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संपादकीय : सड़क हादसों की रोकथाम की दिशा में उचित कदम

सड़क हादसों के कारणों की जब भी पड़ताल होती है तो बड़ी वजहों में वाहन चालक को झपकी आना भी शामिल होता है। थकान और नींद पूरी नहीं होने के चलते वाहन पर नियंत्रण खोने की वजह से आए दिन ऐसे हादसे सामने आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अब देश भर में व्यावसायिक […]

सड़क हादसों के कारणों की जब भी पड़ताल होती है तो बड़ी वजहों में वाहन चालक को झपकी आना भी शामिल होता है। थकान और नींद पूरी नहीं होने के चलते वाहन पर नियंत्रण खोने की वजह से आए दिन ऐसे हादसे सामने आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अब देश भर में व्यावसायिक वाहनों के चालकों के लिए आठ घंटे ही वाहन चलाने को अनिवार्य किए जाने की प्रक्रिया को बढ़ते सड़क हादसों को कम करने की चिंता से जोडऩा शुभ संकेत कहा जा सकता है।
न केवल व्यावसायिक वाहन बल्कि दूसरे वाहनों में भी चालकों को वाहन चलाते समय झपकी आने की समस्या रहती है। इसकी बड़ी वजह लंबी दूरी की ड्राइविंग के कारण थकान व समुचित नींद नहीं लेना ही है। राजमार्गों पर होने वाले हादसों में तो अधिकांश वाहन चालकों को आने वाली झपकी के कारण होते हैं। समय-समय पर विभिन्न स्तरों पर यह बात उठाई गई है कि ड्राइवरों को अधिक समय तक काम करने से रोकना जरूरी है। ऐसा नहीं करने पर सड़क सुरक्षा के दूसरे उपायों को भी धक्का पहुंचता है। व्यावसायिक वाहन चालकों के लिए परिवहन, पुलिस और श्रम विभाग की ओर से शुरू की गई साझा प्रक्रिया को हादसे रोकने की दिशा में उचित कदम ही कहा जाएगा। लेकिन, व्यावहारिक रूप से इस व्यवस्था को किस तरह से लागू किया जा सकेगा, यह बड़ा सवाल है। वाहन चालकों पर परिवहन कंपनियों की तरफ से लंबी दूरी तय करने का दबाव काम के घंटे भी बढ़ा देता है। कहने को तो भारी वाहनों पर लंबी दूरी के लिए दो चालक रखने का नियमों में प्रावधान है लेकिन खर्चों में कटौती के लोभ में कई बार ट्रक व दूसरे भारी वाहनों में यह इंतजाम किया ही नहीं जाता। यदि वाहन स्वामी खुद चालक ही है तो निजी जरूरतें और ईएमआई चुकाने जैसी मजबूरियों के चलते ड्राइविंग के घंटे लगातार दस से बारह घंटे तक भी हो जाते हैं। अभी बड़ी समस्या यह भी है कि किसी वाहन को ड्राइवर ने कितने घंटे चलाया, इसका आकलन करना आसान नहीं है। जीपीएस जैसी तकनीक व्यावसायिक वाहनों में अनिवार्य करने से यह पता लगाना आसान हो सकता है।
व्यावसायिक वाहनों में अलार्मिंग डिवाइस लगाने की चर्चा भी सामने आई थी। यह डिवाइस आठ घंटे की ड्राइविंग के बाद चेतावनी के साथ खुद-बखुद बंद हो जाएगा और दूसरे ड्राइवर के चलाने पर ही दुबारा स्टार्ट होगा। ऐसी तकनीक भारी वाहनों को लाइसेंस जारी करते वक्त ही लगाई जाए तो बेहतर नतीजे आ सकते हैं। इसके अलावा दस से बारह घंटे ड्यूटी कराने की प्रवृत्ति पर भी अंकुश जरूरी है। समुचित निगरानी की व्यवस्था किए बिना आठ घंटे की ड्राइविंग के प्रावधान को लागू करना आसान नहीं है। समूचे सिस्टम से जुड़े ट्रांसपोर्टर्स, सरकारी परिवहन निगमों व वाहन मालिकों को इस दिशा में साझे प्रयास करने होंगे।