Patrika Logo
Switch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

प्लस

प्लस

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

प्रसंगवश: नियमों से नहीं, जागरुकता से ही रुक सकती हैं दुर्घटनाएं

छत्तीसगढ़ में जनवरी से अगस्त 2025 तक हादसों में 2960 लोगों ने गंवाई जान

Road Accident

छत्तीसगढ़ के 33 में से 19 जिलों में सड़क दुर्घटनाओं और उनमें मरने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि देखी गई है। ये आंकड़े मन को विचलित करते हैं। पुलिस विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इन 19 जिलों में इस वर्ष जनवरी से अगस्त तक के आठ महीनों में सड़क हादसों में 2960 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। इन आठ महीनों में 6500 सड़क हादसे हो चुके हैं। यानी की प्रदेश में हर माह करीबन 862 सड़क हादसे हुए और उन हादसों में औसतन 370 लोग काल के गाल में समा गए। अगर इन आंकड़ों को एक दिन के हिसाब से देखें तो प्रदेश में रोजाना औसतन 29 सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं और इन दुर्घटनाओं में औसतन 12 से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। इन 19 जिलों में पिछले वर्ष 2024 की तुलना में अब तक 505 दुर्घटनाएं और 313 मौतें भी ज्यादा हुई हैं। इन आंकड़ों को हम अगर परिवार के रूप में देखें तो आठ महीनों में 2960 परिवारों में मातम पसरा। किसी के घर का चिराग बुझ गया तो कहीं-कहीं तो पूरा परिवार ही काल के गाल में समा गया। इन दुर्घटनाओं के केंद्रबिंदु में लोगों की लापरवाही रही है। सड़क दुर्घटनाओं की मुख्य वजहों में वाहनों का फर्राटे भरना है। हद तो यह भी है कि तय सीमा से अधिक गति से वाहन चलाने के साथ ही दोपहिया चालकों द्वारा हेलमेट नहीं पहनना और चारपहिया चालकों व उसमें सवार लोगों का सीट बेल्ट नहीं बांधना भी है। इनके अलावा, दुर्घटनाओं में मौत के आंकड़े बढऩे का एक अजीबोगरीब तथ्य और सामने आया है, वह यह है कि कहीं हादसा होने पर वहां उपस्थित या पहुंचे लोग पीडि़तों की मदद की बजाय वीडियो-रील्स बनाने में लग जाते हैं। और ऐसे में दुर्घटना के बाद गोल्डन ऑवर में घायलों को मदद नहीं मिलने से उनकी जान नहीं बच पाती। किसी भी दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हुए व्यक्ति को एक घंटे के भीतर अगर सही इलाज मिल जाता है तो उसकी जान को कम से कम खतरा होने की संभावना रहती है। इन सबके विश्लेषण से यह बात सामने आती है कि नियम-कायदे-कानून तो जरूरी हैं ही, उनका पालन भी पूरी ईमानदारी से करना चाहिए। हमें जागरूक होने के साथ ही समाज में भी जागरुकता फैलानी होगी, क्योंकि जिंदगी तो हमारी ही। -अनुपम राजीव राजवैद्य anupam.rajiv@in.patrika.com