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Mahalaya Amavasya 2025: पितरों की शांति के लिए महालया अमावस्या पर तर्पण का सही समय और तरीका

Mahalaya Amavasya 2025: हिंदू पंचांग में महालया अमावस्या का दिन अत्यंत पवित्र और शुभ माना गया है। इस दिन खास समय पर तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

भारत

MEGHA ROY

Sep 19, 2025

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Pitru Tarpan on Mahalaya Amavasya|फोटो सोर्स - Freepik

Mahalaya Amavasya 2025: हिंदू पंचांग में महालया अमावस्या का दिन अत्यंत पवित्र और शुभ माना गया है। यह दिन पितृ पक्ष के समापन और शारदीय नवरात्रि के आरंभ का प्रतीक है। मान्यता है कि इस तिथि को जहां एक ओर पितरों को तर्पण और पिंडदान देकर विदा किया जाता है, वहीं दूसरी ओर मां दुर्गा धरती पर अपने भक्तों के कल्याण के लिए आगमन करती हैं। महालया अमावस्या में पितृकों को विदा करने का अंतिम दिन होता है। इस दिन खास समय पर तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। जानिए शुभ समय और महालया अमावस्या का महत्व।

महालया अमावस्या का मुहूर्त

साल 2025 में महालया अमावस्या 21 सितंबर, रविवार की रात 12:16 बजे से शुरू होकर 22 सितंबर, सोमवार की सुबह 1:23 बजे तक रहेगी। इसी के साथ अगले दिन यानी 22 सितंबर से शारदीय नवरात्र का शुभारंभ होगा।

महालया अमावस्या पर पितरों की विदाई का महत्व

  • यह दिन पितरों को विदाई देने और उनकी आत्मा की शांति के लिए विशेष होता है।
  • इस तिथि पर किया गया पिंडदान और तर्पण पितरों को तृप्त करता है और परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है।
  • दान-पुण्य करने से फल कई गुना बढ़कर प्राप्त होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
  • गंगा स्नान और श्राद्ध कर्म से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और जीवन में बाधाएं दूर होती हैं।
  • धार्मिक दृष्टि से यह दिन इसलिए भी खास है क्योंकि महालया के साथ ही देवी दुर्गा की पूजा की शुरुआत हो जाती है। बंगाल में इसी दिन मां दुर्गा की मूर्तियों की आंखों में रंग भरे जाते हैं, जिसे “चक्षु दान” कहा जाता है।

तर्पण का सही समय (मुहूर्त)

  • कुतुप मूहूर्त- सुबह 11:50 AM से लेकर दोपहर 12:38 PM तक रहेगा
  • रौहिण मूहूर्त- दोपहर 12:38 PM से लेकर दोपहर 1:27 PM तक रहेगा
  • अपराह्न काल- दोपहर 1:27 PM से लेकर दोपहर 3:53 PM तक रहेगा

पितरों को कैसे करें तर्पण और विदाई

  • सूर्योदय के बाद किसी पवित्र नदी, तालाब या जलाशय के किनारे बैठकर तिल, जौ और कुश से युक्त जल दक्षिण दिशा की ओर अर्पित करें।
  • ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।
  • परंपरा के अनुसार केले के पत्ते पर पंचबलि भोग निकालकर गाय, देवताओं, कौए, कुत्ते और चींटियों को अर्पित करें।
  • संध्या के समय नदी या तालाब किनारे दीपदान करें। घर में भी तुलसी या पानी रखने वाले स्थान पर तेल का दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
  • पितरों से हुई भूल-चूक के लिए क्षमा याचना करें और उनके आशीर्वाद की कामना करें।