
Daily Steps May Help Delay Alzheimer Symptoms: भारत समेत दुनिया भर में करोड़ों लोग अल्जाइमर (जो कि एक मस्तिष्क विकार है) से जूझ रहे हैं। अल्जाइमर रोग से ग्रसित व्यक्ति की याददाश्त कम होने लगती है, और उसकी सोचने-समझने की क्षमता पर भी असर पड़ता है। इस कारण उस व्यक्ति को अपने काम करने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अल्जाइमर अधिकतर वृद्धावस्था में ही होता है। मगर इसका ये मतलब बिलकुल भी नहीं है कि ये कम उम्र में नहीं हो सकता। वैसे तो इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है मगर दवाओं के सेवन और नियमित व्यायाम से इसके लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है। द वॉशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित हुई खबर के मुताबिक, आइये जानते हैं कि रोजाना कितने कदम चलने से अल्जाइमर के लक्षणों को रोका जा सकता है।
हाल ही में मैसाचुसेट्स जनरल ब्रिगहम (Mass General Brigham) के शोधकर्ताओं ने ये अध्ययन किया, जिससे पता चला है कि थोड़ी सी शारीरिक गतिविधि इस रोग के सबसे ज्यादा जोखिम वाले बुजुर्गों में इसकी गति को कम सकती है। शोध की प्रमुख राइटर और मास जनरल ब्रिघम की कॉग्निटिव न्यूरोलॉजिस्ट (Cognitive Neurologist) वाई-यिंग वेंडी याउ ने कहा, "अगर आप शारीरिक गतिविधि नहीं करते हैं, तो मामूली गतिविधि भी इस प्रक्रिया को धीमा करने में मदद कर सकती है।"
300 वृद्ध लोगों पर किया गया ये शोध बताता है कि प्रतिदिन सिर्फ 3,000 से 5,000 कदम चलने से अल्जाइमर में संज्ञानात्मक गिरावट (Cognitive Decline) करीब तीन साल तक टल सकती है। दूसरी तरफ जो लोग रोजाना 5,000 से 7,500 कदम चलते हैं, उनमें यह गिरावट सात साल तक टाली जा सकती है।

इसके साथ ही अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, इंसान की शारीरिक गतिविधि (फिजिकल एक्टिविटीज) का सीधा संबंध अल्जाइमर से जुड़े प्रोटीन से होता है, जिसे एमाइलॉइड-बीटा (Amyloid-Beta) कहते हैं। इस प्रोटीन के बढ़े हुए स्तर वाले बुजुर्गों में संज्ञानात्मक गिरावट की गति धीमी थी। वहीं, जो लोग बिल्कुल भी एक्टिव नहीं थे, उनके दिमाग में टाऊ प्रोटीन (Tau Proteins) तेज गति से जमा हुए जिससे उनके सोचने-समझने की क्षमता तो प्रभावित हुई ही, साथ ही उनके रोज के कामों को करने की क्षमता में भी बहुत गिरावट आई।
शोधकर्ताओं ने इन 300 लोगों पर तकरीबन नौ सालों तक नजर रखी और पाया कि जो लोग अपेक्षाकृत ज्यादा चलते थे, उनमें टाऊ प्रोटीन के जमने की गति धीमी थी। ये एक अन्य प्रकार का प्रोटीन है जो मस्तिष्क कोशिकाओं के बीच संचार को बाधित कर सकता है। इसके साथ ही वाई-यिंग वेंडी याउ ने कहा कि शोधकर्ताओं ने एक व्यक्ति के कदमों की संख्या और उसकी सोचने समझने की क्षमता के बीच संबंध देखा है, लेकिन यह कोई कारण और परिणाम नहीं है।
मगर निष्कर्ष यही बताते हैं कि रोजाना की गई फिजिकल एक्टिविटी शुरूआती अल्जाइमर के लक्षणों के बढ़ने की गति को कम करने में मदद कर सकती है। इसके साथ ही याउ ने ये भी कहा कि उन्हें उम्मीद है कि ये निष्कर्ष उन लोगों के लिए सशक्त साबित हो सकते हैं जो उम्र बढ़ने के साथ-साथ अपने मस्तिष्क की सुरक्षा के लिए आसान और उपयुक्त तरीके खोज रहे हैं।
बता दें कि नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ यह शोधपत्र हार्वर्ड एजिंग ब्रेन स्टडी (Harvard Aging Brain Study) का हिस्सा है, जो 15 साल पहले शुरू हुआ था। याउ ने बताया कि इसका मुख्य उद्देश्य था कि यह पता लगाना और बेहतर ढंग से समझना कि क्या शारीरिक गतिविधि, जिसे रोजाना चले गए कदमों से मापा जाता है, वो संज्ञानात्मक कार्य में गिरावट को कम कर सकती है या नहीं।
शोध से पता चला कि जो बुजुर्ग शारीरिक रूप से सक्रिय थे उनमें निष्क्रिय लोगों की तुलना में अल्जाइमर या याददाश्त की कमी और संज्ञानात्मक गिरावट के अन्य लक्षणों के बढ़ने की संभावना कम होती है। वहीं, चूहों पर किए गए इन अध्ययनों से पता चलता है कि अधिक शारीरिक गतिविधि रोग के बढ़ने की गति को धीमा कर सकती है। साथ ही याउ ने ये भी कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि व्यायाम से मनुष्यों को भी वही लाभ मिलता है या नहीं।
कॉग्निटिव हेल्थ को बेहतर बनाने के लिए फिजिकल एक्टिविटी के महत्व पर जोर देते हुए, डॉ. वाई-इंग वेंडी याउ ने कहा,

