
Music Can Reduce The Risk of Dementia: संगीत हर कण में हर पल में हमारी जिंदगी के हर लम्हे में मौजूद है। चाहे वो खाना बनाते वक्त हो, नहाते वक्त हो या फिर पूजा करते वक्त। यहां तक कि आज कल तो लोग ऑफिस में भी अपना पसंदीदा संगीत सुनना पसंद करते हैं। संगीत कोई भी हो मन को सुकून और शांति प्रदान करता है। अगर हम कहें कि संगीत और इंसानों का आपस में अटूट रिश्ता है, तो गलत नहीं है। वहीं, एक रिसर्च से भी यह सामने आया है कि अगर रोजाना 1 घंटे संगीत सुना जाए तो एंजाइटी और डिप्रेशन की समस्या काफी कम हो सकती है। मगर आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि संगीत सुनने वाले व्यक्तियों में भूलने की बीमारी यानि डिमेंशिया का खतरा काफी कम होता है।
द वॉशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित हुई खबर के मुताबिक, एक नए शोध के बाद ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि बढ़ती उम्र में संगीत सुनने या कोई भी वाद्य यंत्र बजाने से डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) का खतरा काफी हद तक कम हो सकता है।

इसी साल अक्टूबर महीने में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया में 70 और उससे अधिक आयु के 10 हजार से भी ज्यादा स्वस्थ बुजुर्गों के बीते 10 सालों के डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि जो लोग इन 10 सालों में ज्यादातर संगीत सुनते थे, उनमें डिमेंशिया का खतरा, उन लोगों की तुलना में 39 प्रतिशत तक कम था, जो रोजाना या नियमित रूप से संगीत नहीं सुनते थे।
बता दें कि एएसपीआरइइ (ASPREE) लॉन्गिट्यूडिनल स्टडी ऑफ ओल्डर पर्सन्स ने इस स्टडी के प्रतिभागियों की बीते कई सालों की हेल्थ रिपोर्ट्स पर नजर रखी ताकि यह पता लगाया जा सके कि किन कारणों का अलग-अलग बीमारियों के जोखिम से संबंध है और जीवनशैली में किस तरह के बदलाव उनके स्वास्थ्य पर कितना असर डाल सकते हैं।
मोनाश विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में बायोलॉजिकल न्यूरोसाइकिएट्री और डिमेंशिया रिसर्च यूनिट की प्रमुख जोआन रयान ने कहा, 'इन कारणों में एक बदलाव था 'संगीत'।' शोधकर्ताओं ने इन प्रतिभागियों और उनके स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले प्रदाताओं से उनका हर साल का डेटा इकठ्ठा किया, और उनकी संज्ञानात्मक क्षमता (कॉग्निटिव ऐबिलिटी) का परीक्षण किया जिसके परिणाम चौंकाने वाले थे।
शोध में पता चला कि 10,893 प्रतिभागियों में से 7,030 लोग जो ज्यादातर संगीत सुनते हैं, में डिमेंशिया का जोखिम कम पाया गया। वहीं, जो लोग संगीत कम सुनते थे, उनमें डिमेंशिया का खतरा ज्यादा पाया गया। हालांकि, इस अध्ययन में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया कि वो किस प्रकार का संगीत सुनते थे।
इसके साथ ही, रयान ने बताया, “जो ज्यादा म्यूजिक सुनते थे उनमें सामान्य संज्ञानात्मक गिरावट (कॉग्निटिव डिक्लाइन) का खतरा भी कम था और साथ ही वो लोग याददाश्त और कॉग्निटिव ऐबिलिटी परीक्षणों में भी बेहतर प्रदर्शन कर रहे थे।” उन्होंने यह भी बताया कि यह एक अवलोकनात्मक (ऑब्जर्वेशनल) शोध है, इसलिए इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकती है कि संगीत सुनना सीधे डिमेंशिया पर कारगर है।
रयान ने ये भी कहा कि बड़ी संख्या में शोध यह बताते हैं कि संगीत हमारे मूड को बेहतर करता है और दिमाग को एक्टिव करता है, जो संज्ञानात्मक क्षमता (कॉग्निटिव ऐबिलिटी) के लिए फायदेमंद है।
रयान ने कहा, “मैं खुद अब पहले से ज्यादा संगीत सुनने लगी हूं और मैं लोगों से कहूंगी कि वो संगीत सुने अगर इससे उन्हें खुशी मिलती है और यह उनके दिमाग को भी सक्रिय करता है, तो क्यों नहीं?”
संगीत सुनते समय इंसान के मस्तिष्क में क्या प्रक्रियाएं होती हैं इस पर प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के म्यूजिक कॉग्निशन लैब में शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया है और इस अध्ययन में उन्होंने पाया कि संगीत दिमाग के अलग-अलग हिस्सों को सक्रिय करता है जिससे पता चलता है कि संगीत इंसान के दिमाग के लिए बहुत प्रभावशाली है। म्यूजिक कॉग्निशन लैब की निदेशक और पियानोवादक एलिजाबेथ मारगुलिस का कहना है, 'सबसे ज़रूरी बात यह है कि मस्तिष्क के सभी भाग आपस में जुड़े रहें और संगीत इस काम में असाधारण रूप से सक्षम है।'

इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि सिर्फ संगीत सुनने से ही नहीं, बल्कि कोई भी संगीत वाद्य बजाने से भी डिमेंशिया या याददाश्त संबंधी समस्याएं होने का खतरा कम होता है। बता दें कि नियमित रूप से संगीत बजाने वाले लोगों में डिमेंशिया का जोखिम लगभग 35 प्रतिशत कम पाया गया।
इसके आगे मारगुलिस बताती हैं कि संगीत की एक विशेषता होती है कि वो इंसान को उसके गुजरे जमाने में ले जा सकता है, जैसे कि कोई एक गीत जिसे आपने सालों पहले सुना होगा और फिर अचानक आप उसको सालों बाद सुनेंगे तो आपको वो पल याद आ जायेगा जब आपने उसको सबसे पहली बार सुना था। इसका असर उन लोगों में भी दिखता है जिनको याददाश्त खोने और अल्जाइमर जैसी बीमारियां होती हैं।

न्यूरोसाइंटिस्ट और संगीतकार डैनियल लेविटिन अनुसार, 'ऐसे लोग खुद को आईने में देख कर भी नहीं पहचानते, जगह नहीं पहचानते, लेकिन किशोरावस्था में सुने गाने को सुनते ही वो अपने उस दौर से दोबारा जुड़ जाते हैं।'
'I Heard There Was A Secret Chord: Music As Medicine' किताब के लेखक, लेविटिन ने अपनी इस बुक में बताया है कि डिप्रेशन, दर्द और पार्किंसन जैसी न्यूरोलॉजिकल बीमारियों में संगीत कैसे मदद कर सकता है।

लेविटिन कहते हैं, “संगीत सुनना न्यूरोप्रोटेक्टिव है, यह मस्तिष्क की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और नए न्यूरल पाथवेज (Neural Pathways) बनाता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पुराना संगीत यादों को तरोताजा करता है और सुकून देता है। वहीं, कोई भी वाद्ययंत्र बजाना भी डिमेंशिया में फायदेमंद है। आप किसी भी उम्र में वाद्ययंत्र बजाना शुरू कर सकते हैं।
इस नए शोध के जरिये शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि संगीत हर उम्र के व्यक्ति के लिए चाहे वो किसी बीमारी से ग्रसित हो या ना हो एक दवाई की तरह काम करता है, जो इंसान के दिल और दिमाग को एक्टिव रखता है। साथ ही शांति और सुकून प्रदान करने में सक्षम है।
(वाशिंगटन पोस्ट का यह आलेख पत्रिका.कॉम पर दोनों समूहों के बीच विशेष अनुबंध के तहत पोस्ट किया गया है।)
Updated on:
15 Nov 2025 11:49 am
Published on:
15 Nov 2025 06:30 am

