Patrika Logo
Switch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

प्लस

प्लस

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

सम्पादकीय : सड़क सुरक्षा उपायों की अनदेखी बढ़ा रहे हादसे

चिंता की बात यह है कि राजमार्गों के विस्तार, यातायात नियमों को कठोर करने व गुणवत्तायुक्त सडक़ों की तरफ ज्यादा ध्यान देने के बावजूद सडक़ हादसे और इनमें होने वाली मौतों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है।

पिछले एक दशक में देशभर में सडक़ों का जाल तेजी से फैला है। इनमें राजमार्गों का विस्तार भी शामिल है। बढ़ती सडक़ों के साथ-साथ आबादी भी बढ़ी है तो वाहनों की तादाद भी। यानी सडक़ों पर वाहन और लोग दोनों ही बढ़े हैं। जाहिर है ऐसे में हादसे भी ज्यादा होने की सदैव आशंका रहती है। चिंता की बात यह है कि राजमार्गों के विस्तार, यातायात नियमों को कठोर करने व गुणवत्तायुक्त सडक़ों की तरफ ज्यादा ध्यान देने के बावजूद सडक़ हादसे और इनमें होने वाली मौतों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से जारी ताजा रिपोर्ट तो और भी डरावनी है जिसमें बताया गया है कि देश में हर घंटे 55 हादसों में औसतन बीस लोग अपनी जान गंवा रहे हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के सडक़ हादसों को देखें तो ये देशभर में होने वाले सडक़ हादसों के 22 फीसदी हैं।
सडक़ हादसों से जुड़ी मंत्रालय की ये रिपोर्ट वर्ष 2023 के सडक़ हादसों से संबंधित है। आज तो यह संख्या और डराने वाली हो सकती है। हैरत इस बात की भी है कि हादसों और इनमें होने वाली मौतों की बड़ी वजह वाहनों को ओवरस्पीड में चलाना है यानी सडक़ों पर बेलगाम दौड़ते वाहनों पर यातायात नियमों में सख्ती के बावजूद अंकुश नहीं पाया जा सका है। हर बार सडक़ सुरक्षा के नाम पर चलाए जाने वाले अभियानों में दुर्घटनाओं को कम करने का लक्ष्य व संकल्प रखा जाता है। ये लक्ष्य कितने फलीभूत हो पा रहे होंगे इसका अंदाज इसी बात से लग जाता है कि वर्ष 2023 में सडक़ हादसो की संख्या 4.2 प्रतिशत बढक़र 4,80,583 हो गई है जिनमें 1,72,890 लोगों की जान चली गई। कोरोना महामारी के दौर को छोड़ दें तो साल-दर साल सडक़ हादसों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इसका अर्थ यही लगाया जाना चाहिए कि नशे में ड्राइविंग, हेलमेट और सीट बैल्ट न लगाने, ट्रैफिक लाइटों के उल्लंघन, वाहन चलाते समय मोबाइल का उपयोग जैसे कारण अब भी बने हुए हैं। खराब सडक़ें भी इन हादसों की बड़ी वजह है। जाहिर है सडक़ निर्माण में तकनीकी खामियां, भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी भी सडक़ हादसों की जननी है। खराब सडक़ों की वजह से क्षतिग्रस्त वाहनों की मरम्मत पर वाहन मालिकों पर भार पड़ता है सो अलग। वाहन लेन सिस्टम के अनुरूप चल रहे हैं अथवा नहीं यह कोई देखने वाला नहीं। सडक़ हादसों में घायलों को समय पर मदद नहीं मिल पाना भी मौतोंं के आंकड़ों में इजाफा करते हैं।
साफ है सिर्फ नियम-कायदे सख्त बनाने से ही काम नहीं चलने वाला। इनकी पालना में सख्ती तो दिखाई ही जानी चाहिए, साथ ही सडक़ें बाधा रहित हों इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए। दुर्घटना संभावित क्षेत्र का सूचना पट्ट लगा देना ही काफी नहीं, इन्हें चिह्नित कर सडक़ों को तकनीकी दृष्टि से दुरुस्त करना होगा। तब ही हादसे व इनमें होने वाली मौतों पर अंकुश लग सकेगा।