जयपुर। झालावाड़ के पिपलोदी गांव में स्कूल भवन ढहने से राजूबाई और विनती देवी ने अपनी इकलौती संतानों को हमेशा के लिए खो दिया था। दर्द की उस काली रात ने उनके जीवन को सूना कर दिया। बच्चे के जन्म के बाद कराई नसबंदी ने मातृत्व का द्वार बंद कर दिया था, लेकिन दिल में बसी ममता कभी मरी नहीं। सालों की उदासी के बाद जिला अस्पताल पहुंचीं, जहां डॉक्टरों ने असंभव को संभव बना दिया। दुर्लभ रिवर्स ऑपरेशन से ट्यूबल रीकेनालाइजेशन सफल हुआ, अब गर्भधारण की राह खुली है। आंसुओं भरी मुस्कान के साथ दोनों कहती हैं—भगवान ने दूसरा मौका दिया, डॉक्टरों ने इसे साकार किया। घर में फिर किलकारियां गूंजेंगी, खोया हुआ सूरज फिर उगेगा। यह कहानी दर्द की गहराई और उम्मीद की चमक की है, जहां मातृत्व का दिया बुझने से पहले फिर जल उठा।
हादसे की त्रासदी ने छीना सबकुछ
पिपलोदी में स्कूल भवन गिरने से सात से अधिक मासूमों की जान गई। राजूबाई का बेटा और विनती देवी की बेटी भी दबकर चले गए। इकलौते बच्चे की मौत ने परिवारों को मातम में डुबो दिया। हादसे के बाद सरकार ने कार्रवाई की, प्रदेशभर में स्कूल भवनों की नई एसओपी लागू हुई, लेकिन इन माताओं का दर्द अनसुना रह गया।
डॉक्टरों ने जोखिम बताया
राजूबाई ने 16 वर्ष पहले, विनती देवी ने 6 वर्ष पहले परिवार नियोजन ऑपरेशन कराया था। बच्चे खोने के बाद फिर मां बनने की चाहत जागी, जो नामुमकिन लगती थी। झालावाड़ जिला अस्पताल में व्यथा सुनाई, डॉक्टरों ने पहले जोखिम बताया, फिर गहन जांच के बाद सर्जरी का फैसला लिया।
सफल सर्जरी ने लौटाई खुशी
डॉ. मनोत और डॉ. राशिद ने घंटों की जटिल रिवर्स सर्जरी की। सभी टेस्ट साफ होने पर ऑपरेशन सफल रहा। अब दोनों स्वस्थ हैं, गर्भ ठहरने की संभावना बनी। भावुक माताएं बोलीं-डॉक्टरों ने चमत्कार किया, घर में फिर हंसी लौटेगी।