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Bihar Assembly Elections: पीएम मोदी ने पूर्णिया में दिया एयरपोर्ट की सौगात, जानिए सात सीटों का सियासी गणित

Bihar Assembly Elections पूर्णिया में पीएम मोदी के एयर पोर्ट की सौगात के बाद सीमांचल की राजनीति में सरगर्मी बढ़ गई है।  एयर पोर्ट की सौगात के साथ बीजेपी ने पूर्णिया के सात और सीमांचल के 24 विधानसभा को साधने का प्रयास किया है।

Bihar Assembly Elections
एयरपोर्ट की सौगात और पूर्णिया का सियासी गणित?

Bihar Assembly Elections पीएम मोदी के पूर्णिया में एयरपोर्ट का उद्घाटन और मखाना बोर्ड की स्थापना के साथ बिहार का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। पूर्णिया जिला में तो सात ही विधानसभा हैं, लेकिन पूर्णिया सीमांचल के 24 विधानसभा का राजनीतिक गणित भी तय करता है। चुनावी नजरिए से इसकी विशेषता इससे आंका जा सकता है कि पीएम के पूर्णिया आने से आरजेडी नेता तेजस्वी यादव पत्रकारों की तरह पूर्णिया के अस्पताल में रिपेर्टिंग करते दिखे। वे अपनी रिपोर्टिंग के दौरान सरकार पर सवाल खड़े किए और महिलाओं के साथ संवाद किया।

वोटरों की गोलाबंदी

दरअसल, पूर्णिया जिला में आने वाले सात विधानसभा सीटें, अमौर, बायसी, कसबा, बनमनखी, रूपौली, धमदाहा और पूर्णिया पर महागठबंधन का पलड़ा अभी तक भारी माना जा रहा है। हालांकि एआईएमआईएम ने पिछली बार महागठबंधन के सीटों में सेंधमारी कर 7 में से 2 सीटें जीती थी, जिनमें से एक, बायसी विधायक रुकनुद्दीन वापस राजद में आ गए थे। इस दफा महागठबंधन का प्रयास है कि सात में सात सीटों पर उसका कब्जा हो। वहीं एनडीए महागठबंधन के सीटों में सौगातों के सहारे सेंघमारी करने का प्रयास करना चाह रही है। पीएम मोदी ने पूर्णिया से जो सौगात दिए उसको बिहार विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है।

पूर्णिया का सियासी गणित?

वरीय पत्रकार लव कुमार कहते हैं कि सीमांचल की राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पूर्णिया की राजनीति पर पकड़ मजबूत बनाना जरूरी है। ऐसे में बीजेपी और एनडीए के लिए पूर्णिया में किला फतह करना बेहद जरूरी होगा। राजनीतिक गुणा भाग के हिसाब से भी ये किला भेदना बहुत आसान नहीं है। जबकि महागठबंधन का यहां पर दबदबा है। सातों सीटों के समीकरण से इसको समझ सकते हैं।

पूर्णिया में हवाई अड्डे के उद्घाटन से उत्‍साह

पूर्णिया में हवाई अड्डे के उद्घाटन से यहां उत्‍साह की स्थिति है। कोलकाता के बाद पूर्वी भारत और बिहार का यह सबसे बड़ा हवाई अड्डा है। पूर्णिया हवाई अड्डा का 2,800 मीटर लंबा रनवे है। जो कि बड़े विमानों जैसे एयरबस और बोइंग के संचालन के लिए उपयुक्त है, जो क्षेत्र में हवाई यातायात को सुगम बनाएगा। 4,000 वर्ग मीटर में फैले ये टर्मिनल भवन अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होने के साथ साथ अगले 40 वर्षों तक बढ़ते यातायात को संभालने के हिसाब से डिजाइन किया गया है।

कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएगा

यह हवाई अड्डा न सिर्फ पूर्णिया बल्कि आसपास के क्षेत्रों के लिए भी कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएगा, जिससे व्यापार, पर्यटन और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। यही कारण है कि स्थानीय लोगों में इस हवाई अड्डे को लेकर उत्साह है। उनका कहना है कि पहले विदेश जाने के लिए हम लोगों को पटना या कोलकाता जाना पड़ता था, जो समय और पैसे की बर्बादी थी। अब यात्रा करना सुविधाजनक हो जाएगा।'

