भगत सिंह वार्ड में मुनिसुव्रतनाथ जिनालय में संचालित हो रही प्रणम्य प्राथमिक पाठशाला, प्रतिदिन 1 घंटे लगती है कक्षा
सागर . प्राकृत हमारे देश की प्राचीन भाषा रही है। समय के साथ हम इस भाषा को भूल ही गए। अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के दौर में जब बच्चे हिंदी भी सही से नहीं बोल पा रहे हैं, तब जैन समाज के बच्चों को प्राकृत भाषा सिखाने की नई पहल शुरू की गई है। आचार्य विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनि प्रणम्य सागर ने अनेक माध्यमों से इस प्राचीन भाषा का प्रचार प्रसार किया और इस भाषा को नवजीवन प्रदान किया। मुनि प्रणम्य सागर के निर्देशन में ही शहर के भगत सिंह वार्ड स्थित मुनिसुव्रतनाथ जिनालय में बच्चों को प्राकृत भाषा का ज्ञान कराया जा रहा हैं। यहां पढ़ाई कर रहे बच्चे प्राकृत भाषा को लिखने के साथ बोल भी रहे हैं।
बच्चों ने सीखा प्रथम भाग
पाठशाला का संचालन कर रही अनुभा जैन ने बताया कि बच्चों को अभी प्रथम भाग सिखाया गया है। पहले भाग में 52 अक्षर, गिनती, 24 तीर्थंकर के नाम, गति, इंद्रियां और ग्रामर सिखाई गई है। जिससे बच्चे प्राकृत भाषा बोलने लगे हैं। इस भाषा में उन्हें स्तुति याद कराई गई हैं। प्राकृत भाषा में रचित जिनवाणी स्तुति इतनी प्रसिद्ध स्तुति बन गई है कि प्राय: सभी उत्सवों और आयोजनों में इस स्तुति को पढ़ा जाता है। छोटे-छोटे बच्चों को भी यह स्तुति याद रहती है। उन्होंने बताया कि बच्चे भी भाषा को सीखने के लिए उत्साहित हैं। प्रतिदिन मंदिर में शाम को कक्षा संचालित की जाती है। इसके माध्यम से बच्चे मोबाइल से भी दूर रहते हैं और उन्हें धार्मिक संस्कार सीखने को मिलते हैं।
सभी मंदिरों के बच्चे हो सकते हैं शामिल
अनुभा जैन ने बताया कि प्राकृत भाषा पाठशाला की जानकारी जैन समाज के सभी मंदिरों में भी दी जा रही है, जिससे अधिक-अधिक बच्चों को जोड़ा जा सके। उन्होंने बताया कि बड़ों के लिए मुनि प्रणम्य सागर के मार्गदर्शन से ऑनलाइन पाठशाला संचालित की जा रही है। प्राकृत पाठशालाओं के माध्यम से हजारों विद्यार्थी प्राकृत भाषा का ज्ञान ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों के प्रोत्साहन के लिए मंदिर कमेटी समय-समय पर उन्हें गिफ्ट भी देती है, ताकी बच्चे उत्साह के साथ पाठशाला आएं।
Published on:
12 Sept 2025 12:03 pm