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कभी TV एंटीना हुआ करता था स्टेटस सिंबल, एक घर में जुटता था पूरा मोहल्ला, बुजुर्गों के दिल में ब्लैक एंड व्हाइट के रंग आज भी ताजा

Black and White TV: तीन से चार दशक पहले तक हालात ऐसे थे कि रात को टीवी पर कार्यक्रम विशेष देखने के लिए पूरा मोहल्ला टीवी वाले घर में जुटता था। यही नहीं, छतों पर लगने वाला एल्यूमीनियम का चौकोर लंबा एंटीना किसी समय पर स्टेटस सिंबल हुआ करता था।

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जयपुर

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Kamal Mishra

Nov 29, 2025

Black and White TV

ब्लैक एंड व्हाइट टीवी (फोटो-पत्रिका)

जयपुर। टेलीविजन का अर्थ है टेली यानी दूर और विजन यानी दर्शन। कभी ‘बुद्धू बक्सा’ कहा जाने वाला टीवी अब ‘स्मार्ट’ बनकर घर-घर ज्ञान और मनोरंजन परोस रहा है। करीब तीन दशक पहले तक टीवी पर चैनल व कार्यक्रम सीमित ही थे, लेकिन अब एलइडी स्क्रीन, केबल नेटवर्क व इंटरनेट के दौर में जहां चैनल विकल्पों का विस्तार हो चुका है।

वहीं, इंटरनेट से जुड़ी प्रोग्रामिंग व कंटेट भी देखे जा सकते हैं। विभिन्न प्रकार के फीचर युक्त एलइडी कलर टीवी आज पहली पसंद बन गए हैं। इन स्मार्ट टीवी पर कई एप्लीकेशंस प्री-लोडेड आती हैं या बाद में एप स्टोर से लोड की जा सकती हैं।

देश में 66 साल पहले आया था टीवी

जानकारी के अनुसार 15 सितंबर 1959 को देश में टीवी आया। वर्ष 1972 तक टेली सेवाएं अमृतसर और मुम्बई के लिए बढ़ाई गईं। इसके बाद 1975 तक देश के महज सात शहरों में ही टीवी देखा जा सकता था। इसके बाद वर्ष 1982 में देश में राष्ट्रीय प्रसारण की शुरुआत हुई। हालांकि, तब ब्लैक एंड व्हाइट टीवी चलता था।

पूरा मोहल्ला टीवी वाले घर में जुटता था

तीन से चार दशक पहले तक हालात ऐसे थे कि रात को टीवी पर कार्यक्रम विशेष देखने के लिए पूरा मोहल्ला टीवी वाले घर में जुटता था। यही नहीं, छतों पर लगने वाला एल्यूमीनियम का चौकोर लंबा एंटीना किसी समय पर स्टेटस सिंबल हुआ करता था। फिर डीडी मेट्रो आने के बाद जलेबीनुमा एंटीना आया। समय बीतने पर अब नई तकनीक आ गई है और एंटीना की जगह केबल, डीटीएच छतरियों व इंटरनेट नेटवर्क ने ले ली है।

ब्लैक एंड व्हाइट के रंग आज भी ताजा

राजस्थान के श्रीकरणपुर के 77 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक बलदेव सैन के अनुसार करीब पांच दशक पहले टीवी सिर्फ एक बक्सा नहीं था, बल्कि पूरा मोहल्ला जोड़ने वाला माध्यम था। बुजुर्ग आज भी ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के रंग भूले नहीं हैं। आज तकनीक बदलने पर टीवी भले ही स्मार्ट हो गया हो, लेकिन उस दौर का उत्साह आज भी यादों में बसा है।

खुशियों का माध्यम था टीवी

किसी समय टीवी तकनीशियन रहे 64 वर्षीय महावीर प्रसाद राजपाल बताते हैं कि करीब 33 साल पहले दुकान खोली थी तो लोग ब्लैक एंड व्हाइट टीवी को भी खजाने की तरह खरीदते थे और टीवी घर में खुशियों का माध्यम था। एंटीना सीधा करना, टयूनिंग करना और तस्वीर साफ करना आम बात थी। पहले लोग टीवी से भावनात्मक रूप से जुड़े रहते थे।

तब चैनल बदलने की जल्दी नहीं थी

65 वर्षीय सुरेन्द्रकौर मोंगा का कहना है कि करीब चार दशक पहले ना चैनल बदलने की जल्दी थी ना अलग-अलग पसंद का झगड़ा। जो आता था, सभी वही पूरे मन से देखते थे। सीमित समय में कार्यक्रम मिलते थे। ऐसे में उनका इंतजार और भी रोमांचक लगता था। नई तकनीक आने पर आज टीवी की परिभाषा ही बदल गई है।