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नेपाल में जेन-जी आंदोलन के राजनीतिक आयाम

डॉ. अमित सिंह, एसो. प्रोफेसर राष्ट्रीय सुरक्षा विशिष्ट अध्ययन केंद्र, जेएनयू

नेपाल में 8 सितंबर से शुरू हुए देशव्यापी जेन-जी आंदोलन से बिगड़े हालात के बाद प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को आखिर अपने पद से इस्तीफा देकर देश भी छोडऩा पड़ा। वर्तमान में नेपाल की राजनीतिक स्थिति वैसी ही है जैसी कुछ समय पहले श्रीलंका और बांग्लादेश की थी जहां राजपक्षे और हसीना को इस्तीफा देकर देश छोडऩा पड़ा था। ओली ने भी यही किया और ऐसा कहा जा रहा है कि वो दुबई चले गए हैं। ओली की पार्टी की विचारधारा एवं उनकी सरकार की चीन से काफी नजदीकियां रहीं। उनको चीन की कठपुतली भी कहा जाता रहा है, फिर भी वे चीन नहीं गए। उनकी छवि भारत विरोधी रही है।

वैसे नेपाल के लोगों का मानना है कि माओवादी एक खूनी क्रांति के माध्यम से सत्ता में आए, जिसमें करीब 16 हजार लोगों की जानें गईं और राजशाही का अंत हुआ लेकिन माओवादियों ने आम जनता से जो वादे किए, जो सपने दिखाए, वे पूरे नहीं किए और भोग-विलासिता में लग गए। नेपाल का भी वेनेजुएला जैसा हाल होता जा रहा था इसलिए युवाओं ने विरोध प्रदर्शन किया और भ्रष्ट माओवादी सरकार को बाहर का रास्ता दिखा दिया। नेपाल में कई लोग चाहते हैं कि वहां राजशाही आए और एक बार फिर से नेपाल हिंदू राष्ट्र बन जाए। साथ ही नेपाल में चल रही सभी अनैतिक गतिविधियां समाप्त हो जाएं। ऐसा होना भारत के भी पक्ष में है क्योंकि पिछले कुछ सालों से नेपाल भारत विरोधी गतिविधियों का एक बड़ा अड्डा बन गया है। कई विश्लेषकों का ऐसा भी मानना है कि नेपाल की वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है लेकिन वहां की राजनीतिक अस्थिरता के प्रमुख कारणों में तीव्र पक्षपातपूर्ण राजनीति, बार-बार बदलते गठबंधन, कमजोर सरकारें, भ्रष्टाचार, सत्ता संघर्ष, नेताओं की अक्षमता और जनता की बढ़ती हताशा शामिल हैं। नेपाल के कुछ वर्गों द्वारा राजशाही की वापसी की मांग और उसको लेकर प्रदर्शन भी अस्थिरता को बढ़ावा देते हैं। नेपाल में अक्सर सरकारें बदलती रहती हैं, जिससे स्थिरता नहीं आ पाती। 2008 से अब तक 14 सरकारें बदली जा चुकी हैं।

ओली सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, जिसे लेकर विपक्षी दलों ने भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। नेपाल को हाल ही एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में भी शामिल किया गया, जिसे लेकर भी ओली सरकार पर दबाव था। विपक्षी दल इसे सरकार की विफलता के रूप में देख रहे हैं और ओली के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। आखिरकार वहां के लाखों युवा सड़कों पर उतर आए और निवर्तमान सरकार को उखाड़ फेंका। हाल में ओली सरकार ने विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (चाइनीज एप टिक-टॉक को छोड़कर) फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब समेत 26 प्लेटफॉर्म पर बैन लगा दिया था। इस बैन ने वर्षों से सरकार के खिलाफ बढ़ रहे असंतोष की आग में घी का काम किया तथा सोमवार से काठमांडू और कई बड़े शहरों में सरकार के खिलाफ जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन जारी है। इसमें 20 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है तथा 300 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं।

दरअसल पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर नेपाल की राजनीति में सक्रिय नेताओं के बच्चों तथा के.पी. शर्मा ओली के परिवार की आलीशान जिंदगी पर एक वीडियो वायरल हुआ और सरकार के खिलाफ माहौल बनने लगा, जिसको रोकने के लिए उन्होंने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया। नेपाल का युवा भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से तो पहले से ही परेशान था लेकिन सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स बैन करने की वजह से ज्यादा नाराज हो गया। प्रदर्शनकारियों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना और वे उग्र हो गए, नेपाल की संसद को जला दिया गया, कई नेताओं के घरों एवं दफ्तरों को भी फूंक डाला, युवाओं ने विपक्ष के नेताओं को भी नहीं बख्शा।

नेपाल की वर्तमान राजनीतिक स्थिति भारत के लिए भी चिंता का विषय है, इसलिए नई दिल्ली की पैनी नजर काठमांडू में तेजी बदलते हुए घटनाक्रमों पर है। भारत नहीं चाहता कि नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता का दुष्प्रभाव भारत पर या भारत-नेपाल संबंधों पर पड़े। दरअसल भारत आज चारों तरफ फेल्ड-स्टेट से घिरा है। बांग्लादेश में जिस प्रकार से सत्ता परिवर्तन हुआ और एक तरह से भारत विरोधी अंतरिम सरकार यूनुस के नेतृत्व में बनी। म्यांमार में सिविल वॉर अभी भी जारी है- सैन्य शासन है। श्रीलंका की आर्थिक बदहाली किसी से छिपी नहीं है। मालदीव में बड़ी मुश्किलों से हालत भारत के पक्ष में आए हैं। पाकिस्तान में आसिफ मुनीर का दबदबा लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में जब नेपाल में एक नई अंतरिम सरकार का जन्म होने वाला है तो भारत को प्रो-एक्टिव रहना होगा। क्योंकि भारत और नेपाल का रोटी-बेटी का नाता है, एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक संबंध भी हैं और नेपाल की माओवादियों की सरकार ने जिस प्रकार काली नदी, लिपुलेख, लिम्पियाधुरा आदि को लेकर सीमा विवाद को हवा दी, वह किसी से छिपा नहीं है। नेपाल में सदियों से रह रहे मधेशियों की पीड़ा भी भारत साझा करता है। इसलिए भारत को चाहिए कि वह नेपाल की स्थिति पर नजर ही नहीं रखे बल्कि नेपाल में एक नए लोकतंत्र की स्थापना में नेपाल की मदद भी करे ताकि वहां शांति स्थापित हो पाए।