राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर गुरुवार को नागपुर के रेशमबाग मैदान में आयोजित विजयादशमी समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने पारंपरिक 'शस्त्र पूजा' के बाद देशवासियों को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने आतंकवाद, स्वदेशी, सामाजिक परिवर्तन, राष्ट्रीय एकता और वैश्विक उथल-पुथल जैसे मुद्दों पर विचार रखे।
मोहन भागवत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का उल्लेख करते हुए कहा कि आतंकियों ने धर्म पूछकर हिंदुओं की हत्या की, जिसका भारतीय सेना और सरकार ने पूरी तैयारी के साथ मुंहतोड़ जवाब दिया। उन्होंने इस घटना को एक सबक बताते हुए कहा कि यह हमें दोस्त और दुश्मन की पहचान सिखाती है। भागवत ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सजगता और अपनी सुरक्षा के प्रति और अधिक समर्थ होने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने भारतीय सेना के शौर्य की सराहना करते हुए कहा कि इसका प्रभाव पूरी दुनिया ने देखा।
संघ प्रमुख ने नक्सलवाद और उग्रवाद पर सरकार की कठोर कार्रवाई की प्रशंसा की और कहा कि ऐसी प्रवृत्तियों को पनपने नहीं देना चाहिए। उन्होंने वैश्विक उथल-पुथल और पड़ोसी देशों में हिंसक आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि हिंसा से स्थायी बदलाव संभव नहीं है। फ्रांस की क्रांति का उदाहरण देते हुए उन्होंने चेतावनी दी कि क्रांतियां अनजाने में निरंकुशता में बदल सकती हैं।
अमेरिका के टैरिफ नीतियों का उल्लेख करते हुए मोहन भागवत ने स्वदेशी को अपनाने और देश को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि निर्भरता को मजबूरी में नहीं बदलना चाहिए। पड़ोसी देशों में हाल के आंदोलनों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत को अपनी नीतियों और संसाधनों पर आत्मनिर्भर होकर मजबूत बनना होगा।
मोहन भागवत ने सामाजिक समस्याओं के प्रति सरकार की सजगता की सराहना की और युवाओं में बढ़ती देशभक्ति की भावना को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि विश्व आज भारत की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि परिवर्तन धीरे-धीरे और सावधानीपूर्वक करना होगा, अन्यथा "गाड़ी पलट सकती है।" उन्होंने सृष्टि की रक्षा करने वाले धर्म के मार्ग को विश्व के सामने प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर बल दिया।
भागवत ने कहा कि समाज के आचरण में परिवर्तन लाकर ही व्यवस्था में बदलाव संभव है। उन्होंने संघ की शाखाओं को व्यक्तित्व निर्माण और राष्ट्रीय एकता का आधार बताया। उन्होंने कहा कि संघ ने हमेशा राजनीति और लालच से दूरी बनाए रखी, क्योंकि इसका उद्देश्य व्यक्ति और समाज के चरित्र निर्माण से राष्ट्र को सशक्त बनाना है।
संघ प्रमुख ने भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को देश की ताकत बताते हुए कहा कि सभी पूजा पद्धतियों और महापुरुषों का सम्मान होना चाहिए। उन्होंने समाज में भेदभाव को उभारने की कोशिशों पर चिंता जताई और सद्भावनापूर्ण व्यवहार को सभी की जिम्मेदारी बताया। भागवत ने कहा कि भारत एक बड़े समाज का हिस्सा है, और संस्कृति, समाज और राष्ट्र के नाते हम सब एक हैं।
इस समारोह में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद रहे। कोविंद ने अपने संबोधन की शुरुआत विजयादशमी की बधाई से की। उन्होंने कहा कि मेरे जीवन में नागपुर के दो महापुरुषों का बहुत बड़ा योगदान है, डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर। पूर्व राष्ट्रपति ने डॉक्टर हेडगेवार से लेकर मोहन भागवत तक, संघ के अब तक के सफर में सरसंघचालकों के योगदान भी गिनाए।
उन्होंने कहा कि कानपुर की घाटमपुर विधानसभा सीट से बीजेपी का प्रत्याशी था, तब संघ से मेरा परिचय हुआ। जातिगत भेदभाव से रहित लोग संयोग से संघ के स्वयंसेवक और पदाधिकारी ही थे। उन्होंने कहा कि संघ में जातीय आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता। संघ सामाजिक एकता का पक्षधर रहा है। मेरी जीवन यात्रा में स्वयंसेवकों के साथ जुड़ाव और मानवीय मूल्यों से कैसे प्रेरणा मिली, इसका उल्लेख अपनी आत्मकथा में किया है, जो इस साल के अंत तक प्रकाशित हो जाएगी।
कोविंद के साथ ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और कई अन्य गणमान्य व्यक्ति भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। गौरतलब है कि विजयादशमी के मौके पर भागवत का विजयादशमी संबोधन आरएसएस का सबसे महत्वपूर्ण वार्षिक कार्यक्रम माना जाता है। इस दौरान सरसंघचालक संगठन के दृष्टिकोण, नीतियों और प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दों पर अपने रुख को रेखांकित करते हैं। कार्यक्रम में आरएसएस के सदस्यों ने उत्सव के उपलक्ष्य में संघ प्रार्थना का पाठ भी किया।
Published on:
02 Oct 2025 10:08 am