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Income Tax Return: टैक्स रिबेट, डिडक्शन और एग्जेंप्शन में क्या होता है फर्क? ITR भर रहे तो जानना जरूरी

Income Tax Return: आईटीआर भरने की लास्ट डेट 15 सितंबर 2025 है। अगर आपने अभी तक भी आईटीआर नहीं भरी, तो जल्द से जल्द भर लें। पता कर लें कि टैक्स रिबेट के बाद आपकी टैक्सेबल इनकम कितनी बन रही है।

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Income Tax Return

आईटीआर फाइल करने की लास्ट डेट 15 सितंबर है। (PC: Freepik)

Income Tax Return: टैक्स रिटर्न फाइल करने की लास्ट डेट पास आ रही है। ऐसे में टैक्स से जुड़ी जरूरी शर्तों को समझना बेहद अहम हो जाता है। कई लोग इनकम टैक्स में रिबेट, डिडक्शन और एग्जेंप्शन को लेकर कंफ्यूज हो जाते हैं। ये तीनो चीजें आपकी टैक्स देनदारी को तय करने में अहम भूमिका निभाती हैं। आज हम आपको बताएंगे कि इन तीनों में क्या फर्क है और ये कैसे काम करती हैं। रिबेट एक निश्चित इनकम लेवल पर लागू होती है। एग्जेंप्शन यानी छूट एक खास तरह की इनकम को टैक्स से बाहर रखती है। जबकि डिडक्शन टैक्सेबल इनकम को घटाती है। आइए विस्तार से जानते हैं।

टैक्स रिबेट क्या है?

टैक्स रिबेट एक तरह की राहत है जो उन व्यक्तियों को दी जाती है जिनकी आय एक निश्चित सीमा तक होती है। टैक्स रिबेट इनकम टैक्स एक्ट की धारा 87A के तहत मिलती है। रिबेट कुल टैक्स देनदारी से घटायी जाती है, न कि कुल आय से। यानी, यह सीधे-सीधे अंतिम टैक्स राशि को कम कर देती है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, टैक्स रिबेट फाइनल टैक्स देनदारी में दी गई एक सीधी रिलीफ है। यह टैक्स देनदारी को घटाती है या जीरो भी कर सकती है।

वित्त वर्ष 2024-25 में न्यू टैक्स रिजीम चुनने वालों को 7.75 लाख रुपये तक की कर योग्य आय पर पूरी टैक्स रिबेट मिल रही है (25,000 रुपये की स्पेशल इनकम के अतिरिक्त)। टैक्स रिबेट का उद्देश्य छोटे और मध्यम आय वर्ग के टैक्सपेयर्स को राहत देना है। वहीं, ओल्ड टैक्स रिजीम के तहत 5 लाख रुपये तक की आय पर 12,500 रुपये की रिबेट मिल रही है। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए न्यू रिजीम के तहत 12 लाख रुपये तक की इनकम के लिए 60,000 रुपये की रिबेट मिल रही है।

टैक्स डिडक्शन क्या होता है?

टैक्स डिडक्शन उन निवेशों और खर्चों पर मिलने वाली छूट है, जिन्हें टैक्सपेयर करता है। यह सीधे आय से घटा दी जाती है, जिससे कर योग्य आय कम हो जाती है और टैक्स देनदारी भी घट जाती है। इसमें खास निवेश या खर्च आपकी कुल आय से घटा दिए जाते हैं। इससे करयोग्य आय घटती है और जिस स्लैब पर टैक्स लगता है, वह भी कम हो जाता है।

उदाहरण के लिए सेक्शन 80C के तहत ELSS, PPF और LIC में निवेश पर 1.5 लाख रुपये तक का डिडक्शन मिलता है। जबकि सेक्शन 80D के तहत मेडिकल इंश्योरेंस पर 25,000 रुपये तक का डिडक्शन मिलता है। अगर किसी की आय 9 लाख रुपये है और डिडक्शन 1.75 लाख रुपये है, तो करयोग्य आय 7.25 लाख रुपये होगी।

टैक्स रिबेटटैक्स डिडक्शनटैक्स एग्जेंप्शन
फाइनल टैक्स देनदारी पर सीधी रिलीफ मिलती है।
टैक्स देनदारी घटती है या जीरो हो जाती है।
टैक्स कैलकुलेशन से पहले स्पेसिफिक इन्वेस्टमेंट/खर्च आपकी ग्रॉस इनकम से हटा दिये जाते हैं।कुछ विशेष प्रकार की इनकम टैक्सेशन से बाहर रहती है।

टैक्स एग्जेंप्शन क्या होता है?

टैक्स एग्जेंप्शन का मतलब है कि कुछ प्रकार की आय पर टैक्स नहीं लगता। यानी उस आय का एक हिस्सा टैक्स-फ्री होता है। टैक्स देनदारी निकालते समय सबसे पहले यह टैक्स फ्री इनकम कुल आय से घटा दी जाती है। कुछ मामलों में, पूरी आय को टैक्स से बाहर रखा जाता है। यानी वह इनकम कर योग्य आय में शामिल ही नहीं होती, जिससे टैक्स लगने वाली रकम कम हो जाती है।

उदाहरण के लिए अगर आपकी कुल आय 10 लाख रुपये है और 50,000 रुपये HRA (हाउस रेंट अलाउंस) एग्जेंप्शन है, तो टैक्स की कैलकुलेशन 9.5 लाख रुपये पर होगी।