50 से 90 वर्ष के बीच की उम्र के जिन प्रतिभागियों को रिसर्च शुरू होने से पहले याददाश्त सम्बंधित समस्याएं नहीं थीं, ने अध्ययन की शुरुआत में सात दिनों तक एक पेडोमीटर पहना ताकि उनके औसत डेली कदमों की संख्या का पता लगाया जा सके। और फिर विश्लेषण किया गया कि प्रतिभागियों के कदमों की संख्या मस्तिष्क में एमिलॉयड बीटा और टाउ के स्तर के साथ-साथ उनके संज्ञानात्मक और दैनिक कार्यों से कैसे संबंधित है।
इसकी मदद से उन्होंने पाया कि जिन लोगों के दिमाग में एमाइलॉइड-बीटा का स्तर पहले से ही ज्यादा था, उनमें ज्यादा कदम चलने की संख्या का संबंध संज्ञानात्मक गिरावट की धीमी गति और टाऊ प्रोटीन के जमाव की धीमी दर से था। इसके विपरीत, जिन लोगों में एमाइलॉइड-बीटा का स्तर कम था, उनमें समय के साथ संज्ञानात्मक गिरावट या टाऊ प्रोटीन का जमाव बहुत कम देखा गया और शारीरिक गतिविधि का खास असर नहीं दिखा।
यह रिसर्च बताती है कि अगर किसी व्यक्ति के दिमाग में एमाइलॉइड-बीटा का स्तर पहले से ही अधिक है, तो थोड़ा सा व्यायाम उसे टाऊ प्रोटीन के जमने की गति को धीमा करने में मदद कर सकता है। इसका मतलब है कि जो लोग अल्जाइमर रोग के शुरुआती जोखिम में हैं, वे व्यायाम करके अपनी स्थिति को बेहतर बना सकते हैं।

आपको बता दें कि इस शोध का उद्देश्य यह बताना है कि अल्जाइमर सिर्फ बुजुर्गों की समस्या नहीं है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर बढ़ती हुई एक चिंता का विषय है। अमेरिका और भारत समेत पूरी दुनिया में लाखों-करोड़ों लोग इससे प्रभावित हैं और यह आंकड़ा दिन पर दिन बढ़ रहा है। दुनिया भर में डिमेंशिया के मरीजों की संख्या भी चिंतनीय है। लेकिन इस शोध से एक अच्छी खबर निकली है कि आपकी जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव मिलकर बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
वहीं, प्रोफेसर जॉन थाइफॉल्ट (कोशिका जीव विज्ञान और शरीर क्रिया विज्ञान) ने कहा, चाहे जो भी हो, अधिक चलना और नियमित व्यायाम करना "आपके शरीर में कई तरह के सकारात्मक बदलावों को बढ़ावा देगा" जो रोग के दुष्प्रभावों को कुछ हद तक कम करने में फायदेमंद साबित होगा।

यह शोध हमें बताता है कि अल्जाइमर रोग को रोकने के लिए बहुत ज्यादा व्यायाम करने की जरूरत नहीं है। रोज कुछ हजार कदम चलकर भी अपनी लाइफस्टाइल में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। यह एक आसान और उपयुक्त तरीका जिससे हम अपने मस्तिष्क को स्वस्थ रख सकते हैं और बुढ़ापे में भी अपनी सोचने-समझने की क्षमता को बनाए रख सकते हैं। इसलिए, आज से और अभी से चलना शुरू करें, क्योंकि आपका हर कदम आपकी मेन्टल हेल्थ के लिए बहुत मायने रखता है।
(वाशिंगटन पोस्ट का यह आलेख पत्रिका.कॉम पर दोनों समूहों के बीच विशेष अनुबंध के तहत पोस्ट किया गया है।)
Updated on:
06 Nov 2025 10:34 am
Published on:
06 Nov 2025 06:30 am

