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आवारा कुत्ते बेकाबू, एक दिन में 150 लोगों को काटा

सर्दियों के आगमन के साथ ही ग्वालियर में आवारा कुत्तों का आतंक एक बार फिर बढ़ गया है। शहरवासी दिन हो या रात, सुबह हो या शाम, हर गली-मोहल्ले और सडक़ पर कुत्तों के झुंड देखकर डर के साए में जी रहे हैं.....

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शहर में आवारा कुत्ते बेकाबू, एक दिन में 150 लोगों को काटा

शहर में आवारा कुत्ते बेकाबू, एक दिन में 150 लोगों को काटा

ग्वालियर. सर्दियों के आगमन के साथ ही ग्वालियर में आवारा कुत्तों का आतंक एक बार फिर बढ़ गया है। शहरवासी दिन हो या रात, सुबह हो या शाम, हर गली-मोहल्ले और सडक़ पर कुत्तों के झुंड देखकर डर के साए में जी रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि शनिवार को जिला अस्पताल मुरार, सिविल अस्पताल हजीरा और जेएएच में 150 से अधिक लोग डॉग बाइट के शिकार होकर रैबीज का टीका लगवाने पहुंचे।
शहर में यह समस्या इसलिए विकराल रूप ले रही है क्योंकि नगर निगम आवारा कुत्तों को पकडऩे और नसबंदी (एबीसी - पशु जन्म नियंत्रण) कराने में नाकाम साबित हो रहा है। पिछले पांच सालों में ढाई करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद शहर में लगभग 15,000 से अधिक कुत्ते खुले में घूम रहे हैं। नगर निगम और कुत्ते पकडऩे वाली कंपनी मिलकर प्रतिदिन केवल 20 से 25 कुत्तों को ही पकड़ पा रहे हैं। ठेकेदार कंपनी की एक गाड़ी से 15 से 20 और निगम की गाड़ी से 5 से 8 कुत्ते पकडकऱ बिरला नगर पुल के नीचे बने एबीसी सेंटर में रखा जा रहा है।

निगम ने जारी की एडवायजरी
निगम ने नागरिकों की सुरक्षा के लिए एडवाइजरी जारी की है। इसमें कहा गया है कि कुत्तों से दूरी बनाकर चलें, उन्हें परेशान न करें, पत्थर न फेंके और यदि काट भी लें तो घाव को तुरंत साफ पानी से धोकर एंटीसेप्टिक मलहम लगाएं और नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र जाकर एंटीरेबीज टीका चिकित्सक की सलाह से लगवाएं। शहर के कुछ इलाकों में आवारा कुत्तों की संख्या अधिक है। इनमें ट्रांसपोर्ट नगर, डीडी नगर, कंपू, गुड़ागुड़ी का नाका, गोलपहाडिय़ा, आनंद नगर, विनय नगर, कुम्हरपुरा, मुरार क्षेत्र, जीवाजीगंज, सेवा नगर और सराफा बाजार शामिल हैं।

और बढ़ सकते हैं मामले
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि नगर निगम जल्द ही एबीसी सेंटर बढ़ाने और कुत्तों की नसबंदी पर ध्यान नहीं देता, तो शहर में डॉग बाइट के मामलों में और वृद्धि होगी। आम नागरिकों को अपनी सतर्कता बढ़ाकर इस संकट से बचाव करना होगा। ग्वालियरवासियों के लिए यह समय सचेत रहने का है, क्योंकि जिम्मेदार संस्थाएं कुत्तों के आतंक से राहत दिलाने में अब तक सक्षम नहीं हो पाईं हैं।