
बनेठा। राष्ट्रीय राजमार्ग 116 के समीप अरावली की ऊंची-नीची पहाड़ियों के बीच स्थित हाथी-भाटा प्राकृतिक सौंदर्य, पौराणिक इतिहास और धार्मिक आस्था का विलक्षण संगम है। एक ही विशाल चट्टान को तराशकर बनाए गए इस शिल्प को जनश्रुतियों के अनुसार एक रात में निर्मित किया गया था।
पाषाण पर उकेरा गया विशालकाय हाथी आज भी राजस्थान की प्राचीन शिल्पकला की अनूठी मिसाल का जीवंत प्रतीक है। इसके महत्व के बावजूद यह क्षेत्र आज तक राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग या पर्यटन विभाग की सूची में शामिल नहीं हो पाया है, जिससे विकास की संभावनाएं सीमित बनी हुई हैं।
पर्यावरण प्रेमी कवि संदीप कुमार जैन ने बताया कि यहां वर्षभर पर्यटक आते हैं, पर सुविधाओं के अभाव में इसका विकास ठहर गया है। पर्यटन का दर्जा मिलने पर यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय पहचान भी बना सकता है और स्थानीय युवाओं के रोजगार का बड़ा केंद्र हो सकता है। ग्राम खेडा निवासी रामजीलाल जाट ने बताया कि कई बार प्रशासनिक अधिकारी यहां का अवलोकन कर विकास का आश्वासन दे चुके हैं, लेकिन अब तक केवल मुख्य मार्ग पर बोर्ड ही लगे हैं, जबकि स्थल पर आधारभूत सुविधाओं का अभाव अब भी बना हुआ है। हाथी-भाटा अपने पौराणिक इतिहास, प्राकृतिक आकर्षण और शिल्पकला के कारण राजस्थान के अनमोल धरोहरों में से एक है, लेकिन उचित संरक्षण और विकास के बिना अपेक्षित पहचान से दूर है।
पंडित एवं ज्योतिषाचार्य देवकीनंदन शर्मा ने बताया कि द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडव इस अरण्य क्षेत्र में आए थे। पांचों पांडवों ने मिलकर विशाल चट्टान को हाथी के रूप में तराशा था। दूर से एक सूंड वाला यह हाथी दिखता है, लेकिन पास जाकर देखने पर तीन सूंडें स्पष्ट नजर आती हैं। हाथी के समीप पथरीली चट्टान पर 64 गोलाकार थालीनुमा गड्ढे भी बने हैं, जिन्हें हवन कुंड माना जाता है। मान्यता है कि पांडवों ने 64 योगिनियों को प्रसन्न करने तथा मां दुर्गा और भैरवनाथ की उपासना के लिए इसी स्थान पर यज्ञ किया था।
हाथी-भाटा से लगभग 200 मीटर दूरी पर 80 फीट ऊंची चट्टान पर प्राचीन शिवलिंग स्थापित है, जिसकी स्थापना द्वापर युग पूर्व की मानी जाती है। पांडवों के बाद कई तपस्वियों ने यहां साधना की। स्थानीय निवासी आज भी किसी भी मांगलिक कार्य या फसल बुवाई से पहले प्रथम पूज्य गजानंद गणेश के प्रतीक स्वरूप हाथी-भाटा की पूजा करते हैं।
हाथी-भाटा से कुछ दूरी पर वी-आकार के दो कुंड स्थित हैं, जिनकी गहराई का आज तक पता नहीं लगाया जा सका। कई बार प्रयास किए जाने के बावजूद जलराशि की थाह नहीं मिली, जिससे इनमें रहस्य और बढ़ जाता है।
Published on:
27 Nov 2025 03:27 pm

