
गेस्ट राइटर माया बैरागी शिक्षक है।
रतलाम। मेरी करीबी मित्र पूजा, कई दिन से उखड़ी-उखड़ी सी नजर आ रही थी। जब गहराई व भरोसे में लेकर कारण जानना चाहा तो गले लगकर जोर से रो दी। बताया उसके मन में आत्महत्या का विचार आ रहा है, क्योंकि उसके हर काम में कमी निकाली जाती है, अपशब्द का प्रयोग किया जाता है। पूजा को तो मैंने समझा दिया, लेकिन तब से यही सोच रही अगर समय रहते संवाद नहीं किया होता तो क्या होता। अपने आसपास अब जरुरत है नजर दौड़ाई जाए, कहीं कोई अचानक उदास या हताश तो नहीं है। समय रहते संवाद करना जरूरी है, जिससे हम संभावित आत्महत्या को रोक पाए।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है, समाज में ही उसका चहुंमुखी विकास होता है। इसी के साथ प्रत्येक व्यक्ति समाज के नियम और कायदों से बंधा होता है। समाज में होने वाली प्रत्येक घटना व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। इसी समाज का अंग परिवार है, जिसमें कोई बच्चा जन्म लेता है और बड़ा होता है। फिर वह समाज के बीच जाकर अपनी दिनचर्या को पूरा करते हुए जीवन बिताता है। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन एक जैसा नहीं होता, कुछ का सहज और आनन्दमय तो किसी का दुखों और कठिनाइयों से भरा हो सकता है। किसी को बचपन से ही सारे संसाधन उपलब्ध होते हैं तो कोई इनसे वंचित रह जाता है। कुछ व्यक्ति कठिनाइयों से लड़ते हुए आगे बढ़ते हैं वहीं कुछ इन कठिनाई को झेल नहीं पाते। कुछ सहजता से जीने वाले व्यक्तियों के जीवन में अचानक बदलाव आने पर वे असहज हो जाते हैं, और यदि उन पर परिवार द्वारा ध्यान नहीं दिया गया तो वे अवसाद में चले जाते हैं और यदि अवसाद लम्बे समय तक रहता है तो इन परिस्थितियों में कुछ लोग निराश होकर अपना जीवन समाप्त करने का कदम उठा लेते हैं। जिसे हम आत्महत्या कहते हैं।
करीब 8 लाख लोग करते आत्महत्या
आत्महत्या और इसके कारणों के आंकडों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि दुनिया में लगभग आठ लाख से दस लाख तक लोग हर साल आत्महत्या करते हैं, और इनमें 15 से 30 साल के युवा तथा 70 साल से ऊपर के बुजुर्ग अधिक होते हैं। आत्महत्या के मामले बहुत गरीब लोगों में कम देखे गए हैं। जबकि इनमें संसाधनों की कमी देखी जाती है इससे साबित होता है कि आत्महत्या का संसाधनों से कोई संबंध नहीं है। हम अपने आसपास देखते हैं कि बहुत प्रसिद्ध और सम्पन्न व्यक्ति या कोई तेज बुद्धि का विद्यार्थी भी आत्महत्या कर लेता है। प्रसिद्ध फ्रेंच समाजशास्त्री इमाइल दुर्खिम ने करीब छब्बीस हजार आत्महत्या के मामलों का अध्ययन किया और इसके आधार पर आत्महत्या के तीन प्रकार बताए पहला- आत्मकेंद्रित या स्वार्थी, दूसरा- दूसरे के लिए आत्महत्या करना और तीसरा-अचानक सामाजिक परिवर्तन होने पर आत्महत्या करना।
जीवन से इतना तंग क्यों आ जाते
आखिर कुछ लोग अपने जीवन से इतना तंग क्यों आ जाते हैं कि आत्महत्या जैसा कदम उठाने पर मजबूर होते हैं। हमें इसके कारणों को समझना होगा। प्रसिद्ध समाजशास्त्री दुर्खीम ने अलग अलग शहरों में आत्महत्या के आंकडों का अध्ययन किया तो देखा कि एक शहर में अलग अलग सालों में आत्महत्या की संख्या लगभग बराबर है। इस आधार पर उन्होंने कहा कि आत्महत्या का कारण व्यक्ति नहीं बल्कि समाज है। समाज ही आत्महत्याओं की परिस्थितियां पैदा करता है। यह व्यक्तिगत मनोविज्ञान नहीं बल्कि सामाजिक मनोविज्ञान का विषय है। अब जरुरत है ऐसे मामलों पर नियंत्रण किया जाए, इसके लिए समाज को आगे आना होगा, शुरुआत अपने घर से करना होगी।
Published on:
02 Nov 2025 12:33 am

