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अरावली की गोद में विराजित मां अन्नपूर्णा: अन्न, धन और जल की दात्री

अरावली की हरियाली से ढकी स्वर्ण शैल पहाड़ी पर सुबह की पहली किरण जब पड़ती है, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे पूरा पर्वत हरियाली में खिल उठा हो।

Annpurna Mata Tample
Annpurna Mata Tample

मधुसूदन शर्मा

राजसमंद. अरावली की हरियाली से ढकी स्वर्ण शैल पहाड़ी पर सुबह की पहली किरण जब पड़ती है, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे पूरा पर्वत हरियाली में खिल उठा हो। इसी स्वर्ण शैल पर विराजित हैं मां अन्नपूर्णा, जो अन्न, धन और जल की दात्री मानी जाती हैं। राजसमंद की पहचान बने इस मंदिर में कदम रखते ही श्रद्धालु एक अद्भुत शांति और सुकून का अनुभव करते हैं। कहानी है कि जब महाराणा राजसिंह विवाह के लिए जैसलमेर जा रहे थे, तब उन्होंने गोमती नदी के प्रचंड वेग को देखा और मन ही मन संकल्प लिया कि एक दिन इस अथाह जल को बांधकर मेवाड़ की प्यास बुझाऊंगा। यही संकल्प आगे चलकर राजसमंद झील और राजनगर के निर्माण का आधार बना। लगभग 14 वर्षों की कठिन साधना और प्रयास के बाद, 1732 में झील की प्रतिष्ठा हुई और उसी समय स्वर्ण शैल पर भव्य अन्नपूर्णा मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा संपन्न हुई।

करूणा और सौम्यता से भरा चेहरा

मंदिर का वैभव किसी महल से कम नहीं है। यहाँ संगमरमर की मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा अपने सौम्य और करुणामय स्वरूप से भक्तों का मन मोह लेती है। अधिकांश दुर्गा स्वरूपों में तेजस्विता और उग्रता अधिक दिखाई देती है, लेकिन मां अन्नपूर्णा का चेहरा करुणा और सौम्यता से भरा है, जो श्रद्धालुओं के हृदय को सीधे छू जाता है।

माना जाता है कि नवरात्र के दौरान यह स्थल भक्ति और उत्साह का केंद्र बन जाता है। पुजारी गोपाल श्रोत्रिय बताते हैं कि यहाँ तीनों समय दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है। अष्टमी पर हवन और नवमी पर हजारों भक्तों का सामूहिक प्रसाद वितरण किया जाता है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जो भी मां के दरबार में आता है, उसके भंडार सदा भरे रहते हैं और उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

चित्तौड़ किले से लाई गई ज्योत

इतिहासकार दिनेश श्रीमाली के अनुसार, इस मंदिर की जड़ें बहुत पुरानी हैं। लगभग 1335 में महाराणा हमीर सिंह ने चित्तौड़ किले में पहला अन्नपूर्णा मंदिर बनवाया था। वहीं से ज्योत लाकर इसे इस पहाड़ी पर स्थापित किया गया। मंदिर का निर्माण ईशान कोण में किया गया है, जिससे यहाँ का वातावरण सर्दियों में गरम और गर्मियों में शीतल बना रहता है। आज भी स्वर्ण शैल पर स्थित यह मंदिर केवल मेवाड़ की आध्यात्मिक धरोहर नहीं है, बल्कि यह विश्वास का प्रतीक भी है कि मां अन्नपूर्णा की कृपा से इस भूमि पर अन्न, धन और जल की कभी कमी नहीं होगी।