
दिल्ली में लाल किले के पास हुई कार विस्फोट की घटना ने देशभर में आतंकवाद के खतरे को और गहरा कर दिया है। कई वर्षों बाद आतंकियों की ओर से राष्ट्रीय राजधानी को निशाना बनाए जाने से यह स्पष्ट हो गया है कि देश के सामने आतंकवाद का खतरा नए रूप में उभर रहा है। इस वारदात ने आतंकवाद के उन खतरों में नई परतें जोड़ दी हैं, जिन्हें अब तक देखा जा चुका है- खासकर इस साल अप्रेल में पहलगाम में हुई भयावह व रक्तरंजित त्रासदी।
सरकार ने दिल्ली विस्फोट की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को सौंप दी है। यही एजेंसी पहले पहलगाम आतंकवादी हमले की जांच कर चुकी है और उसने आतंकियों व उनके सहयोगियों के पाकिस्तान से जुड़े होने के ठोस सबूत भी उजागर किए थे। अब एनआइए को अपनी जांच का दायरा बढ़ाना होगा, क्योंकि इस बार मामला कश्मीर से लेकर दिल्ली तक फैला हुआ है। दो अलग-अलग समय और स्थानों पर हुए आतंकवादी हमलों की सीधी तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन एक समानता अवश्य है। इस बम विस्फोट को अंजाम देने वालों ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि उनका मूल उद्देश्य देश की सुरक्षा व्यवस्था को कमजोर करना और आम नागरिकों का मनोबल तोड़ना है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि आतंकवाद और उसके संरक्षकों की यह भयावह सोच अब दिल्ली तक पहुंच चुकी है। दिल्ली में हुआ कार बम विस्फोट, उसका स्थान, समय और पृष्ठभूमि इसे पहलगाम से भी कहीं अधिक गंभीर आतंकवादी हमला बनाते हैं। पहलगाम नरसंहार का उद्देश्य कश्मीर में उभर रही शांति और सामान्य स्थिति को भंग करना था। यह कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर एक गहरा आघात था और उस ‘भारत के विचार’ के लिए भी चुनौती था, जो घाटी की मिट्टी में धीरे-धीरे उगने लगा था। पहलगाम हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया। दिल्ली विस्फोट के तार जैश-ए-मोहम्मद के नेटवर्क से जोड़े जा रहे हैं। उस संगठन से जुड़े तीन डॉक्टर आदिल, मुजामिल और उमर दक्षिण कश्मीर से बताए जा रहे हैं, जो आतंकवाद का गढ़ माना जाता रहा है। यह इसे और भी खतरनाक बनाता है।
इसका मतलब यही है कि आतंकवादी हलचल किसी विशेष इलाके से निकलकर पूरे देश में फैलने की कोशिश कर रही है। इस हमले की गंभीरता और वास्तविक भयावहता इस तथ्य में निहित है कि यह आत्मघाती मृत्यु उस अनुमान के बाद अंजाम दिया गया, जब माना जा रहा था कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद आतंकवादी नेटवर्क भारत की धरती पर कोई बड़ा कृत्य करने की हिम्मत नहीं जुटाएंगे। इसने देश के सामने एक अनूठी चुनौती खड़ी कर दी है- क्या देश दिल्ली में हमले को सहन कर सकता है, जो कि पैमाने और प्रभाव में पहलगाम जैसा ही है? सरकार को यह साबित करना होगा कि ऑपरेशन सिंदूर जारी है और निहित संकल्प में कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को पूरे प्रकरण की विस्तृत समीक्षा की, विशेष रूप से उन लोगों पर ध्यान केंद्रित किया, जो इस साजिश के योजनाकार थे और जिन्होंने इसे अंजाम दिया। उनकी मंशाओं के साथ-साथ यह सवाल भी उठाया गया कि क्या इसके पीछे कोई अन्य आतंकवादी मॉड्यूल भी सक्रिय था। इस समीक्षा का उद्देश्य मात्र यह सुनिश्चित करना था कि आतंकवादी और उनके समर्थक किसी भी सूरत में सजा से बच न पाएं।
इस साजिश का पूरी तरह भंडाफोड़ करना बेहद जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसे हमलों की पुनरावृत्ति न हो। सुरक्षा तंत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि आतंकवादी आखिर कैसे सिस्टम में सेंध लगा सके और किस तरह उन्होंने अपने लिए हमदर्दी के ठिकाने तैयार कर लिए। यह समझ से परे है कि कोई भी आतंकवादी बिना स्थानीय सहयोग के कोई बड़ी वारदात अंजाम दे सके। कश्मीर में आतंकवादी नेटवर्कों के प्रति सहानुभूति रखने वाले कुछ इलाके लंबे समय से मौजूद रहे हैं। दशकों पहले जब आतंकवाद ने वहां जड़ें जमाईं और वर्षों तक अपना असर बनाए रखा, तब ऐसे सहानुभूति के ठिकाने धीरे-धीरे बनते चले गए। पर दिल्ली के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। यहां इस तरह के ठिकाने का कोई इतिहास नहीं है। यही वजह है कि यह मामला कहीं अधिक गंभीर है।
फिलहाल, और यह आवश्यक भी है कि पूरा ध्यान इस साजिश का पर्दाफाश करने और दोषियों को सजा देने पर केंद्रित हो। ऐसा होना जनता में यह विश्वास जगाएगा कि आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई ठोस रूप से आगे बढ़ रही है लेकिन एक बड़ा प्रश्न हवा में तैर रहा है- क्या सभी विरोधी और शत्रु शक्तियों से निपटने का कोई स्थायी समाधान है ताकि भविष्य में ऐसी तबाही और भयानक हमले न हों?
इसके लिए यह आवश्यक है कि आतंकवाद-रोधी रणनीति केवल तात्कालिक जांच और उसके बाद की कार्रवाई तक सीमित न रहे। देश को एक दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता है- ऐसी नीति, जिसमें जनता की भागीदारी सुनिश्चित हो, विशेषकर उन वर्गों की जो शांति स्थापना के वास्तविक हितधारक हैं। सबसे बड़ी प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि भारत-विरोधी तत्वों- चाहे वे सक्रिय हों या स्लीपर सेल, को चिह्नित कर अलग-थलग किया जाए और निष्प्रभावी बनाया जाए। यह तभी संभव है जब प्रशासन, सुरक्षा एजेंसियों और नागरिक समाज के बीच पूर्ण समन्वय हो।
Published on:
12 Nov 2025 04:25 pm

