व्यवहार में हिंदी के शब्दों को बढ़ावा देने की दरकार, अभिजात्य होने का प्रमाणपत्र नहीं है अंग्रेजी
बारां. आज राष्ट्रीय हिंदी दिवस है, इसलिए ङ्क्षहदी पर बात करना आवश्यक हो जाता है। कहने को तो हम हिंदीभाषी हैं। लेकिन देखने में आया है कि आम बोलचाल में भी हिंदी भाषा इतनी विकृत कर दी गई है कि आज हम एक सामान्य सा वाक्य भी पूरा हिंदी में नहीं बोलते। आम बोलचाल में अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों ने हिंदी के शब्दों की जगह ले ली है और ये ही प्रचलन में आ गए हैं। ऐसे में हिंदी अपने ही घर में परायी सी हो गई है।
स्कूली शिक्षा में भी अंग्रेजी का दबदबा
देश में स्कूली शिक्षा में अंग्रेजी और इसके शब्दों का ही दबदबा है। अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की बात तो अलग है, ङ्क्षहदी माध्यम वाले स्कूलों में भी ङ्क्षहदी को पढ़ाने और पढऩे का स्तर कमतर हो गया है। अंग्रेजी माध्यम में पढ़े बच्चे 12वीं करने के बाद भी हिंदी के शब्दों को ठीक से नहीं लिख पाते, यह विडंबना ही कही जाएगी।
हिंदीमें अंग्रेजी के शब्द
हम बाजार जाएं तो देखेंगे कि दुकानों, शोरूम, बैंक, संकेतक हमें हर जगह नजर आ जाएंगे। गौर करने वाली बात यह है कि यहां पर हिंदी भाषा में भी अंग्रेजी के ही शब्द दिखाई देंगे। जैसे कलेक्टरेट, शाहाबाद रोड, पुलिस लाइन, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड इत्यादि। यानी कि लिपि में भी हिंदी पर अंग्रेजी ही भारी पड़ती दिखाई देती है। इतना ही नहीं उर्दू शब्द भी काफी प्रचलित हैं। जैसे अस्पताल, दरवाजा, रोशनदान, माफी, तकलीफ आदि। देश में हर वर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। विश्व स्तर पर हिंदी भाषा अंग्रेजी, चीन की मंदारिन (चाइनीज) के बाद तीसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है। इस भाषा को बोलने वालों की संख्या 70 करोड़ से भी अधिक है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य हिंदीभाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना, इसके महत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाना और भारत की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करना है।
14 सितंबर को ही क्यों
हिंदी भाषा (देवनागरी लिपि) को भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया था। इसी के चलते प्रतिवर्ष इस दिन पर राष्ट्रीय ङ्क्षहदी दिवस को मनाया जाता है। इस दिन के अलावा प्रतिवर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस भी मनाया जाता है।
युवा वर्ग में कम हो रहा ङ्क्षहदी का प्रचलन
आज के युवाओं का यह मानना है कि हिंदी बोलना आधुनिकता से परे का कार्य है। पर क्या यह सही है? क्या हमारी संस्कृति और भाषा केवल एक शब्दावली भर है? ङ्क्षहदी में समाहित भावनाएं, वे संस्कार, और वे मूल्य, आज के युवाओं में लुप्त होते नजर आ रहे हैं। हमें यह समझना होगा की भाषा केवल बोलने कि कला नहीं, बल्कि वह संस्कृति और सभ्यता का दर्पण है। यदि हम अपनी भाषा को भूलते हैं, तो एक दिन हमारी संस्कृति का अस्तित्व भी संकट में आ जाएगा। युवा वर्ग को यह जिम्मेदारी लेनी होगी कि वह ङ्क्षहदी को गर्व के साथ बोले, लिखे, और पढ़ें। स्कूल-कॉलेज में हिंदी साहित्य को अधिक से अधिक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। फिल्म, नाटक, गीत, संगीत, मीडिया में हिंदी को प्राथमिकता दी जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी हिंदी को अपनी मातृभाषा के रूप में अपनाएं। आज हिंदी दिवस के पावन अवसर पर यह संदेश हम सबको गुंजन चाहिए कि..।
हिंदी हमारी अस्मिता है, हमारी आत्मा की आवाज है। इसे बोले, अपनाएं, संजोये और सशक्त बनाएं। क्योंकि जब तक हिंदी जीवित रहेगी, हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा और हमारी राष्ट्रीयता भी जीवित रहेगी।
डॉ. हिमानी भाटिया, सहायक प्रोफेसर, ङ्क्षहदी विभाग, राजकीय महाविद्यालय, बारां
Updated on:
13 Sept 2025 10:52 pm
Published on:
13 Sept 2025 10:51 pm