अक्टूबर 2001 का एक शांत सप्ताहांत था। मैं बोस्टन में अपने साझा अपार्टमेंट की रसोई की खिड़की से बाहर देख रही थी। अकेलापन और उदासी ने मन घेरा हुआ था। अचानक एक डर उपजा – मैंने सोचा, अगर मैंने अपनी कलाई काट ली तो क्या होगा? धीरे-धीरे खून बहने से शायद मरने में बहुत समय लगेगा? मन को भटकाने के लिए मैंने सहज रूप से एक उपन्यास उठा लिया। किताब ने मुझे पूरी तरह अपने भीतर खींच लिया। बाद में मैंने एक करीबी मित्र से कहा कि शुरुआत तो बहुत खराब थी, लेकिन किताब की वजह से सप्ताहांत अंत में अच्छा निकल गया। किसी और से मैंने इन बातों का ज़िक्र नहीं किया।
वर्ष 2013 की गर्मी की एक दोपहर। मुंबई में अपने अपार्टमेंट की छत पर खड़े होकर मैंने नीचे देखा – हमारा मकान सिर्फ चार मंजिला था। मैंने सोचा, कूदी तो शायद मरने के बजाय व्हीलचेयर में पहुंच जाऊंगी। इस प्रकार सोचने पर मैं खुद पर खीजी और लगभग सिहरती हुई फ्लैट में वापस चली आई। इस घटना के बारे में भी मैंने किसी से बात नहीं की। आज मैं ये व्यक्तिगत अनुभव इसीलिए बांट रही हूं, ताकि दिखा सकूं कि आत्महत्या पर बात करना आज भी कितना कठिन है। यह भी बताना चाहती हूं कि जब कोई प्रियजन यह बताए कि वह आत्मघाती विचारों से जूझ रहा है, तब परिवार और मित्र कैसे प्रतिक्रिया दें। उन घड़ियों में मेरी सबसे बड़ी कमी यह थी कि मेरे पास कोई ऐसा भरोसेमंद व्यक्ति नहीं था, जिससे मैं बिना निर्णय के डर के अपनी बात कह सकूं। इसलिए, यह जानना कि प्रतिक्रिया कैसे देनी चाहिए, अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
मैं पिछले पच्चीस वर्षों से बाइपोलर डिसऑर्डर के साथ जी रही हूं और इन वर्षों में मैंने अनौपचारिक तौर पर कई लोगों को परामर्श भी दिया है। इस अनुभव के साथ-साथ मैंने दो प्रशिक्षित मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों — तनुजा बब्रे और मेघा सेटसरिया से भी चर्चा की। दोनों अक्सर आत्मघाती विचारों वाले रोगियों से मिलती हैं। इनके अनुभव और मेरे निजी अनुभव से कुछ स्पष्ट, व्यावहारिक सलाह बनती है – कब क्या बोलना चाहिए और किस बात से बचना चाहिए।
सबसे पहले क्या न कहें पर चर्चा कर लें। दोषारोपण और तात्काल प्रतिक्रिया से बचें। जैसे कह देना, ‘तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो?’ या ‘क्या तुमने सोचा कि इससे मेरी जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा?’ ऐसी टिप्पणियां भय और शर्म पैदा कर देती हैं और व्यक्ति को खुलकर बोलने से रोकती हैं। अक्सर लोग इसलिए अपने विचार किसी से साझा नहीं करते, क्योंकि वे दूसरों को डराना या परेशान करना नहीं चाहते। ऐसे क्षणों में श्रोता का सबसे बड़ा तोहफा शांत और गैर-आलोचनात्मक मौजूदगी होती है। दूसरी गलती अत्यधिक तारीफ या आश्चर्य जताना – ‘मैंने तुम्हें हमेशा मजबूत माना है।’ ऐसा कहने से वह व्यक्ति और अधिक दबाव में आ सकता है और सोचने लगेगा कि ‘मुझे बेहतर ढंग से सामना करना चाहिए था’ – जो कि मदद के बजाय नुकसान कर सकता है।
सहानुभूति और मान्यता जरूरी है। सीधे और सरल तरीके से कहें – ‘यह वाकई बहुत भारी महसूस होता होगा। मैं खुश हूं कि तुमने मेरे साथ यह शेयर किया। मैं सुन रहा हूं – यह आसान नहीं रहा होगा।’ इस तरह के शब्द खुलने के लिए जगह देते हैं और शब्दों के बाद आने वाली चुप्पी भी मददगार हो सकती है। सुनना और प्रतिबिंबित करना दोनों ही उपयोगी हैं। उदाहरण के लिए, आप कह सकते हैं – ‘मैं सुन रहा हूं, क्या तुम और बताना चाहोगे?’ या ‘क्या अभी तुम्हें कोई खास चीज बहुत परेशान कर रही है?’ संवाद का एक उद्देश्य यह भी है कि समस्या के लिए व्यावहारिक समर्थन जुटाया जाए। साथ मिलकर सोचें कि किस तरह का सहयोग उपलब्ध कराया जा सकता है – क्या तत्काल किसी भरोसेमंद व्यक्ति को साथ लाना संभव है, क्या काउंसलर, चिकित्सक की पेशेवर मदद चाहिए या क्या कुछ ऐसी परिस्थितियां हैं, जिन्हें बदलने की आवश्यकता है। इस बात का आश्वासन दें कि ‘हम मिलकर इसका रास्ता निकालेंगे।’ स्पष्ट रूप से पूछें कि ‘हम कैसे सुनिश्चित करें कि तुम आज सुरक्षित हो?’ यदि फोन पर हैं तो पूछें – क्या आसपास कोई भरोसेमंद वयस्क है, जिसे वह तुरंत बुला सके? जिन-जिन साधनों से वह तत्काल खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं – उन पर विचार करना और जरूरी हो तो उन्हें अस्थायी रूप से दूर करना व्यावहारिक कदम हो सकता है। यदि आपको संदेह है कि कोई आत्मघाती विचार कर रहा है, तो इसे छिपाएं नहीं। टालना विचारों को रोकता नहीं, परंतु बात उठाने से यह स्पष्ट हो जाता है कि आप उनकी भलाई की परवाह करते हैं और वह अकेले नहीं हैं।
आत्महत्या अक्सर किसी निर्णायक बिंदु नहीं, बल्कि कई नकारात्मक घटनाओं का परिणाम होती है – निराशा, असहायता, आत्म-घृणा या पेशेवर-व्यक्तिगत विफलताओं का भार। ऐसे भावनात्मक और परिस्थितिजन्य कारणों पर काम करने से थेरेपी, आत्मावलोकन, व्यावहारिक रणनीतियों से लंबे समय में राहत मिल सकती है। मैं स्वयं यह जानकर कह सकती हूं कि ‘पर्याप्त नहीं होने’ की भावना पर काम करने से जीवन में सुधार संभव है, मैं आज खुश और फल-फूल रही हूं – फिर भी बाइपोलर विकार के साथ जी रही हूं।
Updated on:
26 Sept 2025 04:38 pm
Published on:
26 Sept 2025 04:35 pm