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बिहार में नमो और नीतीश की जोड़ी ने कैसे पलट दी बाजी ?

तेजस्वी यादव के एमवाई समीकरण पर भारी पड़ा एनडीए का एमवाई समीकरण जनता ने एनडीए की बातों पर जताया भरोसा, तेजस्वी के हर घर नौकरी जैसे वादों को ठुकराया महागठबंधन की हर जोड़ी एक दूसरे के लिए कमजोरी तो एनडीए की हर जोड़ी एक दूसरे के लिए साबित हुई मजबूती

Bihar News
बिहार में एक जनसभा से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। (फोटो : ANI)

नवनीत मिश्र

नई दिल्ली। बिहार चुनाव में नमो और नीतीश की जोड़ी हिट रही। एनडीए की सूनामी में तेजस्वी और राहुल गांधी के नेतृत्व वाला महागठबंधन बह गया। एनडीए 243 में दो सौ सीटों का आंकड़ा पार कर इतिहास रच दिया। जंगलराज बनाम सुशासन के नैरेटिव को आधार बनाकर गठबंधन ने इस कदर चुनाव लड़ा कि 20 साल से राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ जो थोड़ी बहुत एंटी इन्कमबेंसी थी भी, वो प्रो इन्कमबेंसी में बदल गई। केंद्र की मोदी और राज्य की नीतीश सरकार की जनविश्वसनीयता भी ये नतीजे सिद्ध करते हैं। शायद यही कारण है कि तेजस्वी यादव के हर परिवार को सरकारी नौकरी और महिलाओं को 30 हजार देने जैसे वादों को ठुकरा दिया। 2010 में 206 सीटें जीतने वाली भाजपा और जदयू का यह दूसरा सर्वोच्च प्रदर्शन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे सुशासन, विकास और सामाजिक न्याय की जीत बताई है। महागठबंधन के मुस्लिम-यादव(एमवाई) समीकरण पर एनडीए का महिला-युवा(एमवाई) फैक्टर भारी पड़ा। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी यह भी कहना है कि 2024 में बहुमत से बीजेपी के चूक जाने की वजह से पार्टी से सहानुभूति रखने वाले मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग बाद के चुनाव में बहुत मुखर होकर वोट कर रहा है। महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली के बाद बिहार के नतीजे इस बात की गवाही देते हैं।

स्विंग वोटर्स ने पलट दी बाजी

पार्टियों के कोर वोटर सिर्फ बेस बनाते हैं, लेकिन स्विंग वोटर्स जब जुड़ते हैं तो जीत होती है। भाजपा-जदयू ने इस बात को गांठ बांधकर दो फ्रंट पर कार्य किया। एक तरफ कोर वोटर्स को साधा, दूसरी तरफ न्यूट्रल कहे जाने वाले स्विंग वोटर्स को साधने की कोशिश की। बूथ मैनेजमेंट के जरिए किसी पार्टी विशेष को वोट न डालने वाले मतदादाताओं से विशेष संपर्क कर उन्हें वोट के लिए प्रेरित किया। इस बार 45 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर में स्विंग वोटर्स का बड़ा रोल माना जा रहा है।

एनडीए की छतरी छतरी तले एकजुट हुईं जातियां

एनडीए की सोशल इंजीनियरिंग जमीन पर ज्यादा प्रभावी रही। सभी सहयोगी दल अलग-अलग वर्ग को साधने में सफल रहे। भाजपा ने अगड़ा सहित हर वर्ग के वोटों का जुगाड़ किया, नीतीश और उपेंद्र कुशवाहा के चेहरे पर अति पिछड़ा मतदाता आ गए, चिराग के चेहरे पर दलित और जीतनराम मांझी के चेहरे पर महादलित मतदाता। इस सामाजिक आधार पर एनडीए 45 प्रतिशत वोट जोड़ने में सफल रहा, दूसरी तरफ महागठबंधन में शामिल सहयोगी दल अपने बेस वोट से आगे नहीं बढ़ सके। एनडीए में सभी दलों को अपने मतदाताओं के अऩुरूप रणनीति बनाने की छूट रही, जबकि महागठबंधन में कांग्रेस की रणनीति में भी राजद के दखल देने के आरोप लगते रहे। जिससे सहयोगी दल अलग-अलग वोटों की व्यवस्था नहीं कर सके।

एनडीए की एकजुटता, महागठबंधन का बिखराव

एनडीए ने समय से सीट बंटवारा किया, टिकट भी बांटा। इससे एकजुटता का संदेश गया। दूसरी तरफ महागठबंधन में आंतरिक खींचतान मची रही। पहले चरण के नामांकन के आखिरी दिन तक सीट बंटवारा नहीं हो पाने से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता दिखा। एनडीए के हर बड़े नेता के नामांकन में सभी दलों के नेता जुटकर संदेश देते दिखे तो तेजस्वी यादव के नामांकन के समय सिर्फ गठबंधन का कोई सहयोगी नहीं दिखा। एनडीए की एकजुटता के आगे महागठबंधन मोमेंटम गंवा बैठा।

जीविका दीदी कर दिया जिंदाबाद

बिहार में पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने 8 प्रतिशत ज्यादा वोट डाले। मोदी और नीतीश ऐसे नेता हैं, जिन्होंने योजनाओं के जरिए महिलाओं का अलग वोटबैंक तैयार किया है। लेकिन, बिहार में चुनाव से ठीक पहले महिलाओं(जीविका दीदी) के खाते में 10-10 हजार रुपये भेजा गया। यह योजना गेमचेंजर साबित हुई और एनडीए को पहले से ज्यादा महिलाओं के वोट मिले। माना जा रहा है कि महिलाओं ने जाति और पार्टी से भी ऊपर उठकर एनडीए को वोट किया।