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राज्यावास के काशी माताजी का अनूठा है इतिहास, मातेश्वरी की कृपा से गांव में है खुशहाली

राज्यावास गांव के ब्रह्मपुरी मोहल्ले में स्थित परमेश्वरी, राजराजेश्वरी, शिवा स्वरूपा श्री काशी माताजी मंदिर अपनी भव्यता और श्रद्धा के लिए विख्यात है।

Mata Mandir News
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पीपली आचार्यान. राज्यावास गांव के ब्रह्मपुरी मोहल्ले में स्थित परमेश्वरी, राजराजेश्वरी, शिवा स्वरूपा श्री काशी माताजी मंदिर अपनी भव्यता और श्रद्धा के लिए विख्यात है। माताजी की पोल में विराजित इस मंदिर में प्रति वर्ष की भांति इस बार भी शारदीय नवरात्रा के अवसर पर घट स्थापना विद्वान ब्राह्मणों द्वारा विधिपूर्वक की गई। पंडित योगेश त्रिवेदी के अनुसार घट स्थापना अमृत वेला में की गई, जिसमें मंत्रोच्चार के साथ पूजा अर्चना और आरती संपन्न हुई। इससे पूर्व माताजी को सुशील त्रिवेदी और साकेत त्रिवेदी द्वारा श्रृंगार किया गया तथा भोग एवं मनोरथ पूरे किए गए। भोपाजी त्र्यंबक लाल जी और प्रकाश जी द्वारा पाती पूरी की गई। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हर्षोल्लास के साथ नवरात्रि पूजा संपन्न हुई, जिसमें चंडी पाठ किया जाता है। यह पाठ अष्टमी के दिन हवन और पूर्णाहुति के साथ संपन्न होगा। नौवे दिन, ग्राम देवियों के साथ सरवर में विसर्जन किया जाता है। इस आयोजन में चारों पोल के सदस्य, ब्रह्मपुरी और पूरे गांव के श्रद्धालु भक्तजन उपस्थित रहे। महाराणा रायमल(1472–1508ई.) ने कश्यप गोत्रीय गोडवाल ब्राह्मणों — गणपावत, देवड़ा, भिलावत और तरवाड़ी — को 1765 बीघा शासकीय भूमि (माफीदारी) प्रदान कर बसाया। इन चारों परिवारों ने अपने-अपने अटकों से पोल बनाई:गणपावतों की पोल, देवड़ा की पोल, भिलावतों की पोल और तरवाड़ी की पोल। कालांतर में ये परिवार तीर्थयात्रा हेतु काशी गए। वापसी के समय, गणपावत परिवार की गठरी में अचानक एक चतुर्भुज देवी की चांदी की प्रतिमा मिली। इसे परिवार ने कुलदेवी का आशीर्वाद मानकर गणपावत पोल में स्थापित किया। काशी तीर्थ से संबंध होने के कारण माताजी का नाम काशी माता पड़ा।

चमत्कार और स्थापना

एक बार एक जातरू अपनी मनोकामना लेकर रोज़ आता था। वह माताजी की चांदी की मूर्ति चोरी करना चाहता था। मां ने उसे अनुमति दी, लेकिन वह गांव से बाहर नहीं निकल पाया। फतेहपुरा चोराया के पास उसकी आंखों की रोशनी चली गई और वह माता से क्षमा मांगने लगा। तब माता ने संगमरमर की चतुर्भुज प्रतिमा स्थापित करने का आदेश दिया। स्थान की कमी के कारण नया मंदिर बनवाया गया। माता ने नये मंदिर में अष्टभुजा स्वरूप की नई प्रतिमा स्थापित करने का आदेश दिया। यह प्राण प्रतिष्ठा 23 नवंबर 2017 (मार्गशीर्ष सुदी पंचमी) को संपन्न हुई।

चतुर्भुजा स्वरूप:

  • -दाहिनी ओर ऊपर तलवार, नीचे त्रिशूल
  • -बायीं ओर ऊपर गदा, नीचे डमरू
  • - शेर पास खड़ा, मां पूर्वाभिमुखी
  • - यह स्वरूप शिवा और आदिशक्ति का प्रतीक

अष्टभुजा स्वरूप:

  • - दाहिनी ओर: चक्र, तलवार, धनुष, पुष्प
  • - बायींओर: शंख, गदा, डमरू, त्रिशूल
  • - शेर पास खड़ा, मां पश्चिममुखी
  • - यह स्वरूप दुर्गा और भवानी का प्रतीक

मां समय-समय पर विभिन्न रूपों में दर्शन देती हैं: वैष्णवी, लक्ष्मी, ब्रह्माणी, अन्नपूर्णा, उमा आदि।

नवरात्रि एवं जागरण

  • - अश्विन और चैत्र की नवरात्रियों में भव्य आयोजन
  • - वर्षभर चार विशेष जागरण
  • -कार्तिक पूर्णिमा: चतुर्भुज स्वरूप माताजी का पराई बदलना
  • -वैशाख पूर्णिमा, भाद्रपद शुक्ल पक्ष छठ, माघ शुक्ल सप्तमी: विशेष जागरण

भोपाजी और मंदिर व्यवस्था

20 वर्ष पहले नैनालाल भंडारी भोपाजी थे। माताजी की कृपा से वे नियमित रूप से पूजा में संलग्न हुए। आज भोपाजी त्र्यंबक त्रिवेदी और प्रकाश भंडारी हैं, तथा पुजारी रमेश दास हैं। मंदिर की व्यवस्था के लिए समिति बनाई गई है।

चमत्कारिक घटनाएं

  • - नया मंदिर 2017: पुरानी मूर्ति पुराने मंदिर में ही रही; नई मूर्ति नए मंदिर में स्थापित।
  • -चोरी का प्रयास: हीरालाल त्रिवेदी के घर से चोर भाग गए।
  • - महाराष्ट्र हादसा: दयाशंकर त्रिवेदी की लाश छह महीने बाद मां की कृपा से मिली।