प्राकृतिक आपदा हमेशा ऐसी उथल-पुथल लेकर आती है जिसमें बड़ी संख्या में जानमाल का नुकसान होता है। अफगानिस्तान में रविवार की रात आए भूकंप ने भी ऊपर से शांत दिखने वाली पृथ्वी के गर्भ में भयावह उथल-पुथल मचाई है। मरने वालों व घायलों की लगातार बढ़ रही संख्या व तबाही को देखते हुए अंदाज लगाया जा सकता है कि यह भूकंप वहां कतनी बड़ी आपदा बन कर आया है। बड़ी बात यह भी कि भूंकप के असर से इमारतें जमींदोज हो गई और इससे जानमाल का नुकसान ज्यादा हुआ। सोते हुए अधिकांश लोगों को बचने का मौका ही नहीं मिल पाया।
भूकंप ने वहां जो तबाही मचाई है वह भारत के लिए भी चेतावनी है क्योंकि हमारे यहां भी कई राज्य इस लिहाज से संवेदनशील जोन में हैं। चिंताजनक तथ्य यह है कि दुनिया के किसी न किसी कोने में भूकंप के झटके लगते रहने के बावजूद वैज्ञानिक भूकंप आने को लेकर कोई सटीक भविष्यवाणी नहीं कर पाए हैं। हालांकि वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार काम भी कर रहे हैं। सर्वविदित तथ्य यही है कि विकास की अंधी दौड़ में अनदेखी की पराकाष्ठा ही प्रकृति को कुपित करने की बड़ी वजह है। इसीलिए कभी बाढ़, कभी सूखा तो कभी भूकंप, ग्लेशियरों के पिघलने व सुनामी जैसी आपदाएं सामने आती हैं। बीते सालों में शहरों ही नहीं बल्कि ग्र्र्रामीण इलाकों में भी बेतरतीब विकास की होड़ सी मची है। महानगरों में तो आसमान छूती इमारतें खड़ी होने लगी हैं। सीमेंट-कंकरीट की ये इमारतें भूकंपरोधी तकनीक से बनाई जानी चाहिए यह बार-बार कहा जाता रहा है। लेकिन सरकारी इमारतों तक में भूकंपरोधी तकनीक की अनदेखी की जाती है। तमाम अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि इमारतों को भूकंपरोधी बनाकर नुकसान से बचा जा सकता है। अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी कोने में आने वाल भूकंप कई सबक सिखाने वाला होता है। सरकारें ध्यान दें या न दें लोगों को अपने घर बनाने में भी भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल शुरू करना चाहिए। जरूरत इस बात की है कि सरकारें इसे बढ़ावा दें। जापान इसका उदाहरण है जहां इमारतें ही इस तरह से बनाई जाती है ताकि भूकंप से नुकसान कम से कम हो। इमारतें भूकंपरोधी बने इतना ही काफी नहीं बल्कि भूकंप आने पर बचाव उपायों को लेकर भी लोगों को जागरुक करना होगा।
यह सच है कि मौसम संबंधी पूर्वानुमानों को लेकर वैज्ञानिकों का अध्ययन एक हद तक सही रहने लगा है। भूकंप को लेकर भी ऐसी भविष्यवाणी की जा सके तो आपदा से निपटना और आसान हो सकता है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी यदि इस संबंध में कोई जानकारी उपलब्ध हो तो उस ज्ञान का भी सहारा लिया जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी बात यही है कि मनुष्य को खुद प्रकृति से खिलवाड़ करना छोडऩा होगा। अच्छा यही होगा कि धरती की आवाज सुनी जाए और उसकी चेतावनी के हिसाब से इंसान अपने व्यवहार में बदलाव लाए।
Published on:
01 Sept 2025 08:28 pm