राष्ट्रीय मखाना बोर्ड की स्थापना

राष्ट्रीय मखाना बोर्ड की स्थापना मखाना उद्योग को बढ़ावा देने की दिशा एक बड़ा कदम माना जा रहा है। क्योंकि पूर्णिया और आसपास का क्षेत्र मखाना उत्पादन का प्रमुख केंद्र है। बोर्ड के बनने से किसानों को बेहतर तकनीक, बाजार और संसाधन उपलब्ध होंगे जिससे विकास की दिशा में एक नई पहल होगी। नई रेलवे लाइन और ट्रेन का शुभारंभ क्षेत्र की रेल कनेक्टिविटी को मजबूत करेगा, जिससे लोगों और सामानों का आवागमन और आसान होगा। यही कारण है कि पीएम मोदी का ये दौरा केवल विकास परियोजनाओं तक सीमित नहीं है। इसके अपने राजन‍ीतिक मायने भी हैं। यहां की सात सीटें जीतना बिहार में एनडीए की राह आसान बनाने की कुंजी हो सकती हैं।

बनमनखी विधानसभा

बनमनखी विधानसभा को बीजेपी का किला माना जाता है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित बनमनखी सीट पर पिछले चार बार से बीजेपी जीत रही है। चार बार से बीजेपी विधानसभा चुनावों से कृष्ण कुमार ऋषि को अपना प्रत्याशी बनाते रहा है। हालांकि यहां पर बीजेपी ने आरजेडी को 2020 में 27 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। इस सीट पर पासवान, रविदास और यादव मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं।

रूपौली में बीमा भारती और शंकर सिंह में टक्कर

रूपौली सीट पर बीमा भारती लंबे समय से विधायक रही हैं। बीमा भारती कभी आरजेडी तो कभी जेडीयू के टिकट पर यहां से चुनाव जीतते रही हैं। 2020 में वे जेडीयू उम्मीदवार के तौर पर यहां से जीतीं थी। लेकिन बाद में वो आम चुनाव से पहले आरजेडी में शामिल हो गईं। इसके बाद हुए उपचुनाव में इस सीट से निर्दलीय शंकर सिंह जीत गए। शंकर सिंह पहले भी बीमा भारती को यहां लगातार चुनौती देते रहे हैं।

अमौर विधानसभा

अमौर सीट पर कभी कांग्रेस का दबदबा था। 2010 में यहां से बीजेपी के सबा जफर चुनाव जीते थे, लेकिन 2020 में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अख्तरुल इमान ने एंट्री की कर इस सीट पर अपना गढ़ बना लिया। इस सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। लेकिन कैंडिडेट फेस भी यहां बड़ा फैक्‍टर है।

बायसी विधानसभा

बायसी सीट पर 2020 में AIMIM के टिकट से सैयद रुकनुद्दीन अहमद चुनाव जीते थे। लेकिन बाद में वो आरजेडी का दामन थाम लिया था। इससे इस दफा का चुनावी समीकरण और दिलचस्प हो गया है। हालांकि वो पहले भी आरजेडी में ही थे। मुस्लिम और पिछड़े वर्ग के वोट यहां मुख्य फैक्टर हैं। बीजेपी 2010 में इस सीट पर जीत दर्ज की थी, लेकिन उसके बाद लगातार कमजोर पड़ती गई।

कसबा: कांग्रेस का मजबूत गढ़

कसबा सीट पर कांग्रेस नेता मोहम्मद अफाक आलम का दबदबा है। 2010, 2015 और 2020 – तीनों बार उन्होंने इस सीट पर जीत दर्ज किया है। 2020 में एलजेपी और बीजेपी गठजोड़ ने अच्छी टक्कर दी थी, बावजूद इसके अफाक आलम 17 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गए। यहां मुस्लिम वोटरों के साथ यादव, कोरी और रविदास समुदाय भी बड़ा असर डालते हैं।

धमदाहा विधानसभा

धमदाहा सीट पर बिहार सरकार की मंत्री और जेडीयू की वरिष्ठ नेता और मंत्री लेसी सिंह का दबदबा है। 2010 से अभी तक ये इस सीट से जीतते आ रही हैं। 2020 में भी उन्होंने आरजेडी प्रत्याशी को 34 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। यादव और अति पिछड़े मतदाता यहां प्रमुख हैं, लेकिन लेसी सिंह का मजबूत संगठन और कैबिनेट मंत्री का दर्जा उनकी स्थिति को और मजबूत करता है।