
डॉ. एन.के.सोमानी, अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार- पाकिस्तान की शहबाज सरकार द्वारा संविधान संशोधन के जरिए देश के सैन्य ढांचे और न्यायिक प्रणाली में बदलाव का जो निर्णय लिया गया है, उसका विरोध शुरू हो गया है। देश के प्रमुख विपक्षी दलों ने सरकार के इस कदम को लोकतंत्र और न्यायपालिका की आजादी पर हमला कहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार के इस फैसले से लोकतांत्रिक संस्थाएं पंगु हो जाएंगी और संविधान की बुनियाद हिल उठेगी।विरोध की बड़ी वजह संशोधन के उन प्रावधानों को लेकर है, जिसके तहत सेना और न्यायपालिका की संरचना को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की गई है। संविधान के जानकारों का मानना है कि संशोधन केवल धोखा है, असल मकसद अनुच्छेद 243 में बदलाव कर आर्मी चीफ आसिम मुनीर की ताकत बढ़ाना है। विपक्ष का आरोप सही भी है। संसद से पारित विधेयक को राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी द्वारा मंजूरी मिलने के बाद मुनीर पाकिस्तान के अब तक के सैन्य इतिहास में सबसे शक्तिशाली सेनानायक बन जाएंगे।
पाकिस्तान की शहबाज सरकार ने पिछलेे दिनों केबिनेट से हरी झंडी मिलने के बाद संसद के उच्च सदन सीनेट में संविधान के कुछ प्रावधानों में संशोधन करने के लिए 27 वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। विधेयक में दोहरी नागरिकता, संवैधानिक अदालत का गठन, राजस्व में प्रांतीय सरकारों की हिस्सेदारी घटाने, शिक्षा और जनसंख्या नियंत्रण के मामले में कानून बनाने की शक्ति संघ सरकार को देने, चुनाव आयोग की नियुक्ति व सशस्त्र बलों से संबंधित अनुच्छेद 243 से जुड़ी व्यवस्थाओं में संशोधन की बात कही गई थी। पर्याप्त संख्या बल होने के कारण विधेयक हल्के-फुल्के विरोध के बाद संसद के दोनों सदनों से पास हो गया।
लेकिन सवाल यह है कि सरकार अनुच्छेद 243 में संशोधन कर आर्मी चीफ को चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज अर्थात रक्षा बल प्रमुख बनाकर देश के सैन्य तंत्र को एक व्यक्ति विशेष में केंद्रित क्यों करना चाहती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि नागरिक सुधारों की आड़ में पाक सरकार देश को फिर से पूर्व सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक के दौर में ले जाना चाहती है। कहा जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर में भारत के हाथों मिली शिकस्त के बाद सीडीएफ के पद को सृजित करने का फैसला लिया गया है। अनुच्छेद 243 के प्रावधानों के अनुसार पाकिस्तान में सेना की सर्वोच्च शक्ति राष्ट्रपति के हाथ में होती है। राष्ट्रपति ही सेना का सर्वोच्च कमांडर होता है। अब तीनों सेनाओं का नियंत्रण सीडीएफ अर्थात जनरल मुनीर के पास आ जाएगा।
इसके अलावा परमाणु हथियारों और रणनीतिक बलों की निगरानी के लिए कमांडर ऑफ नेशनल स्ट्रेटेजिक कमांड के नाम से एक नया पद भी सृजित किया जा रहा है। इसकी नियुक्ति सीडीएफ की सिफारिश पर प्रधानमंत्री द्वारा की जाएगी। जाहिर है संशोधन के बाद पाकिस्तान के परमाणु हथियार और उसके परमाणु कार्यक्रम भी आर्मी चीफ के नियंत्रण में आ जाएगा। मुनीर पहले से ही फील्ड मार्शल और आर्मी चीफ दोनों पदों पर हैं, ऐसे में सीडीएफ के पद पर मुनीर के आने से वे न केवल पाकिस्तान के सैन्य इतिहास में अब तक के सबसे शक्तिशाली सैन्य अधिकारी बन जाएंगे बल्कि पाकिस्तान का संपूर्ण सैन्य तंत्र उनके हाथ में आ जाएगा। परमाणु कमांड का कंट्रोल मुनीर के हाथ में चले जाना कहीं न कहीं भारत के लिए भी चिंता का सबब हो सकता है। सच तो यह है कि 27 वें संशोधन का असल मकसद अनुच्छेद 243 मेें परिवर्तन कर फील्ड मार्शल मुनीर को एक तरह से संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करना है ताकि फील्ड मार्शल का पद किसी भी तरह की जांच से ऊपर रहे व मुनीर आजीवन इस पद से जुड़े विशेषाधिकारों को उपभोग कर सके।
संशोधन को लेकर अगर शहबाज सरकार की असल मंशा यही है, तो कोई दो राय नहीं कि मौजूदा संशोधन के बाद सेना को एक बार फिर पाकिस्तान के राजनीतिक ढांचे के केंद्र में आकर जिया की विरासत को पुनर्जीवित करने का अवसर प्राप्त हो जाएगा। वास्तव में अगर ऐसा होता है तो लगभग ढहने के कगार पर आ चुके पाक लोकतंत्र पर इसे शहबाज सरकार का निर्णायक वार कहा जाएगा।
Published on:
19 Nov 2025 12:43 pm
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