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ऑटोमैटिक ड्राइविंग ट्रैक बना ‘सफेद हाथी’: ट्रैक परिसर में कम्प्यूटर, सेंसर और ऑपरेशन सिस्टम तक नहीं

परिवहन विभाग की बहुचर्चित परियोजना ऑटोमैटिक ड्राइविंग ट्रैक ‘सफेदहाथी’ साबित होती दिख रही है।

automatic driving track
automatic driving track

मधुसूदन शर्मा

राजसमंद. परिवहन विभाग की बहुचर्चित परियोजना ऑटोमैटिक ड्राइविंग ट्रैक ‘सफेदहाथी’ साबित होती दिख रही है। करोड़ों रुपये खर्च कर तैयार किया गया यह ट्रैक अभी तक लोकार्पण का इंतजार कर रहा है। हालत यह है कि ट्रैक परिसर में कम्प्यूटर, सेंसर और ऑपरेशन सिस्टम तक नहीं लगाए गए हैं। परिणामस्वरूप विशाल भवन, हॉल, कंट्रोल रूम और वॉच टावर महीनों से खाली पड़े हैं, और उनमें जालियों के टूटने से लेकर झाड़ियों के फैलने तक के दृश्य देखने को मिल रहे हैं।

बिना सेंसर-कम्प्यूटर के ट्रैक बेकार पड़ा

गुर्जरों का गूढ़ा स्थित इस ऑटोमैटिक ड्राइविंग ट्रैक को आरएसआरडीसी ने 192.73 लाख रुपये की लागत से बनाया था। इसे दोपहिया और चौपहिया दोनों तरह के वाहन चालकों के लिए ऑटोमैटिक ड्राइविंग टेस्ट के रूप में विकसित किया गया था, जहाँ सेंसर खुद ही पास-फेल की रिपोर्ट तैयार कर देंगे। लेकिन आज स्थिति उलट है। सेंसर नहीं लगे, कम्प्यूटर नहीं आए। ऐसे में अधूरा ट्रेक, खराब होने के कगार पर है।

ट्रैक विभाग को सौंपा तो गया, लेकिन उपयोग में कहीं नहीं

वर्तमान में ट्रैक केवल सुबह के समय ट्रायल के लिए खुलता है, बाकी दिन पूरा परिसर वीरान रहता है। गार्ड तैनात हैं, लेकिन इतनी बड़ी संपत्ति की सुरक्षा और देखभाल उनके बस की बात नहीं।

बर्बादी के दृश्य: टूटी जालियाँ, उगी झाड़ियां, खराब सुविधाएं

विश्राम स्थल में लगे पंखों की ताड़ियाँमुड़ीपड़ी हैं। लाइटिंग के तार खुले लटक रहे हैं। हॉल और वॉच टावर की जालियाँ हवा के चलते टूटने लगी हैं। खाली पड़े एरिया में झाड़ियाँ तेजी से बढ़ गई हैं। करोड़ों रुपये की परिसंपत्ति धीरे-धीरे जीर्ण-शीर्ण होने की कगार पर पहुँच रही है।

दफ्तर भी यहीं शिफ्ट हो सकता है, पर फैसला अटका

इस समय जिला परिवहन विभाग का कार्यालय हाईवे पर रामेश्वर महादेव मंदिर के पास चल रहा है, जबकि ऑटोमैटिक ड्राइविंग ट्रैक गुर्जरों का गूढ़ा में स्थित है। दो जगहों पर बिजली, स्टाफ और देखभाल, इन सभी खर्चों का अतिरिक्त बोझ विभाग पर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि परिवहन कार्यालय को ट्रैक परिसर में ही शिफ्ट कर दिया जाए तो दोनों का संचालन एक ही स्थान से हो सकेगा और व्यावहारिक रूप से यह अधिक लाभकारी होगा। उधर, चिल्ड्रन ट्रैफिक पार्क को जावद स्थित सिद्धार्थ नगर में अलग स्थान पर विकसित कर दिया गया है। इससे उसका प्रबंधन भी ठीक से नहीं हो पा रहा।

चारदीवारी पर खर्च हुए 22 लाख, बाद में ध्यान आया कि जरूरत थी

ड्राइविंग ट्रैक का निर्माण जब किया गया, तब चारदीवारी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। ट्रैक को सड़क से लगभग 4–5 फीट ऊंचा बनाया गया, जिससे पुरानी दीवार दब गई। बाद में सुरक्षा की आवश्यकता समझ में आने पर चारदीवारी के लिए बजट मांगा गया और इसपर लगभग 22 लाख रुपये खर्च कर नई चारदीवारी बनाई गई।

पहुंच का ‘कच्चा’संघर्ष: 50 लाख की सड़क भी अटकी

ट्रैक तैयार है, लेकिन वहां तक पहुंचने का मार्ग आज भी कच्चा है।

  • बारिश में पूरा रास्ता दलदल बन जाता है
  • रेत के कारण दोपहिया वाहन फंस जाते हैं
  • बरसात में पानी भर जाता है
  • कोई पक्का मार्ग ही नहीं है

आरएसआरडीसी ने यहां तक पहुँचने के लिए पक्की सड़क के निर्माण के लिए 50 लाख का बजट मांगा गया था, लेकिन वह प्रस्ताव भी अब तक ठंडे बस्ते में हैं।