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भविष्य में होने वाले साइबर युद्ध का खामोश चेहरा

चिंता की बात यह है कि भारत में जीपीएस हस्तक्षेप के मामलों की संख्या हाल के महीनों में तेजी से बढ़ी है।

योगेश कुमार गोयल, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार- दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पिछले दिनों जो कुछ हुआ, उसने सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। देश के सबसे सुरक्षित और सबसे अधिक निगरानी वाले हवाई क्षेत्र में 800 से अधिक उड़ानों के अचानक बाधित होने के पीछे कोई सामान्य तकनीकी खामी नहीं थी, बल्कि एक अत्याधुनिक साइबर हमला था। जिसमें ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम यानी जीपीएस के सिग्नलों से छेड़छाड़ की गई थी। कॉकपिट में बैठे पायलटों ने उस रात जो देखा, वह किसी थ्रिलर फिल्म जैसा ही था, रनवे की जगह खेत दिखाई दे रहे थे, विमान की पोजिशन स्क्रीन पर अचानक बदल जाती थी और ऊंचाई के आंकड़ें भी मानो किसी अज्ञात ताकत के नियंत्रण में थे। यह भयावह था क्योंकि कुछ सैकंड की देरी इसे किसी बड़े विमान हादसे में बदल सकती थी। पायलटों को तुरंत जीपीएस आधारित ऑटो सिस्टम बंद कर मैनुअल कंट्रोल संभालना पड़ा। यह एक ऐसा परिदृश्य था, जिसने साइबर सुरक्षा की परतें खोलकर रख दीं।


यह समझना जरूरी है कि जीपीएस स्पूफिंग आखिर है क्या? जीपीएस स्पूफिंग कोई साधारण तकनीक नहीं है, बल्कि यह वह खतरनाक विधि है, जिसमें असली जीपीएस उपग्रहों के सिग्नलों की जगह बेहद शक्तिशाली नकली सिग्नल भेजे जाते हैं ताकि लक्ष्य प्रणाली यह मान ले कि यही वास्तविक लोकेशन डेटा है। यह तकनीक विमान को रनवे से दूर किसी खुले मैदान में ले जा सकती है, जहाजों को उनके मार्ग से हटाकर खतरे की ओर धकेल सकती है, मिसाइल को गलत लक्ष्य पर भेज सकती है, ड्रोन को गिरा सकती है और किसी पूरे एयरस्पेस की दिशा ही बदल सकती है। यही कारण है कि आधुनिक विश्व में जीपीएस स्पूफिंग को उभरते हुए साइबर युद्ध के सबसे खतरनाक आयामों में से एक माना जा रहा है। जीपीएस स्पूफिंग में दुश्मन को गोली चलाने की जरूरत नहीं, बल्कि केवल कुछ किलोवॉट का रेडियो स्पूफर और उन्नत साइबर तकनीक ही पर्याप्त है।


चिंता की बात यह है कि भारत में जीपीएस हस्तक्षेप के मामलों की संख्या हाल के महीनों में तेजी से बढ़ी है। डीजीसीए के अनुसार, नवंबर 2023 से फरवरी 2025 के बीच ही जम्मू और अमृतसर जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में 465 से अधिक फेक जीपीएस सिग्नल मिले हैं। ये क्षेत्र पाकिस्तान सीमा के बिल्कुल पास हैं। इसके बाद जीपीएस स्पूफिंग का खतरा धीरे-धीरे पूर्वी पंजाब में और अब दिल्ली के हवाई क्षेत्र तक आना, एक सोची-समझी रणनीति का संकेत देता है। जीपीएस स्पूफिंग का धीरे-धीरे बढ़ता हुआ घेरा बताता है कि यह केवल तकनीकी प्रयोग नहीं, बल्कि किसी बड़े ऑपरेशन का हिस्सा हो सकता है। साइबर विशेषज्ञों के मुताबिक यह किसी विदेशी साइबर यूनिट, दुश्मन देश की इंटेलिजेंस एजेंसी या किसी संगठित हैकर नेटवर्क का काम हो सकता है। कोई सामान्य व्यक्ति या सामान्य हैकिंग समूह इतना बड़ा ऑपरेशन नहीं कर सकता। इस घटना से कई गंभीर सवाल भी उठे हैं। आखिर किसी भी सुरक्षा एजेंसी को पहले से कोई संकेत क्यों नहीं मिला? क्या हमारे पास ऐसे हमलों से बचने के लिए कोई एंटी-स्पूफिंग प्रणाली मौजूद नहीं है?


दुनिया के कई देश अब अत्याधुनिक एन्क्रिप्टेड जीपीएस सिस्टम विकसित कर रहे हैं। अमरीका ने तो अपने नागरिक जीपीएस को भी 'चिमेरा' नामक नए एन्क्रिप्टेड सिग्नल से लैस करना शुरू कर दिया है ताकि स्पूफिंग के हमलों को रोका जा सके। हालांकि हमारे पास दुनिया का सबसे सुरक्षित और उन्नत स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम 'नाविक' मौजूद है, जो जीपीएस की तुलना में अधिक सटीक और अधिक सुरक्षित माना जाता है। नाविक के सिग्नल एन्क्रिप्टेड हैं और इन्हें स्पूफ करना लगभग असंभव है। भारतीय वैज्ञानिकों ने नाविक को इस तरह विकसित किया है कि यह पूरे भारतीय क्षेत्र में जीपीएस से कहीं अधिक विश्वसनीय साबित होता है। यदि नाविक आधारित एप्रोच सिस्टम दिल्ली एयरपोर्ट पर पहले से लागू होता, तो यह घटना संभवत: नहीं होती। भारत ने नाविक को पिछले वर्ष नागरिक उड्डयन मानकों के अनुरूप घोषित भी कर दिया है, लेकिन इसका वास्तविक कार्यान्वयन अब भी धीमा है।


दिल्ली एयरपोर्ट की यह घटना एक चेतावनी भी है कि आधुनिक साइबर युद्ध किसी बम या मिसाइल से अधिक खतरनाक है। एक बम फटता है, नुकसान पहुंचाता है और उसका असर दिख जाता है लेकिन जीपीएस स्पूफिंग जैसे हमले अदृश्य होते हैं, किसी धुएं या आवाज के बिना सुरक्षा तंत्र को पंगु बना सकते हैं। दुश्मन जानता है कि यदि उसने एक विमान को भी गलत दिशा में मोड़ दिया तो उसका प्रभाव कई गुना अधिक होगा। यह युद्ध का वह रूप है, जिसमें दुश्मन केवल टेक्नोलॉजी से आपकी आंखों से देखा जा रहा दृश्य बदल देता है। बहरहाल, भारत को इस घटना से सबक लेने होंगे। सबसे पहले 'नाविक' को देशभर के सभी एयरपोट्र्स, सभी एयरलाइनों और सभी नेविगेशन सिस्टम में अनिवार्य करना होगा। एयरपोट्र्स के 50 किमी के दायरे में स्पूफिंग डिटेक्शन सिस्टम स्थापित करने होंगे। एआइ आधारित लोकेशन इंटेग्रिटी मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित करना होगा, जो असली और नकली जीपीएस सिग्नल में अंतर तुरंत समझ सके। दिल्ली एयरपोर्ट की घटना एक चेतावनी है, जिसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।