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60 लाख की लागत से बनी सड़क 2 साल में टूटी, 5 लाख का पैच वर्क भी 6 महीने में बहा, ग्रामीणों की मुश्किलें बढ़ीं

उपखंड क्षेत्र की पीपलीनगर ग्राम पंचायत से रावलीआंगनवाड़ी तक करीब दो साल पहले डीएमएफटी फंड से 60 लाख रुपये की लागत से डामरीकरण सड़क बनाई गई थी।

Road Break
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भीम. उपखंड क्षेत्र की पीपलीनगर ग्राम पंचायत से रावलीआंगनवाड़ी तक करीब दो साल पहले डीएमएफटी फंड से 60 लाख रुपये की लागत से डामरीकरण सड़क बनाई गई थी। निर्माण एजेंसी ने उस समय दावा किया था कि सड़क की गारंटी अवधि पाँच साल की होगी। लेकिन हकीकत यह है कि महज डेढ़ साल बाद ही सड़क जगह-जगह से टूट गई। बरसात ने तो हालात और बिगाड़ दिए। 10 से अधिक स्थानों पर सड़क पानी में बह गई और नीचे की पुरानी मिट्टी बाहर निकल आई। सड़क पर गिट्टियां बिखर चुकी हैं और पुरानी परत अब साफ दिखाई देने लगी है। ग्रामीणों का कहना है कि यह सड़क उनके लिए विकास का रास्ता खोलने वाली थी, लेकिन अब यह परेशानी का सबब बन चुकी है।

पैच वर्क के नाम पर फिर हुआ खेल

सड़क की दुर्दशा देख पीडब्ल्यूडी भीम को जिम्मेदार ठेकेदार पर कार्रवाई करनी चाहिए थी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से विभाग ने कार्रवाई करने की बजाय उसी ठेकेदार को 5 लाख रुपये का एक और पैच वर्क टेंडर दे दिया। 2024 में किया गया यह काम भी अधूरा छोड़ दिया गया। कलालों की काकर से पहले ही पैच वर्क बीच में रोक दिया गया। नतीजा यह रहा कि बरसात शुरू होते ही महज़ छह महीने में यह पैच वर्क भी बह गया। यानी लाखों रुपये फिर से पानी में बह गए और सरकारी धन का सरासर दुरुपयोग हुआ।

ग्रामीणों की रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित

  • यह सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग से पीपलीनगर, काछबली और मंडावर जैसी तीन पंचायतों को जोड़ती है। सड़क टूटने से तीनों पंचायतों के ग्रामीण बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।
  • स्कूल जाने वाले बच्चे:बरसात में गड्ढों और कीचड़ की वजह से कई बच्चों ने स्कूल जाना बंद कर दिया।
  • महिलाएँ और बुजुर्ग: रोजाना गिरने और चोटिल होने की घटनाएँ सामने आ रही हैं।
  • आवागमन: वाहनों की आवाजाही मुश्किल हो गई है, एंबुलेंस और ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को भी दिक्कत झेलनी पड़ रही है।

ग्रामीणों का कहना है कि सड़क बनने के बाद उन्होंने सोचा था कि अब सफर आसान होगा, लेकिन दो साल में ही हालात पुराने दिनों से भी बदतर हो गए हैं।

लापरवाही और मिलीभगत के आरोप

ग्रामीणों का साफ आरोप है कि यह स्थिति ठेकेदार की लापरवाही और प्रशासन की मिलीभगत का नतीजा है। यदि समय रहते निगरानी और गुणवत्ता की जांच की जाती तो सड़क इतनी जल्दी नहीं टूटती।

लोग उठा रहे सवाल

  • जब सड़क की गारंटी 5 साल की थी तो ठेकेदार पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
  • पैच वर्क का काम अधूरा छोड़ने वाले को दोबारा मौका क्यों दिया गया?
  • क्या विभाग और ठेकेदार के बीच मिलीभगत के चलते जनता के पैसे की बर्बादी हुई?

अब ग्रामीणों की उम्मीदें प्रशासन से

ग्रामीण चाहते हैं कि जिम्मेदार विभाग जल्द से जल्द ठेकेदार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे और इस सड़क को स्थायी रूप से दुरुस्त करवाए। बार-बार टेंडर जारी करने और अधूरे काम कराने से केवल सरकारी खजाने को नुकसान पहुँच रहा है, लेकिन जनता की समस्या जस की तस बनी हुई है।