंद करते है।

पुष्करणा सावा-अनूठी मिसाल

सामूहिक विवाह आयोजन में बीकानेर का पुष्करणा सावा अनूठी मिसाल है। शताब्दियों से इस समाज में सामूहिक विवाह का आयोजन हो रहा है। पहले सात, फिर चार और अब दो साल के अंतराल पर पुष्करणा सावा हो रहा है। एक दिन, एक मुहूर्त में सैकड़ों जोड़े परिणय सूत्र में बंधते है। राज्य सरकार ने भी पुष्करणा सावे के दिन पूरे परकोटा क्षेत्र को ही एक छत मान रखा है।

सामूहिक विवाह पर एक नजर

12 से अधिक समाज-जातियों के हो रहे बड़े सामूहिक विवाह आयोजन।

200 से अधिक जोड़े अकेले पुष्करणा सावा में बंधते है परिणय सूत्र में।

500 जोड़े सामूहिक विवाह से हर साल करते है जीवन की नई शुरुआत।