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जब ‘ईह’ बन गया ‘साहेब’ : राबड़ी देवी ने क्यों बदल दिया था लालू यादव का 22 साल पुराना टाइटल?

1995 का चुनाव लालू परिवार में नई ऊर्जा लेेकर आया था। लालू की अहमियत राबड़ी देवी के लिए पहले से ज्यादा बढ़ गई थी।

पटना

Ashish Deep

Sep 15, 2025

1990 के दशक में लालू यादव बिहार के कद्दावर नेता बनकर उभरे थे। (फोटो : एआई)

1995 का साल…बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आए और उसी के साथ बिहार की पॉलिटिक्स ने नए फॉर्मेट को जन्म दिया। चुनाव में अगड़ी जातियों के साथ पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व अचानक उभरने लगा। इलेक्शन में लालू यादव एक ऐसे राजनीतिक चरित्र के रूप में उभरे, जिन्होंने प्रदेश की जातीय राजनीति को नए आयाम दिए। उनकी रणनीति ने बिहार की राजनीतिक धारा को पूरी तरह से पलट दिया था। लेकिन इस बदलाव की सबसे रोचक गाथा लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ी है, जो इस राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में ‘ईह’ से ‘साहेब’ बनने की यात्रा की कहानी है।

शादी होने के बाद से ही यही शब्द बन गया था संबोधन

जब साल 1973 में राबड़ी देवी ने लालू यादव से विवाह किया था, उस समय से वह अपने पति को ‘ईह’ कहकर पुकारती थीं। यह एक पारंपरिक बिहारी स्त्री का सहज संबोधन था, जिसे बरसों से वंचित वर्ग की महिलाएं अपने पतियों के लिए इस्तेमाल करती रही हैं। लेकिन 1995 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव ने अपने राजनीतिक करियर का एक नया अध्याय लिखा था। उन्होंने फिर से बिहार की सत्ता पर बहुमत के साथ कब्जा जमाया था। मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन की सख्त चुनावी प्रक्रिया और अर्धसैनिक बलों की तैनाती के बावजूद लालू यादव ने 167 सीट जीतने में कामयाबी पाई।

साहेब शब्द के चुनाव के पीछे बड़ी सोच

ऐसे माहौल में राबड़ी देवी ने यह महसूस किया कि उनका पारंपरिक संबोधन ‘ईह’ उनके पति की नई ऊंचाई के अनुरूप नहीं था। इसीलिए उन्होंने लालू यादव को ‘साहेब’ कहना शुरू किया। बंधु बिहारी में वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर इस बात का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि यह बदलाव केवल एक शब्द का नहीं था, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दोनों ही स्तर पर एक बड़ा कदम था। राबड़ी देवी के लिए इस शब्द ने उनके पति के राजनीतिक साम्राज्य के प्रति एक नए प्रकार का सम्मान और पहचान स्थापित की थी।

बिहार विधानसभा के नतीजे

19901995
दलसीटेंवोट शेयरसीटेंवोट शेयर
जनता दल12225.616728
कांग्रेस71252913
बीजेपी39124116.3
सीपीआई237264.8
झामुमो193.1102.3
सोर्स : ECI

70 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व

लालू ने मेजॉरटी लाकर पिछड़े, अति पिछड़े और मुस्लिमों को एक नई राजनीतिक पहचान दी थी। उनका यह गठबंधन बिहार की मतदाता जनसंख्या के लगभग 70 प्रतिशत को संरक्षित करता था, जिससे उनकी राजनीतिक पकड़ और भी मजबूत हो गई। 1990 के चुनाव में जनता दल ने 122 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस महज 71 सीटों पर सिमट गई। लेकिन 1995 में जनता दल की सीटें बढ़कर 167 हो गईं, जबकि कांग्रेस की सीटें घटकर 29 रह गईं।