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उदयपुर में चमकदार इमारतों के भीतर छिपा आग का साया, गलियों-बाजारों-अस्पतालों और कोचिंग सेंटर में हर वक्त खतरा

उदयपुर की 450 से ज्यादा व्यावसायिक इमारतों में से 60 प्रतिशत के पास वैध फायर एनओसी नहीं है। करीब 200 कोचिंग सेंटरों में 80 प्रतिशत असुरक्षित और कई में फायर सिस्टम अधूरा है। पुराने बाजारों की जर्जर वायरिंग और सिलेंडर खतरा बढ़ा रहे हैं।

Fire threat in Udaipur
बेसमेंट में बने गोदाम और दिखावे के अग्निशमन उपकरण (फोटो- पत्रिका)

Udaipur News: उदयपुर शहर की इमारतें मानों हादसे का इंतजार कर रही हैं। जयपुर के एसएमएस अस्पताल में आग से आठ की मौत के बाद भी उदयपुर प्रशासन और भवन संचालक नहीं चेते। शहर के कई बाजार, निजी अस्पताल, कोचिंग सेंटर और बड़े व्यावसायिक भवनों में फायर सेफ्टी सिर्फ कागजों पर पूरी दिखाई देती है।


हकीकत में 60 फीसदी इमारतें बिना वैध एनओसी के संचालित हो रही हैं। उन्हें निगम ने नोटिस भी थमाए हैं। कइयों ने उन्हें सही भी करवाया, लेकिन कई अभी भी दिखावा कर रहे हैं। कई इमारतों में फायर फाइटिंग सिस्टम अधूरा है, सिलेंडर एक्सपायर हो चुके हैं। महीनों से कोई फायर ड्रिल नहीं हुई। फायर विभाग ने नोटिस तो थमाए, लेकिन सुधार के नाम पर ज्यादातर जगह स्थिति जस की तस है।


शहर में 450 से अधिक व्यावसायिक इमारतें हैं, जिनमें से 60 प्रतिशत के पास वैध फायर एनओसी नहीं है। इनमें बड़े मॉल, निजी स्कूल, होटल, निजी हॉस्पिटल और कोचिंग सेंटर शामिल हैं। हादसे के बाद निगम ने उन्हें नोटिस भी थमाते हुए उपकरण लेकर एनओसी के लिए कहा था, लेकिन अभी भी अधिकांश की बाकी है।


फायर अधिकारियों का कहना है कि हाल के निरीक्षण में कई जगह फायर अलार्म और वॉटर स्प्रिंकलर नहीं मिले। उन्होंने कई संस्थानों को नोटिस जारी किए। अधिकांश संस्थान एनओसी के लिए आवेदन तक नहीं करते।


नई प्रक्रिया ऑनलाइन शुरू की है, ताकि पारदर्शिता बढ़े, पर लोगों में जागरुकता की कमी है। अधिकारियों ने लोगों से आग्रह किया है वे मॉल, सिनेमा, होटल या कोचिंग में जाते समय यह अवश्य देखें कि वहां फायर एग्जिट कहां है और फायर सिस्टम काम कर रहा है या नहीं।


गलियों में हरदम खतरा, बाजारों की हालत खराब


शहर के प्रमुख मॉलों में फायर फाइटिंग सिस्टम तो लगे हैं, पर नियमित फायर ड्रिल नहीं होती। वहीं, हाथीपोल, बापू बाजार, सूरजपोल और टाउनहॉल जैसे पुराने बाजारों में जर्जर इलेक्ट्रिक वायरिंग, दुकानों में रखे गैस सिलेंडर, इन्वर्टर और जेनरेटर हर वक्त आग का खतरा बढ़ाते हैं।


इन बाजारों की संकरी गलियां और भीड़-भाड़ ऐसी है कि दमकल की गाडियां वहां तक पहुंच भी नहीं पाती। कई पुराने भवनों का मेंटेनेंस सालों से नहीं हुआ और फायर उपकरण खराब पड़े हैं। नगर निगम ने कुछ भवन मालिकों को नोटिस जारी किए हैं, पर कार्रवाई अब तक अधूरी है।


हॉस्पिटल और कोचिंग सेंटर में हर वक्त खतरा


शहर में करीब 200 कोचिंग सेंटर संचालित हैं, जिनमें से 80 फीसदी के पास फायर एनओसी नहीं है। इनमें से कई बेसमेंट या ऊपरी मंजिलों में चल रहे हैं, आग की स्थिति में निकलने का रास्ता तक नहीं।


दिल्ली और सूरत में हादसों के बाद भी यहां सुरक्षा के मानकों की गंभीर रूप से अनदेखी की जा रही है। इसी तरह कई निजी संस्थानों में फायर फाइटिंग सिस्टम अधूरा या बंद है। कुछ में तो केवल एक दो सिलेंडर ही सुरक्षा के नाम पर रख दिए हैं। दिल्ली हादसे के बाद निगम ने इनकी जांच की थी तो कई खामियां मिली थी।


शहर की यह है स्थिति


-450 से अधिक व्यावसायिक इमारतें शहर में
-60 प्रतिशत के पास वैध फायर एनओसी नहीं
-200 कोचिंग सेंटर में से 80 प्रतिशत बिना एनओसी
-मॉल में सिस्टम है, लेकिन ड्रिल नहीं
-पुराने बाजारों में जर्जर वायरिंग और सिलेंडर खतरा बढ़ा रहे


कई को नोटिस दिए, अधिकांश में सुधार नहीं


कुछ समय पहले ही शहर की बड़ी इमारतों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों व कोचिंग सेंटर की जांच की थी। बेसमेंट में चल रहे थे उनकी सीज की कार्रवाई भी हुई थी। सभी को फायर फाइटिंग सिस्टम लगवाकर एनओसी की पाबंद किया था। कइयों ने एनओजी ली है और यह क्रम लगातार जारी है।
-बाबूलाल चौधरी, अग्निशमन अधिकारी