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फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र पर सरकारी नौकरी का खेल बेनकाब, दोबारा होगा मेडिकल परीक्षण, दोषियों पर लटकी तलवार

राजस्थान में सरकारी नौकरी पाने के लिए फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने का खेल आखिरकार पकड़ में आ गया है।

Primary Education Bikaner
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राजसमंद. राजस्थान में सरकारी नौकरी पाने के लिए फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र बनाने का खेल आखिरकार पकड़ में आ गया है। शिक्षा विभाग ने इस मामले में ज़ीरोटॉलरेंस नीति अपनाते हुए बड़ा फैसला लिया है। अब तक दिव्यांग श्रेणी में भर्ती हुए सभी शिक्षकों और कर्मचारियों का दोबारा मेडिकल परीक्षण होगा।

निदेशक का सख्त आदेश

प्रारंभिक शिक्षा निदेशक सीताराम जाट ने आदेश जारी करते हुए कहा है कि –

  • हर उस कर्मचारी का मेडिकल बोर्ड से परीक्षण होगा जिसने दिव्यांग श्रेणी में नौकरी पाई है।
  • यदि जांच में कोई कार्मिक मानकों पर खरा नहीं उतरता है या फर्जी प्रमाण पत्र पेश करता पाया जाता है तो उसके खिलाफ तुरंत कठोर कार्रवाई होगी।
  • ऐसे मामलों की जानकारी सीधे कार्मिक विभाग और एसओजी (स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप) को भेजी जाएगी, ताकि आगे आपराधिक जांच भी की जा सके।

किन भर्तियों में फंसा शक का जाल?

पिछले कुछ वर्षों में हुई शिक्षक भर्तियों पर अब सवाल उठने लगे हैं। शिकायतों का सिलसिला इतना गंभीर था कि सरकार को एसओजी से जांच करानी पड़ी।

  • शिक्षक भर्ती 2016
  • शिक्षक भर्ती 2018
  • शिक्षक भर्ती 2021-22
  • शिक्षक भर्ती 2022

इन सभी भर्ती चरणों में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र लगाकर नौकरी हथियाने के आरोप सामने आए। शुरुआती जांच में ही कई चौंकाने वाले मामले उजागर हो चुके हैं।

क्या है बेंचमार्क दिव्यांगता?

नए आदेशों के अनुसार, अब सभी कर्मचारियों की बेंचमार्क दिव्यांगता और प्रतिशत की जांच होगी। यह परीक्षण संभाग स्तर पर प्राधिकृत मेडिकल कॉलेज या हॉस्पिटल के बोर्ड से कराया जाएगा। दरअसल, नियमों के मुताबिक नियुक्ति के समय ही बेंचमार्क परीक्षण अनिवार्य था। लेकिन कई मामलों में अधिकारियों ने सिर्फ मेडिकल रिपोर्ट के प्रतिशत को मानकर नियुक्ति दे दी। यही लापरवाही आज बड़े घोटाले का रूप ले चुकी है।

दो माह की डेडलाइन

  • शिक्षा विभाग ने सभी जिला परिषद सीईओ और जिला शिक्षा अधिकारियों को आदेश दिए हैं कि –
  • दो माह के भीतर मेडिकल परीक्षण और रिपोर्टिंग पूरी करें।
  • फर्जी पाए जाने वालों पर नियमानुसार कार्रवाई कर तुरंत रिपोर्ट भेजें।
  • ताकि दोषियों की जानकारी कार्मिक विभाग और एसओजी तक पहुंच सके।

भीम का ताजा मामला – भूगोल प्राध्यापक निकला फर्जी दिव्यांग

  • फर्जीवाड़े का सबसे ताजा मामला भीम उपखंड क्षेत्र से सामने आया है।
  • कालादेह ग्राम पंचायत के धोटी गांव निवासी महेंद्रपाल सिंह रावत ने सुनने में कठिनाई (श्रव्यबाध्यता) का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाया।
  • इसी आधार पर उन्हें राजकीय महाविद्यालय देवगढ़ में भूगोल विषय का सहायक प्राध्यापक नियुक्त कर दिया गया।
  • लेकिन हाल ही में मेडिकल बोर्ड की जांच में यह साफ हो गया कि वे दिव्यांगता के मानकों पर खरे ही नहीं उतरते।

एसओजी की जांच में चौंकाने वाले खुलासे

  • एसओजी की अब तक की जांच ने पूरे घोटाले की जड़ें हिला दी हैं—
  • प्रदेशभर से 42 संदिग्ध मामलों की पहचान की गई।
  • पहले चरण में 29 कर्मचारियों और अधिकारियों का मेडिकल परीक्षण हुआ।
  • रिपोर्ट में खुलासा – 24 कर्मचारी पूरी तरह फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे थे।
  • इस सूची में भीम के महेंद्रपाल सिंह का नाम भी शामिल है।

पारदर्शिता पर सवाल, योग्य उम्मीदवारों से धोखा

  • यह मामला सिर्फ कागजी हेराफेरी नहीं, बल्कि योग्य और मेहनती उम्मीदवारों के हक पर डाका डालने जैसा अपराध है।
  • जिन युवाओं ने कड़ी मेहनत करके प्रतियोगी परीक्षाएं पास कीं, उनका हक फर्जी कागज वाले लोग छीन ले गए।
  • इससे न सिर्फ शिक्षक भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं, बल्कि सरकारी व्यवस्था की साख भी दांव पर लगती है।

आगे क्या?

  • अब शिक्षा विभाग के आदेशों से साफ है कि—
  • फर्जी प्रमाण पत्र वालों की नौकरी खतरे में है।
  • दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों पर कानूनी शिकंजा कसना तय है।
  • और भविष्य में ऐसे खेल रोकने के लिए भर्ती प्रक्रिया को और कड़ा व पारदर्शी बनाया जाएगा।