नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सेशन कोर्ट की अवहेलना करते हुए हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत आवेदनों पर सीधे विचार करने के चलन पर असहमति जताई है। शीर्ष कोर्ट ने इस प्रथा की उपयुक्तता पर विचार करने का निर्णय लेते हुए केरल हाईकोर्ट को नोटिस जारी किया। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ एक ऐसे मामले पर विचार कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने सेशन कोर्ट का रुख किए बिना सीधे केरल हाईकोर्ट का रुख किया था। वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा को अमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया है। खंडपीठ ने स्वीकार किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों को अग्रिम जमानत याचिकाएं सुनने का अधिकार है लेकिन न्यायिक ढांचे के अनुसार पहले सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। हाईकोर्ट को सिर्फ विशेष परिस्थितियों और दर्ज कारणों के आधार पर ही सीधे याचिका सुननी चाहिए।मामला तब उठा जब याचिकाकर्ताओं ने सीधे केरल हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत मांगी थी। गौरतलब है कि पिछले महीने एक अन्य पीठ ने कहा था कि अग्रिम जमानत के लिए पहले सेशन कोर्ट जाना अनिवार्य नहीं है। इससे इस प्रक्रिया पर न्यायपालिका के भीतर अलग-अलग दृष्टिकोण सामने आ रहे हैं।
सैशन जज कर सकते हैं बेहतर आकलन
अदालत ने चेतावनी दी कि यदि यह प्रथा बढ़ी तो हाईकोर्ट 'अग्रिम जमानत याचिकाओं की बाढ़' से भर जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेशन जज के पास केस डायरी और लोक अभियोजक की मदद उपलब्ध होती है, जिससे वे तथ्यों का बेहतर आकलन कर सकते हैं। पीठ ने स्पष्ट किया कि सामान्य परिस्थितियों में पहले सेशन कोर्ट में याचिका लगाई जानी चाहिए और राहत न मिलने पर ही हाईकोर्ट जाया जा सकता है। हालांकि, खास मामलों में हाईकोर्ट सीधे सुनवाई कर सकता है।
Published on:
11 Sept 2025 01:41 am