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भारत की विकास की गति बाहरी रेटिंग से अधिक टिकाऊ

भारत की सांख्यिकीय प्रणाली भी इतनी ही जटिल है, जितनी हमारी अर्थव्यवस्था।

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जयपुर

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Opinion Desk

Dec 07, 2025

- विजय गर्ग

अंतरराष्ट्रीय आर्थिक विमर्श में भारत आज जिस स्थिति में खड़ा है, वह अवसर और चुनौती, दोनों का संगम है। एक ओर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) तिमाही दर तिमाही 8 प्रतिशत से अधिक की मजबूत वृद्धि दर्ज कर रहा है। यह किसी भी बड़ी उभरती अर्थव्यवस्था के लिए असाधारण उपलब्धि है। दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) ने अपनी नवीनतम 'अनुच्छेद ढ्ढङ्क परामर्श' रिपोर्ट में भारत की वृद्धि का अनुमान 6.6 प्रतिशत रखा है। इससे भी महत्वपूर्ण भारत के राष्ट्रीय लेखा आंकड़ों को 'सी' रेटिंग दी है। यह रेटिंग कई विश्लेषकों, निवेशकों और नीति निर्माताओं के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है। हालांकि, वास्तविक प्रश्न यह है कि क्या यह रेटिंग भारत की आर्थिक विश्वसनीयता को चुनौती देती है या यह एक तकनीकी टिप्पणी है, जिसे सुधार की दृष्टि से देखा जाना चाहिए? सबसे पहले यह ध्यान देना आवश्यक है कि एनएसओ के आंकड़े वास्तविक अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन को प्रतिबिंबित करते हैं, जबकि आइएमएफ का अनुमान भविष्य के जोखिमों और अपनी मॉडल-आधारित मान्यताओं पर आधारित होता है।

8.2 प्रतिशत बनाम 6.6 प्रतिशत का अंतर स्वाभाविक है। चिंता का विषय आंकड़ों का यह अंतर नहीं, बल्कि आइएमएफ द्वारा भारत के डाटा फ्रेमवर्क को 'सी' ग्रेड देना है, जिसे कई लोग सांख्यिकीय विश्वसनीयता पर टिप्पणी के रूप में देख रहे हैं। यह सही है कि भारत के सांख्यिकीय ढांचे में सुधार की आवश्यकता है, लेकिन यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि भारत की विशिष्ट आर्थिक संरचना और सांख्यिकीय तंत्र की जटिलताओं को बिना समझे इस रेटिंग का अतिश्योक्तिपूर्ण अर्थ निकालना उचित नहीं है। आइएमएफ की आलोचनाएं मुख्यत: चार बिंदुओं पर आधारित हैं। पहला- पुराना आधार वर्ष (वर्ष 2011-12), दूसरी- जीडीपी की दो पद्धतियों में अंतर, तीसरा- अनौपचारिक क्षेत्र की सीमित कवरेज और चौथा- थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआइ) आधारित मूल्य अपस्फीति है। इनमें से कई बिंदु तकनीकी प्रकृति के हैं, न कि विश्वसनीयता पर सीधा प्रहार। आधार वर्ष बदलना भारत में एक प्रक्रिया है, जिसे वर्ष 2022-23 को आधार बनाकर अद्यतन (अपडेट) किया जाना है। इसमें देरी अवश्य है, लेकिन यह केवल भारत में नहीं, अमरीका, यूरोप, जापान जैसे कई देशों में भी सांख्यिकीय अद्यतन का स्वभाविक समय लगता है। जीडीपी में सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) और व्यय-आधारित अनुमान का अलग-अलग होना भी दुनिया की हर बड़ी और जटिल अर्थव्यवस्था में एक सामान्य चुनौती है। विशेषकर तब जब अर्थव्यवस्था तेजी से संरचनात्मक बदलावों से गुजर रही हो।
अनौपचारिक क्षेत्र की कवरेज सीमित होने का तर्क भी भारत के पक्ष में एक महत्वपूर्ण पहलू की ओर संकेत करता है। भारत की अर्थव्यवस्था इतनी विशाल और विविध है कि आइएमएफ के मानकीकृत मॉडल उसे पूर्ण रूप से कैप्चर ही नहीं कर पाते। आइएमएफ के मॉडल विकसित देशों के लिए अधिक उपयुक्त हैं, जहां अनौपचारिक क्षेत्र आकार में बेहद छोटा होता है।

भारत में अनौपचारिक क्षेत्र का आकार 40-45 प्रतिशत तक है। इस विविध गतिविधि को जीडीपी में सटीक ढंग से शामिल करना चुनौतीपूर्ण अवश्य है, लेकिन यह भारत की समस्या नहीं, भारत की 'विविधता' है। यह वही विविधता है, जिसने भारत के विकास मॉडल को दुनिया से अलग और अद्वितीय बनाया है।अक्सर चर्चा में यह बात छूट जाती है कि भारत का डिजिटल डाटा इंफ्रास्ट्रक्चर दुनिया में सबसे उन्नत है। वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन), यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई), आयकर डाटा, ई-वे बिल, आधार, डिजिटल भुगतान, ये सभी स्रोत वास्तविक समय में आर्थिक गतिविधि की झलक दिखाते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में जितनी पारदर्शिता डिजिटल फुटप्रिंट लाता है, आइएमएफ जैसे बाहरी संस्थानों को उसकी पूरी पहुंच नहीं होती। आइएमएफ की रिपोर्ट मुख्यत: उसके अपने अनुमान और सांख्यिकीय मॉडलों पर आधारित होती है, जबकि एनएसओ का काम घरेलू डाटा स्रोतों पर आधारित विस्तृत और बहु-आयामी विश्लेषण करना है। यह अंतर दोनों संस्थाओं की भूमिका को परिभाषित करता है, आइएमएफ वैश्विक संदर्भ में 'सतर्क अनुमान' देता है, जबकि एनएसओ वास्तविक जमीन पर दिख रहे प्रदर्शन को मापता है।

