
शशि थरूर की राजनीति (फोटो-IANS)
केरल (Kerala) की तिरुवनंतपुरम सीट से कांग्रेस सांसद शशि थरूर (Shashi Tharoor) मीडिया के लिए अपने बयानों और हरकतों से बज क्रिएट करते हैं। उनके बयान हेडलाइन बनते हैं। अब वंशवाद पर उनके लिखे लेख को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस पर निशाना साधा है। वहीं, कांग्रेस के कई नेता कई दफे कह चुके हैं कि थरूर अब हमारे साथ नहीं हैं। शशि थरूर केरल में साल 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बार-बार गांधी परिवार पर निशाना साधकर कौन सा सियासी चाल चल रहे हैं। आइए समझते हैं।
शशि थरूर ने अपने लेख में लिखा कि वंशवाद सिर्फ कांग्रेस में नहीं, बल्कि लगभग हरेक राजनीतिक दल में मौजूद है। जब राजनीतिक शक्ति वंश के आधार पर तय होती है, न कि योग्यता, प्रतिबद्धता या जनसंपर्क से तब शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है। नेहरू-गांधी परिवार जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा का प्रभाव भारत की आजादी और लोकतंत्र के इतिहास से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसी ने यह विचार भी मजबूत किया कि नेतृत्व किसी का जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है और यह सोच आज सभी पार्टियों और देश के कई राज्यों तक फैल गई है।
शशि थरूर के आर्टिकल को बीजेपी ने हाथोंहाथ लपका। बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा, थरूर ने बहुत सटीक लिखा है कि भारत की राजनीति अब पारिवारिक कारोबार बन चुकी है। वहीं, कांग्रेस नेता गांधी परिवार के सपोर्ट में उतर आए। कांग्रेस नेता राशीद अल्वी ने थरूर की राय से असहमति जाहिर की।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में फैसला जनता करती है। आप यह नहीं कह सकते कि किसी को सिर्फ इसलिए चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं कि उसके पिता सांसद थे। यह हर क्षेत्र में होता है, राजनीति कोई अपवाद नहीं। वहीं प्रमोद तिवारी ने कहा, 'नेतृत्व हमेशा योग्यता से आती है। पंडित जवाहरलाल नेहरू इस देश के सबसे योग्य प्रधानमंत्री थे। इंदिरा गांधी ने अपनी जान देकर इसे साबित किया। राजीव गांधी ने भी देश की सेवा करते हुए बलिदान दिया। अगर कोई गांधी परिवार को ‘डायनेस्टी’ कहता है तो बताइए, किस दूसरे परिवार ने ऐसा त्याग और समर्पण दिखाया? क्या बीजेपी ने?'
यह पहली बार नहीं है कि जब शशि थरूर के निशाने पर गांधी परिवार आया हो। जुलाई महीने में उनके दो बयानों ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी थी। 19 जुलाई को कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा था कि किसी भी नेता की पहली वफादारी देश के प्रति होनी चाहिए, किसी पार्टी विशेष के प्रति नहीं। पार्टियां सिर्फ देश को बेहतर बनाने का जरिया मात्र हैं। अगर देश नहीं बचेगा तो पार्टियों का क्या फायदा? जब देश की सुरक्षा का सवाल हो तो सभी दलों को मिलकर काम करना चाहिए।
वह यहीं नहीं थमे। उन्होंने देश में इंदिरा गांधी के इमरजेंसी लगाने के फैसले को भी गलत बताया था। 10 जुलाई को मलयाली अखबार दीपिका में उन्होंने इमरजेंसी के खिलाफ लेख लिखा था। इसमें उन्होंने इमरजेंसी को भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय बताया था। थरूर ने कहा था कि इससे सबक लेना जरूरी है। उन्होंने अपने लेख में नसबंदी अभियान को मनमाना और क्रूर फैसला बताया था।
कांग्रेस के साथ शशि थरूर का रिश्ता तनावपूर्ण बना हुआ है। एक समय था जब थरूर, गांधी परिवार से डायरेक्ट मिल सकते थे। उन्हें गांधी परिवार से मिलने के लिए अपांइटमेंट लेने की जरूरत नहीं पड़ती थी, लेकिन थरूर के G23 समूह (जिसमें कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, मनीष तिवारी थे) में शामिल होने से दूरियां बढ़ने लगी। इसके बाद वह कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर चुनाव में मल्लिकार्जुन खरगे के सामने उम्मीदवार बनकर खड़े हो गए थे। सियासी गलियारों में यह चर्चा उठने लगी थी कि उनका यह कदम गांधी परिवार (Gandhi Family) को रास नहीं आया। यहीं से कांग्रेस और थरूर के बीच फासले बढ़ते चले गए।
थरूर ने जब खुद को एक सर्वे के मुताबिक फेमस सीएम चेहरा बताया था, तब केरल कांग्रेस के नेता के. मुरलीधरन ने कहा था कि थरूर को पहले यह तय कर लेना चाहिए कि वह किस पार्टी में हैं। के. मुरलीधरन ने कहा कि पार्टी अब थरूर को केरल में तब तक किसी भी कार्यक्रम में नहीं बुलाएगी, जब तक कि वह अपना रुख नहीं बदलते हैं।
कांग्रेस लगातार विदेशी मामलों में मोदी सरकार (Modi Government) को घेरती आई है, लेकिन कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने हर बार पार्टी से इतर अपनी राय मीडिया के सामने जाहिर की। उन्होंने खुलकर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर (S JaiShankar) और मोदी सरकार की विदेश नीति की तारीफ की।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद गठित भारतीय डेलिगेशन टीम में भी उन्हें जगह दी गई थी, जबकि कांग्रेस की तरफ से प्रस्तावित नामों की सूची में थरूर शामिल नहीं थे। थरूर को मोदी सरकार ने देश का पक्ष रखने के लिए अमेरिका भेजा था। इसके बाद केरल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के. मुरलीधरन ने थरूर को बीजेपी (BJP) का सुपर प्रवक्ता तक करार दे दिया।
शशि थरूर पिछले चार बार से लोकसभा सांसद हैं। वह केरल की राजनीति में एक्टिव होने की चाहत रखते हैं। इस मंशा के कारण उनकी केरल कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं से नहीं बनती है। राहुल गांधी के सिपहसलार माने जाने वाले केसी वेणुगोपाल से भी थरूर की अंदरखाने खींचतान चलती रहती है। वह केरल के स्थानीय नेतृत्व और गांधी परिवार के वफादारों को भले ही पसंद हो या न हो, अपने राज्य के मिडिल क्लास में एक शक्तिशाली चेहरा के रूप में स्वीकृत हैं।
उन्हें सभी समुदायों और जातियों का मजबूत समर्थन हासिल है। हालांकि, केरल की राजनीति उत्तर भारत की राजनीति से बिल्कुल उलट है। वहां अभी तक धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति सफल नहीं हो पाई है। शशि थरूर भी अभी तक सेक्युलर राजनीति ही करते आए हैं।
Published on:
05 Nov 2025 06:00 am
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