
भारत में सड़क सुरक्षा की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। वर्ष 2023 में देशभर में 4.61 लाख सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें से 1.72 लाख से अधिक लोगों की मौत हुई। चौंकाने वाली बात यह है कि देश के सड़क नेटवर्क का केवल 2 प्रतिशत हिस्सा- राष्ट्रीय राजमार्ग ही कुल मौतों के 30-35 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारत के राजमार्ग अब 'मौत के गलियारे' बनते जा रहे हैं।
भारत में 2023 में राष्ट्रीय राजमार्गों पर दुर्घटनाएं 29.8 प्रतिशत और मौतें 35.2 प्रतिशत हुई हैं। राजस्थान में विगत कुछ दिनों में भीषण सड़क हादसे हुए हैं। इनमें 2 नवंबर को फलोदी (जोधपुर) के भारतमाला हाईवे पर एक दर्दनाक सड़क दुर्घटना हुई, जिसमें एक टेम्पो ट्रैवलर, जो तीर्थयात्रियों को लेकर लौट रही थी, सड़क किनारे खड़े एक ट्रक से जा टकराई। इस हादसे में लगभग 15 लोगों की मृत्यु हो गई, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे, जबकि 2-3 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। वैसा ही लोमहर्षक हादसा 3 नवंबर को नेशनल हाईवे के नित लोहा मंडी-सीर रोड, हरमाड़ा में हुआ, जिसमें 13 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हुए। ये घटनाएं राज्य में सड़क सुरक्षा की गंभीर स्थिति को दर्शाती हैं और यातायात नियमों के कड़े पालन की आवश्यकता पर बल देती हैं। भारत में राजमार्गों पर होने वाली सड़क दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, जिनके पीछे कई प्रमुख कारण हैं। सबसे बड़ा कारण अधिक गति है- कुल दुर्घटनाओं में लगभग 66.5 प्रतिशत हादसे और 72.3 प्रतिशत मौतें इससे जुड़ी पाई गई हैं। इसके अलावा, चालकों की थकान और ध्यान विचलन भी एक गंभीर समस्या है। तीसरा प्रमुख कारण है खराब सड़क अभियांत्रिकी, जिसमें तीखे मोड़, अंधे मोड़ और अपर्याप्त संकेत शामिल हैं। कमजोर प्रवर्तन भी एक अहम कारण है-ट्रैफिक नियमों के ढीले पालन और सीमित स्पीड कैमरों के कारण नियमों का प्रभावी अनुपालन नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त शराब या नशे की हालत में ड्राइविंग, तथा धुंध या बारिश जैसी खराब दृश्यता की स्थिति, हादसों को और बढ़ाती है।
सड़क सुरक्षा के लिए केवल अवसंरचना का विकास ही नहीं, बल्कि सख्त प्रवर्तन और जनजागरूकता भी उतनी ही आवश्यक है। भारत सरकार और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने सड़क सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए कई पहलें की हैं। इनमें अवैध सड़क अतिक्रमण हटाने के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा राज्यों को दिए गए निर्देश, साइड रोड डिजाइन, संकेतों तथा मर्जिंग लेन में सुधार और ब्लैक स्पॉट की पहचान एवं सुधार कार्यों में तेजी लाना जैसी कार्रवाई शामिल हैं।
हालांकि इन पहलों के बावजूद, राष्ट्रीय राजमार्गों पर दुर्घटनाओं में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं आई है। यह दर्शाता है कि सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में केवल नीतिगत प्रयास पर्याप्त नहीं हैं- इन्हें प्रभावी क्रियान्वयन, निगरानी और जनजागरूकता पर भी समान रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है। सड़क सुरक्षा प्रबंधन को सुदृढ़ करने के लिए कुछ राज्यों ने समर्पित हाईवे ट्रैफिक पुलिस बल की स्थापना की है।
महाराष्ट्र इस दिशा में एक अग्रणी उदाहरण है, जहां एक विशेष राजमार्ग पुलिस बल कार्यरत है। इस बल में 2,000 से अधिक कर्मचारी तैनात हैं, जो राज्य के प्रमुख राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों पर निरंतर गश्त और निगरानी रखते हैं। महाराष्ट्र का मॉडल अन्य राज्यों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है, जिसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर सड़क सुरक्षा प्रवर्तन को अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। दूसरे राज्यों में यह जिम्मेदारी राज्य पुलिस और यातायात विभाग निभा रही हैं। भारत में अब तक एक राष्ट्रीय राजमार्ग सुरक्षा बल का गठन नहीं हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि राष्ट्रीय राजमार्गों पर ‘स्पीड मैनेजमेंट गाइडलाइंस’ शीघ्र लागू नहीं की गईं, तो सड़क सुरक्षा पर किए जा रहे सभी प्रयास अधूरे रह जाएंगे।
सड़क सुरक्षा की मौजूदा स्थिति को देखते हुए कुछ कदम तत्क्षण उठाए जाने आवश्यक हैं। सबसे पहले, राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड का गठन शीघ्र किया जाना चाहिए, ताकि सड़क सुरक्षा से जुड़ी सभी नीतिगत, तकनीकी और संस्थागत एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित हो सके। दूसरा, देश के लिए एक राष्ट्रीय गति प्रबंधन दिशा-निर्देश तैयार किए जाने चाहिए, जिनके अंतर्गत स्पीड मॉनिटरिंग, कैमरा-आधारित प्रवर्तन और स्वचालित दंड प्रणाली को सुदृढ़ किया जा सके। तीसरा, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, राज्य परिवहन विभाग और राज्य सरकारों के बीच नियमित संयुक्त समीक्षा व्यवस्था लागू की जानी चाहिए, जिससे सड़क सुरक्षा योजनाओं, ब्लैक स्पॉट सुधार कार्यों और प्रवर्तन गतिविधियों की समयबद्ध प्रगति सुनिश्चित हो सके। इन कदमों से केंद्र और राज्य स्तर पर समन्वित प्रयासों को बल मिलेगा और सड़क सुरक्षा लक्ष्यों की प्राप्ति में तेजी आएगी।
यदि सड़क अभियांत्रिकी, प्रवर्तन, और जन-जागरूकता में ठोस सुधार नहीं हुए, तो ये ‘विकास के राजमार्ग’ आगे भी ‘मौत के राजमार्ग’ बने रहेंगे।
Published on:
06 Nov 2025 02:55 pm

