
इमरान खान और सुनीलदत्त। ( फोटो डिजाइन: पत्रिका नेटवर्क)
Imran Khan Cancer Hospital: कैंसर जैसी घातक बीमारी ने न केवल लाखों परिवारों को तोड़ा है, बल्कि कुछ महान व्यक्तियों को भी दर्द की आग में झोंक दिया। लेकिन उसी दर्द से प्रेरणा लेकर पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी मां की याद में शौकत खानम (Shaukat Khanum Hospital) मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल (Imran Khan Cancer Hospital) बनवाया, जो आज दुनिया भर में सुर्खियां बटोर रहा है। इमरान खान अदियाला जेल में मौत होने की अफवाहों के कारण भी सुर्खियों में हैं। वहीं, बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता सुनील दत्त ने अपनी पत्नी नरगिस के कैंसर से हारने के बाद नरगिस दत्त मेमोरियल कैंसर फाउंडेशन (Sunil Dutt Nargis Dutt Foundation) की स्थापना की, लेकिन समय के साथ यह योगदान धुंधला पड़ गया। दोनों की कहानियां दुख की गहराई से जन्मी समाजसेवा की मिसाल हैं, जहां एक तरफ उनकी वैश्विक प्रशंसा हो रही है, तो दूसरी ओर सेवा को भुला देने की मिसाल भी है। आइए, ये अनकहे दर्द और इस समर्पण की दास्तान को समझें।
इमरान खान का जीवन क्रिकेट के मैदान से निकल कर राजनीति और परोपकार की ऊंचाइयों तक पहुंचा, लेकिन 1985 का साल उनके लिए काला अध्याय साबित हुआ, इस साल उनकी मां शौकत खानम की कोलन कैंसर से मौत हो गई। इमरान खान उस वक्त पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान थे, लेकिन मां की बीमारी ने उन्हें झकझोर दिया। वे मां का इलाज करवाने के लिए उन्हें लंदन के रॉयल मार्सडन हॉस्पिटल ले गए, जहां उन्हें अमीरों के लिए उपलब्ध विश्वस्तरीय सुविधाओं के बारे में पता चला। लेकिन पाकिस्तान लौटते ही उन्होंने गरीब मरीजों की बदहाली देखी—जहां कैंसर का इलाज एक सपना था। इमरान खान ने ठान लिया: पाकिस्तान को एक ऐसा कैंसर अस्पताल चाहिए, जहां गरीब-अमीर सबको मुफ्त इलाज मिले। यह सपना आसान न था।
इमरान खान ने 1987 में शौकत खानम मेमोरियल ट्रस्ट की नींव रखी। शुरुआत में दोस्तों और डॉक्टरों ने उन्हें पागल कहा। 'कैंसर का इलाज इतना महंगा है, इसे मुफ्त कैसे चलाओगे ?' लेकिन इमरान खान ने हार नहीं मानी। सन 1989 में लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में भारत-पाक क्रिकेट मैच के दौरान उन्होंने पहली फंडरेजिंग अपील की। फिर सन 1992 के क्रिकेट वर्ल्ड कप में पाकिस्तान की जीत ने लहर पैदा की। इमरान खान ने अपनी प्राइज मनी दान कर दी। अमिताभ बच्चन, मिक जैगर व प्रिंसेस डायना जैसे सेलेब्स ने कॉन्सर्ट आयोजित किए। दानदाताओं ने नकद, सोना औैर यहां तक कि जमीन के कागजात तक दान कर दिए। उसके बाद सन 1994 तक 9 साल की मेहनत के बाद लाहौर में शौकत खानम मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल खुल गया— यह दक्षिण एशिया का पहला चैरिटेबल कैंसर सेंटर बना।
आज यह अस्पताल इमरान खान की विरासत है। अब लाहौर के अलावा पेशावर में दूसरा और कराची में तीसरा अस्पताल बन रहा है। हर साल 1,25,000 से ज्यादा मरीजों का इलाज मुफ्त होता है। यहां 75% मरीज गरीब हैं, जिन्हें दान से चलने वाला यह संस्थान जीवनदान देता है। जॉइंट कमीशन इंटरनेशनल ने इसे गोल्ड सील ऑफ अप्रूवल दिया। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसकी सराहना की। लेकिन सन 2023 में जब इमरान खान जेल में थे, तो कराची अस्पताल के फंडरेजर इवेंट की एनओसी रद्द कर दी गई—यह राजनीतिक बदले की मिसाल है। फिर भी, इमरान खान की अपील पर दुनिया भर से दान आता रहता है। यह अस्पताल न केवल इलाज का केंद्र है, बल्कि कैंसर रिसर्च का हब भी है। इमरान खान कहते हैं, 'मां की याद में यह अस्पताल लाखों मां-बाप को संभाल रहा है।' आज इमरान खान सुर्खियों में हैं—क्रिकेट हीरो से फिलैंथ्रोपिस्ट यानि परोपकारी बने इस शख्स की कहानी प्रेरणा स्रोत है।
