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शिक्षा व्यवस्था की नाकामी का जीता-जागता सबूत… सड़क पर उतरने को मजबूर स्कूली बच्चे

MP news: जिन्हें विज्ञान के प्रयोग, गणित की गणनाएं और साहित्य की कहानियां समझनी चाहिएं, उस कच्ची उम्र में एमपी के स्कूली बच्चों को नारे लगाना, अधिकारियों को बुलाना और शिक्षा व्यवस्था से जवाब मांगना पड़ रहा है, देखें कहीं इतिहास ये न कहे इस देश के बच्चे पढ़ाई जैसे मौलिक अधिकार के लिए सड़क पर उतरते हैं…

MP News school students protesting shameful
MP News school students protesting shameful

MP News: Opinion: संजना कुमार@ patrika.com: यह बेहद कड़वी सच्चाई है कि स्कूली बच्चे किताबें-कॉपियां और कलम छोड़ सड़क पर धरना प्रदर्शन करने को मजबूर हैं। मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के जावरा विकासखंड के सरसी हायर सेकंडरी स्कूल के मासूम बच्चे जिन्हें विज्ञान के प्रयोग, गणित की गणनाएं और साहित्य की कहानियां समझनी चाहिएं, उस कच्ची उम्र में उन्हें नारे लगाना, अधिकारियों को बुलाना और शिक्षा व्यवस्था से जवाब मांगना पड़ रहा है। यह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि प्रशासनिक और राजनीतिक तंत्र को शर्मसार कर देने वाला है।

शिक्षा हर एक बच्चे का मौलिक अधिकार है। हमारी सरकारें करोड़ों रुपए शिक्षा पर खर्च होने का दावा करती हैं, लेकिन जब वास्तविक तस्वीर सामने आती है तो पता चलता है कि ग्रामीण स्कूलों में हालात बदतर हैं। यहां तो बच्चे खुद कह रहे हैं कि 'हमारी कक्षाएं नियमित नहीं लगतीं, शिक्षक समय पर नहीं आते, सुविधाओं का अभाव है, तो यह सीधे तौर पर प्रशासन की नाकामी का सबूत है। बच्चे अपनी पढ़ाई छोड़कर धरना दें, यह लोकतंत्र की उस विफलता को दर्शाता है, जहां सबसे कमजोर वर्ग को ही अपनी आवाज बुलंद करनी पड़ रही है। अधिकारी मौन हैं, फोन नहीं उठा रहे, गर्मी और उमस से बेहाल बच्चों का गुस्सा चरम पर है, अब वो हक मांगने के साथ प्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगा रहे हैं। ये क्या है... किससे पूछें जनाब...? फोन उठे तो हम भी करें सवाल...? आखिर क्यों? आखिर क्या? आखिर कब? आखिर कैसे? कौन जिम्मेदार? आगे क्या? ऐसे कितने सवाल...

चुनाव के समय नेता शिक्षा सुधार और स्मार्ट क्लासरूम का वादा करते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि बच्चे बिना शिक्षक, बिना पानी और बिना साफ-सफाई वाले स्कूलों में पढ़ाई करने को मजबूर हैं। सरसी का मामला अपवाद नहीं है, बल्कि प्रदेश और देशभर में ऐसे हजारों स्कूल हैं जिनकी दयनीय स्थिति अखबारों और न्यूज चैनल की एक्सक्लूसिव हेडलाइन बनती है। तो सवाल क्यों न करें कि आखिर सरकारों की प्राथमिकता क्या है.. बेहतर शिक्षा और उज्जवल भविष्य के लिए सिर्फ चुनावी वादा करना या फिर भावी पीढ़ी का भविष्य सुनिश्चित करने की वास्तविक और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी?

धरना-प्रदर्शन करना बच्चों का काम नहीं है। उनका असली मंच कक्षा होनी चाहिए, जहां वे प्रश्न पूछें, उत्तर ढूंढें और अपने सपनों की दुनिया की ओर बढ़ते चलें। लेकिन जब कक्षाएं बंद हों और समस्याएं बढ़े, तो यही बच्चे सड़क पर बैठने को मजबूर होते हैं। ये विकराल सा अनुभव है और भयावह चुनौती जो पूरे समाज को झकझोर सकती है, क्योंकि यदि आज ये मासूम अपनी पढ़ाई के लिए संघर्ष कर रहे हैं, कल आत्मविश्वास की कमी से पिछड़ जाएंगे। क्या यही भविष्य है सरकारी स्कूलों में लगने वाली कक्षाओं का जहां एक-एक बच्चे की प्रतिभा और सपनों का तराशकर उज्जवल बनाने की ताकत रखती है।

सरपंच,BRCC और तहसीलदार मौके पर पहुंचे, लेकिन बच्चों ने साफ कह दिया कि वे जिला शिक्षा अधिकारी को बुलाना चाहते हैं। यह बच्चों की उस पीड़ा को दर्शाता है जो उन्होंने लंबे समय तक अनसुनी के माध्यम से झेली है। सवाल यह है कि बार-बार शिकायतों के बावजूद विभाग ने कार्रवाई क्यों नहीं की? क्योंकि शायद उसे आभास ही नहीं था कि ये मासूम अपना भविष्य बर्बाद होने से बचाने और अपने मौलिक अधिकार शिक्षा के अधिकार के लिए सड़क पर उतर आएंगे? अपने भविष्य को बचाने सड़क पर उतरे इन बच्चों का धरना प्रदर्शन प्रशासन की निष्क्रियता और संवेदनहीनता को दर्शा रहा है।

ऐसी घटनाओं को केवल एक गांव की समस्या कहकर नजरअंदाज करना ठीक नहीं होगा। बल्कि हम सबको इस मुद्दे को व्यापक स्तर पर उठाना चाहिए ताकि, सरकार पर दबाव बने और ठोस समाधान निकले। वहीं, समाज को भी यह समझना होगा कि बच्चों की शिक्षा सिर्फ उनका निजी मामला नहीं, बल्कि पूरे देश का भविष्य है।

आज यदि सरसी के बच्चे सड़क पर हैं, तो कल किसी और गांव या शहर के बच्चे भी यही कदम उठाने को मजबूर होंगे। यह एक चेतावनी है, हमारी शिक्षा व्यवस्था खतरनाक मोड़ पर है।

अब वक्त आ गया है कि सरकारें केवल घोषणाओं और योजनाओं से आगे बढ़कर जमीनी हकीकत को बदलने उतरे, सुधार करें.. देखें कहीं इतिहास ये न कहे इस देश के बच्चे पढ़ाई जैसे मौलिक अधिकार के लिए सड़क पर उतरते हैं…

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