शिक्षक दिवस विशेष: अपने जुनून व लग्न से बच्चों को जटिल विषय व पाठों को सरलता से सीखना बताया
शिक्षक यानी गुरू केवल औपचारिक शिक्षा नहीं देता बल्कि बालक और युवा का चहुंमुखी विकास कर व्यक्तित्व को दिशा देता है। विद्यार्थियों में शिक्षा और शैक्षणेत्तर गतिविधियों से सीखने की लगन जगाकर अपने जुनून और नवाचार से जो शिक्षक समाज में अलग जगाते हैं वे सम्मान तो पाते ही हैं, उनकी सीख अच्छा राष्ट्र और नागरिक बनाने में अनुकरणीय है। शिक्षक दिवस पर समाज में ऐसा अनुकरणीय काम करने वाले खास शिक्षकों की गतिविधियों पर खास रिपोर्ट....
ऊषा खरे : पूरे शहर को बना लिया स्कूल
राष्ट्रपति अवार्ड से सम्मानित जहांगीराबाद स्कूल की प्राचार्य ऊषा खरे स्कूल से तो रिटायर हो गई, लेकिन पढ़ाना नहीं छोड़ा। अब पूरे शहर को ही स्कूल मान लिया है। छोटे-छोटे इलाकों में स्टडी सेंटर खोल रही हैं। 1500 छात्राओं वाले सरकारी स्कूल में पहली रोबाेटिक लैब और एआइ लैब शुरू करवाई। इससे छात्राओं को आइटी और तकनीकी क्षेत्रों में रोजगार में बड़ी मदद मिली। उन्होंने कौन बनेगा करोड़पति की 25 लाख रुपए की अपनी इनामी राशि भी स्कूल में रोबोटिक्स लैब बनाने में खर्च कर दी।
गोपाल साहू : खेलों के जुनून से बना दिया स्पोर्ट्स विलेज
धमतरी (छत्तीसगढ़) के परखंदा के सरकारी हाईस्कूल में खेल शिक्षक गोपाल साहू ने विद्यार्थियों में खेल के प्रति ऐसी अलख जगाई कि गांव को लोग अब स्पोर्ट्स विलेज के नाम से जानते हैं। गोपाल साहू ने बच्चों को सुबह-शाम अभ्यास के साथ खेल की बारीकियां सिखाई। अब 642 मकान वाले गांव में 400 से ज्यादा खिलाड़ी है। 26 खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय खेलों में पदक जीते हैं। कई विद्यार्थियों ने खेल से जुड़कर अपना कॅरियर बना दिया। खेलों से आगे बढ़े युवा सेना, पुलिस, शारीरिक शिक्षक जैसे पदों में नौकरी पा चुके हैं।
महेंद्र खंगार : सीखने की प्रक्रिया को रोचक बनाया
सूरत के संत सावता माली प्राथमिक स्कूल के शिक्षक महेंद्र खंगार ने कठपुतली के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने का अनोखा प्रयोग शुरू किया है। इस नवाचार ने बच्चों की पढ़ाई में रुचि बढ़ाने के साथ-साथ उनकी उपस्थिति और सीखने की प्रक्रिया को रोचक बनाया है। कक्षा 1 और 2 के पाठ्यक्रम में शामिल बाल कहानियों, बालगीतों और पाठों को कठपुतली के माध्यम से जीवंत बनाया है। उनका यह अनोखा अंदाज बच्चों को लुभाकर सीखने की प्रक्रिया को मनोरंजक बनाता है। इसके जरिए बच्चे जटिल चीजों को भी सरलता से सीख रहे हैं।
सुनील जोस : चलती-फिरती बस में पिछड़े बच्चों को पढ़ा रहे
अजमेर के निजी स्कूल के शिक्षक सुनील जोस 15 साल से कचरा बीनने और भीख मांगने वाले पिछड़ी जाति के झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को पुरानी बस में क्लास रूम बनाकर पढ़ा रहे हैं। बस को झुग्गियों वाले क्षेत्र में ले जाते हैं और वहां गरीब बच्चों को बुलाकर पढ़ाते हैं। बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाने के अलावा उनके लिए भोजन आदि की व्यवस्था भी करते हैं। जोस का 3 बच्चों को पढ़ाने से शुरू हुआ सिलसिला अब सैंकड़ों बच्चों तक पहुंच गया है। जोस की ओर से पढ़ाए गए गरीब बच्चे अब उच्च शिक्षा की कक्षाओं तक पहुंच चुके हैं। वे उनकी कोचिंग व उच्च शिक्षा में भी मदद करते हैं।
धीरेन्द्र तोमर : कठपुतलियों के इशारों से सिखा रहे पाठ
भोपाल के शिक्षक धीरेन्द्र तोमर ने रटाने की बजाय सिखाने पर जोर की अवधारणा वर्षों पहले ही शुरू कर दिया था। इनके पढ़ाने का तरीका ऐसा है कि बच्चे कठिन से कठिन घटनाएं और पाठ आसानी से सीख लेते हैं। वे गीत,कहानियों को कठपुतली के जरिए पढ़ाते हैं। पढ़ाई में इनोवेशन का यह तरीका सरकार को इतना पसंद आया कि इसे मॉडल के रूप में राजधानी सहित प्रदेश के 200 स्कूलों में लागू कर दिया है। तोमर बच्चों को पढ़ाई से होने वाले तनाव को कम करने के तरीकों पर काम कर रहे हैं। कठिन विषयों व पाठों को सहज भाषा और इशारों में समझाते हैं।
Published on:
05 Sept 2025 05:05 am