नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 32 न्यायालय को मृत्युदंड के मामलों में प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों के उल्लंघन की स्थिति में सजा पर फिर से विचार करने का अधिकार देता है। अदालत ने नागपुर निवासी वसंत संपत दुपारे की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। दुपारे को 2008 में चार वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या का दोषी ठहराया गया था। अदालत ने दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सजा पर 2017 के दृष्टिकोण को दरकिनार कर दिया और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए सीजेआइ बी.आर. गवई के समक्ष भेज दिया।
पीठ में शामिल जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता ने कहा कि 2022 के 'मनोज बनाम मध्य प्रदेश' मामले में तय दिशानिर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। इनमें अभियुक्त का मनोवैज्ञानिक और मनोरोग मूल्यांकन कराना शामिल है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 32 का इस्तेमाल केवल उन मामलों में किया जाएगा जहां प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों का गंभीर उल्लंघन हुआ हो, ताकि आरोपी के मौलिक अधिकार जैसे समानता, गरिमा और निष्पक्ष सुनवाई सुरक्षित रह सकें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह असाधारण शक्ति नियमित पुनर्विचार का साधन नहीं है, बल्कि केवल उन मामलों के लिए है जहां उल्लंघन मूल अधिकारों को सीधे प्रभावित करते हैं।
Published on:
26 Aug 2025 11:47 pm