Patrika Logo
Switch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

प्लस

प्लस

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

High Court: हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, तलाक के बिना लिव-इन को बताया व्यभिचार, सुरक्षा देने से किया साफ इनकार

इलाहाबाद हाई कोर्ट का स्पष्ट कहना है की तलाक लिए बगैर महिला का किसी अन्य पुरुष के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहना द्वि विवाह या व्यभिचार है इस अवैध संबंध को पुलिस द्वारा किसी सुरक्षा का कोई अधिकार नहीं है।

Allahabad high court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशीप से जुड़े एक मामले में सख्त फैसला सुनाया है। न्यायालय ने कहा कानूनी रूप से विवाहित महिला के पति से तलाक लिए बिना किसी दूसरे पुरुष के साथ रहना, द्वि-विवाह करना व्यभिचार के समान है, और ऐसे अवैध संबंधों को पुलिस सुरक्षा का कोई अधिकार नहीं दिया जायेगा।

क्या था मामला?

सहारनपुर की एक महिला और उसके साथी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर यह मांग की थी कि उन्हें शांतिपूर्ण जीवन जीने दिया जाए, और उनके जीवन में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देते हुए सुरक्षा प्रदान की जाए।याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने कोर्ट में दलील दी कि दोनों याचिकाकर्ता बालिग हैं और अपनी स्वतंत्र इच्छा से साथ रह रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि महिला का पहला पति उनके शांतिपूर्ण जीवन में बाधा डाल रहा है। महिला ने पहले ही सहारनपुर के एसएसपी को आवेदन देकर अपने पति पर धमकी देने का आरोप लगाया था।

लिव-इन में रहने और सुरक्षा प्रदान करने की मांग

यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की एकल पीठ ने सहारनपुर निवासी एक महिला और उसके साथी की ओर से दायर याचिका पर लिव इन में रहते हुए अदालत से अपने शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देने और सुरक्षा प्रदान करने की मांग कर याचिका दायर की थी। याचिका को खारिज करते हुए यह कड़ा आदेश दिया।

हाईकोर्ट ने सुरक्षा याचिका को खारिज कर दिया

जिसके जवाब में राज्य सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि महिला अभी भी कानूनी रूप से अपने पहले पति 'रजत' की पत्नी है। क्योंकि तलाक की डिक्री किसी भी सक्षम अदालत ने पारित नहीं की है। भले ही तलाक का मुकदमा लंबित हो। कोर्ट ने राज्य की इस दलील को सही माना। फैसले में कहा गया कि याचिकाकर्ताओं के पास सुरक्षा के लिए कोई कानूनी अधिकार नहीं है, क्योंकि मांगी गई सुरक्षा द्वि-विवाह और व्यभिचार को सुरक्षा देने के बराबर है। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि जो याचिकाकर्ता पहले से ही विवाहित हैं और उनका जीवनसाथी जीवित है, उन्हें पहले पति/पत्नी से तलाक के बिना लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की कानूनी अनुमति नहीं दी जा सकती।