Patrika Logo
Switch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

कैच

कैच

ई-पेपर

ई-पेपर

लालू के वो ‘हनुमान’, जिनकी 1 राय ने 8 साल तक नीतीश कुमार को बिहार पर हावी नहीं होने दिया

सीएम के किस्से : पार्ट 2 - पढ़िए लालू को संकट से उबारने वाले उस शख्स की कहानी जो थे तो कांग्रेसी पर बेड़ा पार लगाया बिहार के पूर्व सीएम का।

पटना

Ashish Deep

Sep 12, 2025

Lalu Rabri Radhanandan Jha Politics , Lalu Prasad Yadav Political Strategies , Rabri Devi Chief Minister Story , Radhanandan Jha Political Influence , Bihar Political History Lalu Rabri Jha , 1990s Bihar Politics Key Figures , Chara Scam Bihar Political Crisis , Lalu Yadav Radhanandan Jha Relationship , Rabri Devi CM Political Legacy , Bihar State Political Leadership,
लालू यादव और राबड़ी देवी के साथ तस्वीर में राधानंदन झा हैं। (फोटो : AI)

1990 के दशक में बिहार की राजनीति बेहद जटिल मोड़ पर पहुंच गई थी। प्रदेश कांग्रेस के शासन से मुक्त होकर एक ऐसे नेता का उदय हुआ, जिसे दबे-कुचले वर्ग के लोग मसीहा मान बैठे थे। लालू प्रसाद यादव का उदभव, जिसने बिहार की राजनीति पर गहरी छाप छोड़ी। 1990 के बाद 1995 के 11वीं विधानसभा के चुनाव में लालू यादव का सितारा और चमका। लालू यादव ने संयुक्त बिहार में बहुमत की सरकार बनाई। पर यह चांदनी ज्यादा साल कायम न रह पाई। चारा घोटाला नाम का जिन्न बाहर आया और लालू यादव को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। उस दौरान विपक्ष को ऐसा महसूस होने लगा था कि अब तो लालू युग का अंत होने वाला है। लेकिन लालू यादव के ‘साउंडिंग बोर्ड’ कहे जाने वाले राधानंदन झा ने पूरी बिसात ही पलट दी।

कौन थे राधानंद झा और लालू से कैसे बढ़ी करीबी

साउंडिंग बोर्ड के मायने हैं ऐसा व्यक्ति जो संकट के समय आपका मार्गदर्शन करे और राधानंदन झा में यह खूबी कूट-कूट कर भी थी। वह ब्राह्मण और कांग्रेस के अनुभवी नेता थे। कांग्रेस के शासनकाल में वह अलग-अलग पदों पर मंत्री रहने के बाद 1980 से 1985 तक बिहार विधानसभा स्पीकर रहे। फिर राजनीति से संन्यास लेकर लालू यादव के साथ आ गए थे। उनके बारे में कहा जाता है कि बेहद प्रभावशाली और जोड़-तोड़ के महारथी थे। परदे के पीछे कैसे खेला करना है, वह कांग्रेस से सीखकर आए थे। सीएम बनने के बाद लालू यादव जब किसी मुसीबत में फंसते, झा ही सहारा बनते। यही कहते -'सर फंस गए हैं रास्ता दिखाइए ना।' रिटायरमेंट के बाद लालू ने उन्हें अपने सरकारी बंगले के पास ही एक बंगला अलॉट कर टिका लिया था।

झा की सलाह पर राबड़ी देवी को बनाया सीएम

सन् 1996 में जब चारा घोटाला खुला तो लालू यादव की राजनीतिक स्थिति बेहद नाजुक दौर में पहुंच गई थी। राधानंदन झा इस संकट में 'हनुमान' बनकर उभरे और लालू को सलाह दी कि वे अलग झारखंड की मांग छोड़ दें और जनता का ध्यान घोटाले से खींचने के लिए संयुक्त बिहार पर अड़े रहें। झा के सुझाव पर लालू यादव ने राबड़ी देवी को सीएम बना दिया ताकि वे सत्ता में भी बने रहें। फिर राबड़ी को समर्थन दिलाने के लिए राधानंदन झा को कांग्रेस में लॉबिंग करने के लिए लगाया। झा वहां भी चैंपियन साबित हुए और कांग्रेस के उन सहयोगियों को भी मना लिया जो इससे खुश नहीं थे। इस तरह लालू यादव ने सत्ता में बने रहने का रास्ता निकाला, जबकि कोर्ट और विपक्ष उन्हें दबोचने की कोशिश में थे।

नीतीश कुमार ने बहुत हाथ-पांव मारे

दिवंगत पत्रकार संकर्षण ठाकुर ने इस प्रकरण का जिक्र अपनी किताब 'बंधु बिहारी' में किया है। वह लिखते हैं कि नीतीश कुमार उस समय खुद को विपक्ष के मजबूत नेता के रूप में स्थापित कर रहे थे। लेकिन राधानंदन-लालू की चाल भांप नहीं पाए। उन्होंने लगातार बिहार में विकास और शासन सुधार का वादा किया। लेकिन राजनीतिक और जातीय समीकरण लालू के पक्ष में होने के चलते वह 1997 से 2005 तक बिहार की सत्ता तक पहुंचने से बाहर रहे। राजनीतिक दलों के बीच का गठजोड़, लालू यादव का पिछड़े वर्ग का मजबूत वोट बैंक और कांग्रेस के सहयोग ने लालू को लगातार डेढ़ दशक तक सत्ता में बनाए रखा।