रेलमगरा. तपती दोपहरी में पसीना बहाकर, बरसती बारिश में कीचड़ में फिसलते हुए, कड़कती बिजली और हाड़ कंपाने वाली ठण्ड में भी खेतों में मेहनत करने वाला किसान तभी सुकून की सांस लेता है जब उसकी मेहनत की फसल घर तक पहुंचती है। पर गिलूण्ड और आसपास के गांवों के किसानों के लिए इस बार उनकी मेहनत रंग नहीं लाई। मातृकुण्डिया बांध से छोड़े गए अतिरिक्त पानी ने उनकी उम्मीदों को खेतों में ही डुबो दिया।
गिलूण्ड कस्बे और आसपास के गांवों के किसान इन दिनों अपने खेतों में पंप लगाकर पानी निकालने की जद्दोजहद कर रहे हैं। आंखों में आंसू और चेहरे पर थकान लिए ये काश्तकार कभी पानी पंप से निकालते हैं, तो कभी बची-खुची फसलों को काटकर पशुओं को खिलाने में जुट जाते हैं। मक्का, कपास, ज्वार और दलहन जैसी फसलें सैकड़ों बीघा खेतों में जलमग्न हो चुकी हैं। कई किसानों ने डर से अधपकी फसलें काट दीं, ताकि कम से कम पशुओं का पेट तो भरा जा सके।
कुछ ही दिन पहले मातृकुण्डिया बांध का जलस्तर 22.6 फीट की तय सीमा से बढ़कर एक फीट अधिक हो गया। वजह थी लगातार बारिश और बनास नदी में आई तेज आवक। नदी में कार बह जाने से चार लोगों की मौत के बाद प्रशासन ने बांध के गेट खोलने में देर कर दी, नतीजतन पानी पीछे की ओर खेतों में भर गया। हालांकि अगले ही दिन गेट खोलकर पानी निकाला गया, लेकिन खेतों में जमा बेकवाटर निकल नहीं पाया। इस बीच मूसलाधार बारिश ने हालात और बिगाड़ दिए।
मदनलाल जाट, गिलूण्ड ने बताया कि पांच बीघा कपास और दो बीघा रिजका डूब गया। मोटर चलाकर पानी निकाल रहे हैं, लेकिन लंबे समय तक पानी रहने से फसलें सड़ चुकी हैं। भागीरथ जाट, गिलूण्ड ने बताया कि हमारा पूरा परिवार डूब क्षेत्र के डर से दूसरे काम करने लगा। सूचना मिली तो गुजरात से वापस आया, लेकिन खेत में कपास, मक्का और रिजका पूरी तरह खत्म हो गई। कैलाश जाट, गिलूण्ड ने बताया कि डूब क्षेत्र में तो बुवाई ही नहीं करते, लेकिन इस बार गैर-डूब क्षेत्र के खेत भी डूब गए। छह बीघा कपास, तीन बीघा रिजका और दो बीघा मक्का सब खत्म। अब रबी की बुवाई भी अधर में है।
सहायक कृषि अधिकारी सुशीला जाट ने कहा कि नुकसान की जानकारी मिली है। क्रॉप कटिंग के दौरान सर्वे करवाकर उच्च स्तर पर रिपोर्ट भेजी जाएगी।
Published on:
15 Sept 2025 09:31 am