यह भी याद रखना चाहिए कि आइएमएफ ने स्वयं स्वीकार किया है कि भारत की वृद्धि 'व्यापक और सहनशील' है। भारत दुनिया की सबसे तेज बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। वर्ष 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। आइएमएफ की तकनीकी टिप्पणी को भारत के विकास मॉडल या उसकी विश्वसनीयता पर अंतिम निर्णय के रूप में पढऩा न तो उचित है, न ही विवेकपूर्ण। भारत ने बीते दस वर्षों में आईएमएफ के अनुमानों को कई बार पीछे छोड़ा है। वैश्विक महामारी, भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं और उच्च मुद्रास्फीति के दौर में भी भारत ने न केवल अपने निवेश चक्र को मजबूत रखा, बल्कि निजी खपत एवं सरकारी पूंजीगत व्यय दोनों में अद्वितीय तेजी दिखाई।
भारत की सांख्यिकीय प्रणाली भी इतनी ही जटिल है, जितनी हमारी अर्थव्यवस्था। इसे निरंतर सुधार की आवश्यकता है। यह स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं कि आधार वर्ष अद्यतन, मूल्य अपस्फीति में आधुनिक पद्धति और अनौपचारिक क्षेत्र के बेहतर आकलन की जरूरत है। हालांकि, यह कहना कि भारत के आंकड़े अविश्वसनीय हैं, सरलीकृत और भ्रामक निष्कर्ष होगा। विश्व बैंक, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी), संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक मामलों का विभाग (यूएन डीईएसए) और एशियाई विकास बैंक (एडीबी), सभी एनएसओ के आंकड़ों को स्वीकार करते हैं। भारत का सांख्यिकीय ढांचा एक मजबूत, पेशेवर और पारदर्शी परंपरा का हिस्सा है।

इसमें सुधार, आधुनिकीकरण और तकनीक का समावेश आवश्यक है, लेकिन इसका उद्देश्य किसी बाहरी संस्था को संतुष्ट करना नहीं, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था की बेहतर समझ विकसित करना होना चाहिए।वैसे, आइएमएफ की आलोचना को भारत को चुनौती नहीं, अवसर के रूप में देखना चाहिए। नया आधार वर्ष लागू करना, उत्पादक मूल्य सूचकांक (पीपीआइ) आधारित अपस्फीति तैयार करना, डिजिटल डाटा स्रोतों को औपचारिक सांख्यिकीय संरचना में शामिल करना और अनौपचारिक क्षेत्र के लिए नए-नए सर्वेक्षण और जीओ-टैग हाउसहोल्ड डाटा विकसित करना, ये सभी कदम भारत के सांख्यिकीय ढांचे को और भी मजबूत बनाएंगे। यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार आईएमएफ की आलोचना पर चुप्पी साधने के बजाय तथ्यात्मक और पारदर्शी प्रतिक्रिया दे।

आलोचना का उत्तर तकनीकी भाषा में, स्पष्टता और आत्मविश्वास के साथ दिया जाना चाहिए। जब भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और वैश्विक विकास का मुख्य इंजन बन चुका है, तब सांख्यिकीय सत्यनिष्ठा न केवल नीति निर्माण में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय विश्वास स्थापित करने में भी प्रमुख भूमिका निभाती है।भारत की वास्तविकता यह है कि हमारे विकास की गति किसी भी बाहरी रेटिंग से अधिक टिकाऊ और सुदृढ़ है। आइएमएफ की 'सी' रेटिंग भारत की आर्थिक कहानी को कम नहीं करती, यह केवल इस बात का संकेत है कि हमारा सांख्यिकीय ढांचा अब उस गति से अद्यतन हो, जिस गति से हमारी अर्थव्यवस्था बदल रही है। भारत आज दुनिया के सामने एक नए आत्मविश्वास के साथ खड़ा है। यह आत्मविश्वास न केवल तेज जीडीपी वृद्धि से, बल्कि डाटा की पारदर्शिता, तकनीकी क्षमता और संस्थागत मजबूती से आता है। भारत का लक्ष्य केवल तेज वृद्धि नहीं, बल्कि विश्वसनीयता, आधुनिकता और वैश्विक मानकों के अनुरूप एक सक्षम सांख्यिकीय प्रणाली का निर्माण है। आइएमएफ की रिपोर्ट इस दिशा में एक धक्का अवश्य है, पर यह धक्का सकारात्मक है, सुधार की ओर प्रेरित करता है। विकसित भारत का निर्माण केवल आर्थिक विस्तार पर नहीं, बल्कि डाटा की सटीकता और संस्थागत आत्मनिर्भरता पर आधारित होगा। भारत इस दिशा में सक्षम भी है, इच्छाशक्ति भी रखता है। यही विश्वास भारत की शक्ति है।