दूसरी तरफ, बॉलीवुड स्टार सुनील दत्त की जिंदगी भी कैंसर के साये में बीती। सन 1957 में 'मदर इंडिया' के सेट पर आग लगने से नरगिस को बचाते हुए उन्हें सुनील दत्त से पहली नजर का प्यार हो गया। सन 1958 में शादी हुई, तीन बच्चे—संजय, नम्रता और प्रिया—हुए। लेकिन सन 1980 में नरगिस को पैनक्रियाटिक कैंसर के बारे में पता चला। सुनील दत्त उन्हें अमेरिका के स्लोन केटरिंग हॉस्पिटल ले गए। वहां उनकी सात सर्जरी हुईं, लेकिन कैंसर ने जकड़ लिया। नरगिस कोमा में चली गईं। डॉक्टरों ने लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने की सलाह दी, लेकिन सुनील दत्त ने मना कर दिया। वे घंटों उनके पास बैठे बातें करते—'बच्चे तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।' नरगिस चमत्कारिक रूप से होश में आईं, लेकिन मुंबई लौटते ही 3 मई 1981 को वे चल बसीं। संजय दत्त को तो लगा जैसे आकाश टूट गया—उनकी पहली फिल्म 'रॉकी' रिलीज होने से तीन दिन पहले नरगिस दुनिया से विदा हो गईं।
नरगिस की मौत ने सुनील दत्त को तोड़ दिया। वे रात 3 बजे कब्रिस्तान जाकर घंटों बैठते । संजय दत्त ड्रग्स की लत में डूब गए। लेकिन सुनील दत्त ने दर्द को ताकत में बदला। उन्होंने सन 1981 में न्यूयॉर्क में नरगिस दत्त फाउंडेशन की शुरुआत की, जो 1982 में मुंबई पहुंचा। यह फाउंडेशन कैंसर जागरूकता, ग्रामीण इलाकों में स्क्रीनिंग कैम्प व टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल को उपकरण दान—सब करता था। उन्होंने सन 1983 में भारत का पहला बोन मैरो ट्रांसप्लांट फाइनेंस किया। टाटा मेमोरियल में 'नरगिस दत्त आईसीयू' बनवाया, जिसका राजीव गांधी ने उद्घाटन किया। वहीं 80-100 ग्रामीण अस्पतालों को मेडिकल वैन और एक्स-रे मशीनें दीं। इसके अलावा भूकंप व बाढ़ जैसी आपदाओं के दौरान मदद की। उन्हें सन 2016 में सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ अवॉर्ड मिला। लेकिन आज यह फाउंडेशन भुला दिया गया। सुनील दत्त की सन 2005 में मौत हो गई, तो बेटी प्रिया ने उन्हें संभाला, लेकिन मीडिया में उन्हें इमरान खान की तरह चमक नहीं मिली।
सुनील दत्त राजनीति में भी सक्रिय थे—कांग्रेस सांसद बने, लेकिन उनका असली संघर्ष कैंसर के खिलाफ था। वे हर रविवार कैंसर सर्वाइवर्स से मिलते थे। प्रिया कहती हैं, 'पापा ने मां का सपना पूरा किया, लेकिन समय ने हमें भुला दिया।' फाउंडेशन आज भी 1000 से ज्यादा कैंसर मरीजों का इलाज सपोर्ट करता है। फिर भी, सुनील दत्त का नाम इमरान की तरह चमकता हुआ नजर नहीं आता।
बहरहाल, दोनों कहानियां दर्द से जन्मी हैं—इमरान खान ने मां खोई, सुनील दत्त ने जीवन का हमसफर खोया। एक ने अस्पताल बनवाया, दूसरे ने फाउंडेशन। लेकिन मीडिया का फर्क साफ है: इमरान की वैश्विक अपील उन्हें सुर्खियां देती है, जबकि सुनील दत्त का भारतीय योगदान धुंधला है। कैंसर आज भी लाखों को निगल रहा है—भारत में हर साल 14 लाख नए केस सामने आते हैं। दोनों की विरासत हमें सिखाती है: दर्द को दान में बदलो। इमरान खान की तरह जोरशोर से सेवा करो, सुनील की तरह चुपचाप सेवा करो।
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Updated on:
29 Nov 2025 02:26 pm
Published on:
29 Nov 2025 02:25 pm
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