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राज्योत्सव विशेष : छत्तीसगढ़ महतारी का एकमात्र मंदिर, जहां रोज होती है आरती

मंदिर के पुजारी पं. महेश शर्मा व प्रबंधक सेवक राम के मुताबिक मूर्ति की स्थापना के बाद से 1996 से नियमित रूप से आरती और पूजन हो रहा है।

राज्योत्सव विशेष : छत्तीसगढ़ महतारी का एकमात्र मंदिर, जहां रोज होती है आरती
राज्योत्सव विशेष : छत्तीसगढ़ महतारी का एकमात्र मंदिर, जहां रोज होती है आरती

कौशल्या माता मंदिर के बाद राज्य में छत्तीसगढ़ महतारी का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो लोगों की आस्था का केंद्र है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले वर्ष 1996 में धमतरी जिले के कुरूद तहसील में यह मंदिर बना। मंदिर में सिर्फ दीया नहीं जलता बल्कि नवरात्रि में मनोकामना ज्योति भी जलती है। कुरूद क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला- मड़ई छत्तीसगढ़ महतारी मंदिर के प्रांगण में आयोजित होता है। राज्य बनने के पहले से ही यह मंदिर आस-पास के गांवों के लोगों के लिए दर्शनीय है।

राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित मंदिर

रायपुर-धमतरी-जगदलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित मंदिर पहुंचकर पत्रिका ने लोगों की आस्था और अनुभवों को जाना। मंदिर समिति के मुताबिक भागवताचार्य व संत दिवंगत पवन दीवान की प्रेरणा से मंदिर की स्थापना की गई। पवन दीवान भागवत कथा के साथ आम लोगों में काफी लोकप्रिय थे। भागवत कथा को छत्तीसगढ़ी भाषा, गीत-संगीत के जरिए प्रस्तुत करते थे। वे राजगीत अरपा पैरी के धार… गीत को भागवत कथा में सुनाते थे। छत्तीसगढ़ी अस्मिता की पहचान और राज्य गठन के पहले चल रहे आंदोलन के लिए लोगों को एकजुट करने के उद्देश्य से भी मंदिर की नींव रखी गई।

मातृशक्ति और सांस्कृतिक अस्मिता का अनोखा प्रतीक

रायपुर से लगभग 50 किलोमीटर दूर कुरूद में यह मंदिर राज्य की मातृशक्ति और सांस्कृतिक अस्मिता का अनोखा प्रतीक है। मंदिर में प्रतिदिन शाम 7 बजे आरती होती है। मंदिर के पुजारी पं. महेश शर्मा व प्रबंधक सेवक राम के मुताबिक मूर्ति की स्थापना के बाद से 1996 से नियमित रूप से आरती और पूजन हो रहा है। मंदिर प्रांगण में ही छत्तीसगढ़ महतारी के साथ-साथ महाकाली की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। यहां चैत्र और शारदीय नवरात्रि में भव्य मेला लगता है, जहां हजारोंं श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

धान की बाली और पारंपरिक गहनों से शृंगार

मंदिर में विराजित छत्तीसगढ़ महतारी का शृंगार छत्तीसगढ़ के पारंपरिक परिधान व गहनों से किया गया है। हाथ में धान की बालियां सजी हैं। फसल पकने के साथ ही माता को धान की बालियों का शृंगार किया जाता है। साथ ही सिर पर चांदी का मुकुट, छत्र, करधन, पायल, चूड़ी और हाथ में हसिया धारण की हुई है, जो मातृशक्ति और कृषि प्रधान जीवनशैली का प्रतीक है।