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एल नीनो अब हर 2 से 5 साल में अधिक नियमित रूप से होने लगा है

एक नए क्लाइमेट मॉडल अध्ययन के अनुसार, एल नीनो आने वाले समय में और ज्यादा मजबूत और नियमित हो सकता है। यह प्रशांत महासागर की एक जलवायु घटना है, जो दुनिया भर के मौसम को प्रभावित करती है। यदि इसकी प्रकृति बदलती है, तो इसका असर लगभग पूरे ग्रह पर पड़ेगा।

जयपुर। एक नए क्लाइमेट मॉडल अध्ययन के अनुसार, एल नीनो आने वाले समय में और ज्यादा मजबूत और नियमित हो सकता है। यह प्रशांत महासागर की एक जलवायु घटना है, जो दुनिया भर के मौसम को प्रभावित करती है। यदि इसकी प्रकृति बदलती है, तो इसका असर लगभग पूरे ग्रह पर पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह समझने के लिए उन्नत जलवायु मॉडल का उपयोग किया कि 21वीं सदी में अधिक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र पर क्या असर होगा।

मुख्य बातें

  • शोध में पाया गया कि एल नीनो हर 2 से 5 साल में नियमित रूप से आ सकता है, जिससे दुनिया भर में बारिश और तापमान बदल जाएंगे।
  • यह काम यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई के वैज्ञानिक माल्टे एफ. स्ट्युक्कर के नेतृत्व में किया गया।
  • मॉडल दिखाता है कि गर्म होते विश्व में उष्णकटिबंधीय प्रशांत ‘क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट’ से गुजर सकता है, जहाँ थोड़ा सा तापमान बढ़ना भी बड़े बदलाव ला सकता है।
  • भविष्य के सिमुलेशन में समुद्र की सतह का तापमान गर्म और ठंडे चरणों में बहुत तेज़ी से बदलता दिखा।

एल नीनो-सदर्न ऑसिलेशन (ENSO)

  • ENSO पृथ्वी की जलवायु प्रणाली का एक महत्वपूर्ण चक्र है, जो बारिश, सूखा और तूफानों के पैटर्न बदल देता है।
  • अभी एल नीनो और ला नीना कई वर्षों बाद अनियमित रूप से आते हैं, लेकिन भविष्य में यह ज्यादा नियमित और मजबूत हो सकता है।

दुनियाभर पर असर

मॉडल में देखा गया कि:

  • समय के साथ एल नीनो/ला नीना के उतार-चढ़ाव ज्यादा और निश्चित अंतराल पर आने लगे
  • इस बदलाव से दुनिया की अन्य जलवायु प्रणालियाँ, जैसे नॉर्थ अटलांटिक ऑसिलेशन, भारतीय मानसून, अटलांटिक महासागर के मौसम पैटर्न, इसके साथ तालमेल में आने लगीं।
  • इससे दक्षिणी कैलिफोर्निया, स्पेन और पुर्तगाल जैसे क्षेत्रों में बारिश के उतार-चढ़ाव और तेज़ होंगे, कभी बहुत ज्यादा बारिश, कभी बहुत सूखा।

क्या परिणाम होंगे?

  • पानी प्रबंधन, कृषि और शहरों की योजनाओं के लिए चुनौती बढ़ जाएगी।
  • मौसम पूर्वानुमान थोड़ा बेहतर हो सकता है, पर प्रभाव ज्यादा गंभीर होंगे
  • सूखे से बाढ़ या बाढ़ से सूखे में बदलाव बहुत तेज़ी से हो सकता है, जिसे हाइड्रो-क्लाइमेट व्हिपलैश कहा जाता है।

यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है।