पीपली आचार्यान. राज्यावास और मोही गांव के बीच बनास नदी के तट पर स्थित मां चामुंडा का प्राचीन मंदिर क्षेत्रवासियों और श्रद्धालुओं के लिए विश्वास और आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। यहाँ की देवी को लोग न केवल धार्मिक संरक्षक मानते हैं, बल्कि मान्यता है कि माँ चामुंडा गांवों की सुरक्षा और खुशहाली की रक्षा करती हैं। मंदिर की उत्पत्ति को लेकर पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि कई वर्ष पूर्व बनास नदी के किनारे माता साक्षात् जमीन से प्रकट हुई थीं। उस समय क्षेत्र में घना जंगल था और चारों तरफ सालभर बहती नदी और प्राकृतिक संकट जैसे प्रलय, तूफान और भूस्खलन आम हुआ करते थे। स्थानीय मान्यता है कि पाटन गांव इसी कारण जमींदोज हो गया, लेकिन माता चामुंडा का मंदिर यथावत सुरक्षित रहा।
समय के साथ मोही गांव बसा और मोही ठिकाने तथा राज्यावास के ग्रामीणों ने माताजी की पूजा करना शुरू किया। बताया जाता है कि माता की कृपा से मोही गांव में शांति और खुशहाली का वातावरण बना। मंदिर के पास ही बनास नदी में मोक्ष धाम स्थित हैं, जिन्हें श्रद्धालु अत्यंत पवित्र मानते हैं। करीब 150 वर्ष पूर्व, पंडित गौरीशंकर शर्मा को माता ने अपने चमत्कार से दर्शन दिए। इसके बाद उन्होंने नवरात्रि और रविवार को माता की आरती करना आरंभ किया। बुजुर्ग होने के कारण मंदिर जाने में असमर्थ होने पर माता ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर घर पर मंदिर निर्माण करने का मार्गदर्शन किया। पं. गौरीशंकर ने इस संदेश के अनुसार राज्यावास में अपने घर पर मंदिर निर्माण करवाया।
मां चामुंडा की पूजा और अर्चना शुरू में भील समाज द्वारा की जाती थी। इसके बाद माता ने गणेश खारोल को भोपा और भूरालाल खारोल को पूजा के लिए चुना। आज भी खारोल परिवार ही मंदिर की पूजा-अर्चना का संचालन करता है, वर्तमान भोपा हैं भूरालाल के पुत्र मोहन खारोल। मंदिर की देखरेख मोही ठिकाना, मोही गांव और राज्यावास गांव के श्रद्धालु करते हैं।प्रति वर्ष, मंदिर में दो बार बड़े जागरण और महाप्रसादी का आयोजन होता है। इसके अलावा श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर महाप्रसादी का आयोजन भी करते हैं। अन्य शक्तिपीठों की तरह नवरात्रि प्रतिपदा से नहीं, बल्कि मां चामुंडा की तृतीया तिथि से प्रारंभ होती है।
माता चामुंडा के चमत्कारों की अनेक कहानियाँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इस मार्ग पर चलने वाली बस और बड़े वाहन चालक भी माता के दर्शन कर आगे बढ़ते हैं। नवविवाहित जोड़े अपनी शादी के बाद सबसे पहले मंदिर में दंडवत करने आते हैं। लगभग 50 वर्ष पूर्व नीमच और मंदसौर के व्यापारियों पर डकैतों का हमला हुआ था, लेकिन उसी समय माता का शेर आया और चोरों को भगा दिया। तब से व्यापारी साल में एक बार माता के दरबार में हाजरी लगाते हैं।
भोपा मोहन खारोल के मार्गदर्शन में मंदिर के जीर्णोद्धार के दौरान खुदाई के साथ माता की मूर्ति बढ़ती चली गई। इस नजारे को देखकर कार्य को रोकना पड़ा। मंदिर के चारों ओर चारदीवारी बनाई गई, माता के सामने शेर की प्रतिमा स्थापित की गई। इसके अलावा बीमारों के लिए बारी, हॉल, पानी की टंकी और सामान रखने के कमरे भी बनाए गए। इस वर्ष नवरात्रि की स्थापना बुधवार से होगी, और दस दिनों तक मेले जैसा उत्सव आयोजित किया जाएगा। दर्शनार्थियों के लिए जलपान और अन्य व्यवस्थाओं की भी व्यवस्था रहेगी।
Published on:
24 Sept 2025 03:38 pm